भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) की केंद्रीय सलाहकार समिति (CAC) और खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन (FDA) ने मिलकर मिलकर एक प्लान तैयार किया है. इस प्लान के तहत दोनों विभागों की टीम पोल्ट्री फार्म और फिश पॉन्ड पर जाएंगी. मुर्गे और मछली पालन करने वाले किसानों से मिलेंगी. उन्हें पोल्ट्री और मछली पालन में एंटीबायोटिक दवाईयों के इस्तेमाल के खिलाफ जागरुक किया जाएगा. साथ ही स्कूलों में भी ये जागरुकता कार्यक्रम चलाया जाएगा. गौरतलब रहे सोशल मीडिया समेत कई दूसरे प्लेटफार्म पर इस तरह के आरोप लगाए जाते हैं.
ऐसा दावा किया जाता है कि पोल्ट्री बाजार में तरह-तरह की एंटीबायोटिक दवाईयों का बेतहशा इस्तेमाल बढ़ रहा है. ब्रॉयलर मुर्गे का वजन बढ़ाने और अंडे ज्यादा मिलें इसके लिए मुर्गियों को एंटीबायोटिक की खुराक दी जा रही हैं. वहीं मछलियों में भी बीमारी ना फैले इसके लिए एंटीबायोटिक का इस्तेमाल हो रहा है. शायद यही वजह है कि नवंबर में वर्ल्ड AMR अवेयरनेस वीक मनाया जाता है. समय-समय पर केन्द्रीय डेयरी और पशुपालन मंत्रालय भी इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी करता रहता है.
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एनिमल एक्सपर्ट का मानना है कि पशुओं और इंसानों के साथ ही एंटीबायोटिक दवाएं पर्यावरण के लिए भी बेहद खतरनाक होती हैं. होता ये है कि ज्यादा एंटीबायोटिक देने से जानवरों में एंटीमाइक्रोबायल रेजिस्टेंस (AMR) पैदा हो जाता है. एएमआर एक ऐसी स्टेज है जिसमें किसी बीमारी को ठीक करने के लिए जो दवा या एंटीबायोटिक दी जाती है वो काम करना बंद कर देती है. कुछ बैक्टीरिया कई दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता डवलप कर लेते हैं जिससे वो दवाएं असर करना बंद कर देती हैं. इस कंडीशन को सुपर बग कहा जाता है. सुपर बग कंडिशन से हर साल 10 लाख से ज्यादा लोगों की मौत होती है.
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