एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो बद्री गाय हर रोज डेढ़ से दो लीटर तक दूध देती है. इसके दूध में ए2 होता है. वहीं प्रोटीन की मात्रा भी खूब होती है. इस गाय के दूध को दवाई भी माना जाता है. यही वजह है कि बद्री गाय के दूध से बना घी पांच हजार रुपये किलो तक बिकता है. महंगा होने के बाद भी बद्री गाय के दूध से बने घी की बहुत डिमांड है. जानकारों की मानें तो घी की डिमांड उत्पादन से कहीं ज्यादा है. इसी को देखते हुए बद्री गाय की नस्ल सुधार और दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए उत्तराखंड में एक खास प्रोजेक्ट शुरू किया गया है.
सबसे ज्यादा बद्री गाय उत्तराखंड में पाई जाती हैं. बद्री गायों की नस्ल सुधारने और दूध उत्पादन बढ़ाने पर काम करने के लिए ही पहले दो साल तक गायों का रोजाना का दूध उत्पादन नापा जाएगा. इसके लिए उत्तराखंड के चार जिलों की गायों को चिन्हिबत किया गया है. चार जिलों के 90 गांवों की तीन हजार से ज्यादा गायों का दूध नापा जाएगा.
उत्तराखंड में बद्री गायों के दूध नापने की योजना राष्ट्रीय गोकुल मिशन और राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड के सहयोग से पहली बार हो रही है. प्रोजेक्ट से जुड़े एक्सपर्ट की मानें तो बद्री गायों के गर्भवती होने के बाद रोजाना उनके दूध का वजन किया जा रहा है. ऐसी गायों की संख्या तीन हजार से ज्यादा है. बद्री गाय को उत्तराखंड की कामधेनु भी कहा जाता है और ये हर रोज दो लीटर तक दूध देती है. बद्री गाय के दूध को बहुत ज्यादा फायदेमंद माना जाता है इसके दूध में चार फीसद फैट और ए-2 प्रोटीन होता है, जो इम्यूनिटी को बूस्ट करता है. हर रोज दूध का आंकड़ा जमा करने के साथ ही एक बार गाय का टिश्यू सैंपल, ब्लड सैंपल, दूध देने का समय नापकर भारत पशुधन एप के माध्यम से गुजरात भेजा जाएगा, जिसके बाद वैज्ञानिकों की टीम बद्री गाय का दूध बढ़ाने और नस्ल सुधार पर काम करेगी.
बद्री गाय के दूध नापने का ये प्रोजेक्ट दो साल तक चलेगा. इस प्रोजेक्ट के तहत चंपावत के 24 गांवों में 12 सेंटर बनाए गए हैं जहां 820 गायों पर रिसर्च होगी. अल्मोड़ा जिले के 24 गांवों में 12 मिल्क रिकार्डिंग सेंटर स्थापित कर 820 गायों पर काम होगा. पिथौरागढ़ जिले के 20 गांवों में 11 सेंटर स्थापित कर 800 गायों और नैनीताल जिले के 22 गांवों में 11 सेंटर स्थापित कर 800 गायों पर काम किया जाएगा. उत्तराखंड पांचवां ऐसा राज्य है जो गायों की एक नस्ल पर काम कर रहा है. इसके अलावा आंध्र प्रदेश, केरल, गुजरात और कर्नाटक में भी गायों की एक ही नस्ल पर काम हुआ था. इस रिसर्च के लिए उत्तराखंड कोआपरेटिव डेरी फेडरेशन (यूसीडीएफ) भारत सरकार इस प्रोजेक्ट में मदद कर रहा है.
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