देश के ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालन का प्रचलन हमेशा से रहा है. खेती के बाद यहां के किसान पशुपालन से अपना जीवनयापन करते हैं. यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों में पशुपालन व्यवसाय तेजी से बढ़ रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों में दूध और उससे संबंधित उत्पादों के लिए पशुपालन किया जाता है. दूध और अन्य डेयरी उत्पादों की बढ़ती खपत को देखते हुए बाजार में दूध की मांग भी तेजी से बढ़ रही है. पशुपालन न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी तेजी से बढ़ रहा है. जिसके चलते कई लोग इस दिशा में आगे बढ़ते नजर आ रहे हैं. अगर आप भी पशुपालन के जरिए अच्छी आमदनी कमाना चाहते हैं तो बेहतरीन नस्ल की भैंसों को पालकर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं. आज हम आपको भैंस की एक उन्नत नस्ल के बारे में बताएंगे जो अपनी दूध देने की क्षमता के लिए मशहूर है.
हम बात कर रहे हैं भैंस की भदावरी नस्ल के बारे में. यह नस्ल अधिक दूध देने की वजह से काफी मशहूर है. भदावरी भैंस एक अच्छी नस्ल है और यह दूध भी अधिक देती है. यह अधिकतर उत्तर प्रदेश के इटावा और आगरा जिलों तथा मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में पाई जाती है. इसकी ऊंचाई अन्य प्रजातियों की तुलना में छोटी होती है. इसके आकार की बात करें तो शरीर नुकीला, सिर छोटा, पैर छोटे और मजबूत, काले खुर, एक समान पैर, तांबे या हल्के भूरे रंग की पलकें और काले सींग होते हैं. यह प्रति स्तनपान औसतन 800-1000 लीटर दूध देती है. इसके दूध में वसा की मात्रा 6-12.5 प्रतिशत होती है.
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कई बार किसान पशुओं को स्वस्थ रखने और अधिक उत्पादन देने के लालच में उनके आहार की मात्रा बढ़ा देते हैं, लेकिन इस नस्ल के साथ आपको यह बात ध्यान में रखनी होगी. इस नस्ल की भैंसों को आवश्यकतानुसार भोजन दें. फलीदार चारा खिलाने से पहले उसमें तूड़ी या अन्य चारा मिला लें, ताकि भूख न लगे या बदहजमी न हो.
अच्छे प्रदर्शन के लिए, पशुओं को अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों की आवश्यकता होती है. पशुओं को भारी बारिश, तेज धूप, बर्फबारी, ठंड और परजीवी से बचाने के लिए शैड की आवश्यकता होती है. सुनिश्चित करें कि चुने हुए शैड में साफ हवा और पानी की सुविधा होनी चाहिए. पशुओं की संख्या के अनुसान भोजन के लिए जगह बड़ी और खुली होनी चाहिए, ताकि वे आसानी से भोजन खा सकें. पशुओं के व्यर्थ पदार्थ की निकास पाइप 30-40 सैं.मी. चौड़ी और 5-7 सैं.मी. गहरी होनी चाहिए.
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अच्छे प्रबंधन का परिणाम अच्छे कटड़े में होगा और दूध की मात्रा भी अधिक मिलती है. गाभिन भैंस को 1 किलो अधिक फीड दें, क्योंकि वे शारीरिक रूप से भी बढ़ती है.
जन्म के तुरंत बाद नाक या मुंह के आस पास चिपचिपे पदार्थ को साफ करना चाहिए. यदि कटड़ा सांस नहीं ले रहा है तो उसे दबाव द्वारा बनावटी सांस दें और हाथों से उसकी छाती को दबाकर आराम दें. शरीर से 2-5 सैं.मी. की दूरी पर से नाभि को बांधकर नाडू को काट दें. 1-2 प्रतिशत आयोडीन की मदद से नाभि के आस पास से साफ करना चाहिए.
जन्म के 7-10 दिनों के बाद इलैक्ट्रीकल ढंग से कटड़े के सींग दागने चाहिए. 30 दिनों के नियमित अंतराल पर डीवार्मिंग देनी चाहिए. 2-3 सप्ताह के कटड़े को विषाणु श्वसन टीका दें. क्लोस्ट्रीडायल टीकाकरण 1-3 महीने के कटड़े को दें.
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