
दिसम्बर शुरू हो चुका है. तापमान भी धीरे-धीरे कम हो रहा है. ठंड बढ़ने लगी है. मछलियों के तालाब का पानी सुबह-शाम कुछ ज्यादा ही ठंडा हो रहा है. फिशरीज एक्सपर्ट का कहना है कि ऐसे में सबसे पहले मछलियों की खुराक कम हो जाती है. मछलियां फीड खाना कम कर देती हैं. ऐसे में होता ये है कि तालाब में बचा हुआ फीड तली में बैठने लगता है. धीरे-धीरे वो फीड तालाब में सड़ने लगता है. तालाब का पानी प्रदूषित हो जाता है. जिसके चलते मछलियां बीमार होने लगती हैं. इसलिए ये सलाह दी जाती है कि जैसे-जैसे तापमान घटने लगे तो मछलियों की खुराक को भी कम कर दें.
एकदम से तो नहीं, लेकिन 25 से 75 फीसद तक कम कर दें. और आखिर में जब पानी का तापमान 10 डिग्री से नीचे चला जाए तो खुराक को बिल्कुल ही बंद कर दें. अगर पानी ज्यादा ठंडा हुआ तो मछली बीमार पड़ जाती है. इसलिए पानी के तापमान में बदलाव होते ही ट्रीटमेंट करना जरूरी है. क्योंकि मछली ठंडे खून वाला जीव है. इस मौसम में सुबह-शाम पानी का तापमान चेक करते रहना चाहिए, जिससे आक्सीजन का लेवल पता चलते रहे.
डॉ. मीरा ने बताया कि सर्दियों के दिन एक तो छोटे होते हैं और ऊपर से उस दौरान सूरज की रोशनी भी इतनी नहीं आती है जितनी गर्मियों में आती है. बचे हुए फीड के चलते तालाब का पानी भी प्रदूषित हो जाता है. यही वजह है कि तालाब के पानी में आक्सीजन की मात्रा कम होने लगती है. लगातार बादल छाए रहने से तो हालात और भी खराब हो जाती है. इसलिए ऐसे वक्त में मछली पालकों का काम थोड़ा बढ़ जाता है.
ऐसे में तालाब में आक्सीजन की मात्रा बढ़ाने के लिए पम्प का ताजा पानी तालाब में मिला दें या फिर तालाब में एरेटर का इस्तेमाल करें. सुबह के वक्त एरेटर का इस्तेपमाल जरूर करें. सर्दियों में लगातार बादल छाए रहने के दौरान पानी में पीएच की स्तर की भी नियमित निगरानी करनी चाहिए. अगर तालाब के पानी का पीएच 7.0 से नीचे चला जाए तो फौरन ही दो किश्तों में 100 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से तालाब में चूना डाल दें.
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