बहुत सारी बातों में भेड़ और बकरी एक जैसी दिखाई देती हैं. लेकिन पालन की बात करें तो दोनों में बड़ा अंतर है. जैसे बकरी का पालन दो चीजों मीट और दूध के लिए किया जाता है. जबकि भेड़ पालन दूध-मीट के साथ ही ऊन के लिए भी किया जाता है. बेशक बीते कुछ वक्त से भेड़ की ऊन के कारोबार में कुछ कमी आई है, लेकिन उससे भी ज्यादा मीट की डिमांड बढ़ी है. आज कश्मीर में भेड़ के मीट की इतनी डिमांड है कि जम्मू-कश्मीर में बड़े पैमाने पर भेड़ पालन होने के बाद भी मीट की डिमांड दूसरे राज्यों से की जाती है.
आंध्रा प्रदेश और तेलंगाना समेत दक्षिण भारत के कई राज्यों में भी भेड़ का मीट खूब पसंद किया जाता है. मीट एक्सपर्ट की मानें तो ठंडे इलाके में चर्बी की वजह से और दक्षिण भारत में ये मान्यता है कि भेड़ का मीट चिकना होने की वजह से उसकी बिरायानी अच्छी बनती है.
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कॉन्टेजियस एकतामा-
इस बीमारी को गददी भेड़ पालक मौढे नाम से जानते है. यह बीमारी एक प्रकार के विषाणु द्वारा होती है, इसमें भेड़ के मुंह, नाक और होठों के बाहरी तरफ फोड़े हो जाते हैं. ये काफी बढ़ जाते हैं जिससे मुंह फूल जाता है. घास खाने में तकलीफ होने के साथ-साथ बीमार भेड़ को हल्का बुखार भी रहता है.
बचाव-
बीमार भेड़ को अलग कर उनका इलाज कराना चाहिए. इलाज के तहत फोड़ों को लाल दवाई के घोल से धोकर उन पर एन्टीसेप्टिक मलहम लगाना चाहिए. ज्यादा बीमार भेड़-बकरी को चार-पांच दिन एन्टीवायोटिक इन्जेक्शन लगाना चाहिए.
एन्थ्रेक्स रोग-
इस बीमारी को भेड़ पालक रक्तांजली रोग से जानते हैं. यह रोग जीवाणु द्वारा होता है. इस बीमारी के होने पर भेड़ को बहुत तेज़ बुखार आता है. इसके चलते भेड़ की मौत भी हो जाती है. मौत होने पर भेड़ के नाक, कान, मुंह और गुदा से खून का रिसाव होता है.
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रोग से बचाव-
इस रोग से मरने वालीं भेड़ों की खाल नहीं निकालनी चाहिए. मृत जानवर को गहरे गड्ढे में दबा देना चाहिए. चरागाह को बदल देना चाहिए. बीमार भेड़ को एन्टीवायोटिक इन्जेक्शन चार-पांच दिन पशु चिकित्सक की सलाह अनुसार देना चाहिए. इस रोग से बचाव हेतू टीकाकरण करवाया जा सकता है.
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