
देश के ग्रामीण क्षेत्रों में खेती-किसानी के बाद पशुपालन बिजनेस को आमदनी का सबसे अच्छा और बड़ा स्रोत माना जाता है. वहीं गाय और भैंस पालन के माध्यम से किसान दुग्ध व्यवसाय से जुड़कर बढ़िया मुनाफा कमा रहे हैं. अगर आप भी गाय पालन करने की सोच रहे हैं, तो बेलाही गाय का पालन कर सकते हैं. इसे मोरनी या देसी के नाम से भी जाना जाता है. वहीं बेलाही गाय छोटे किसानों के लिए बहुत लाभकारी गाय है. यह दूध और भार के लिए पाले जाने वाली मवेशियों की दोहरी नस्ल है. वहीं बेलाही नस्ल के मवेशी ज़्यादातर हरियाणा के अंबाला, पंचकुला, यमुनानगर और चंडीगढ़ के आसपास के क्षेत्रों में पाए जाते हैं.
बेलाही मवेशियों के नाम शरीर के रंग पैटर्न पर रखे गए हैं. दरअसल, नस्ल का नाम 'बेलाहा' शब्द पर रखा गया है - यह शब्द रंगों के मिश्रण का वर्णन करने के लिए प्रयोग किया जाता है. एनडीडीबी के अनुसार, बेलाही नस्ल की गायें एक ब्यान्त में औसतन 1014 लीटर दूध देती हैं, जबकि अधिकतम एक ब्यान्त में 2092 लीटर तक दूध देती हैं. ऐसे में आइए गाय की देसी नस्ल बेलाही की पहचान और विशेषताओं के बारे में जानते हैं-
• बेलाही नस्ल के गायों की ऊंचाई लगभग 120.33 सेमी होती है.
• बैलों की ऊंचाई लगभग 131.13 सेमी होती है.
• गायों का वजन 250 किलोग्राम से 300 किलोग्राम होता है.
• बेलाही नस्ल की गायें एक ब्यान्त में औसतन 1014 लीटर दूध देती हैं.
• अधिकतम एक ब्यान्त में 2092 लीटर तक दूध देती हैं.
• दूध में औसतन 5.25 प्रतिशत फैट यानी वसा पाया जाता है.
• दूध में न्यूनतम फैट 2.37 पाया जाता है, जबकि अधिकतम 7.89 प्रतिशत पाया जाता है.
• बेलाही नस्ल के मवेशियों का रंग एक समान लेकिन अलग होता है और वे आमतौर पर लाल भूरे, भूरे या सफेद रंग में पाए जाते हैं.
• मवेशी मध्यम आकार के होते हैं.
• सिर सीधा होता है, चेहरा पतला होता है, माथा चौड़ा होता है.
• कूबड़ आकार में छोटा से मध्यम होता है.
• थन का आकार मध्यम होता है.
• सींग का आकार, ऊपर और अंदर की ओर मुड़ा हुआ होता है.
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बेलाही नस्ल की गायें हरियाणा की तलहटी में गुज्जर समुदाय द्वारा दूध और भार के लिए पाले जानी वाली दोहरी नस्ल है. प्रवास के दौरान इन मवेशियों को खुले में रखा जाता है. सर्दियों के महीनों के दौरान जब मवेशी प्रवास नहीं कर रहे होते हैं, तो उन्हें ज्यादातर शेड में रखा जाता है. इन मवेशियों को केवल चराने के लिए ही रखा जाता है. कुछ डेयरी द्वारा गायों को दूध निकालने के दौरान चारा खिलाया जाता है. इन मवेशियों को दो से तीन बैलों के साथ सैकड़ों मादाओं के झुंड में रखा जाता है जिन्हें हर 3-4 साल में बदल दिया जाता है. युवा बछड़ों को आमतौर पर खेती के लिए बेच दिया जाता है. हालांकि मादाओं को झुंड में रखा जाता है.
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