राजस्थान के कई जिलों में घोड़ों में ग्लैंडर्स रोग के लक्षण दिखाई दे रहे हैं. प्रदेश के चार जिलों जयपुर, झुंझुनू, अलवर और बीकानेर जिले में घोड़ों में यह लक्षण मिले हैं. इससे अब तक छह घोड़ों की मौत हो चुकी है. पशुपालन विभाग ने भारत सरकार की गाइड लाइंस के अनुसार इन चारों जिलों को संक्रमित क्षेत्र घोषित करते हुए 25 किलोमीटर परिधि में अश्व वंशीय पशुओं के आवाजाही और इकठ्ठा होने पर रोक लगा दी गई है. विभाग ने अलवर जिले की नीमराना तहसील, झुंझुनू जिले की सूरजगढ़ और बुहाना तहसील, जयपुर जिले की सांगानेर तहसील और बीकानेर तहसील को संक्रमित क्षेत्र घोषित किया है.
दरअसल, पशुपालन विभाग के निदेशक डॉ. भवानी सिंह राठौड़ ने बताया कि इस संबंध में आदेश जारी कर दिए गए हैं. साथ ही जयपुर, झुंझुनू, अलवर एवं बीकानेर जिले को रोग प्रकोप चिन्हित किया गया है. साथ ही रोग की रोकथाम के लिए गाइड लाइंस को लागू कर दिया गया है.
पशुपालन विभाग के डायरेक्टर डॉ. भवानी सिंह राठौड़ ने कहा कि घोड़ों को मेलों और सार्वजनिक स्थानों पर नहीं ले जाया जा सकेगा. मार्च महीने में बाड़मेर जिले के तिलवाड़ा में लगने वाले मल्लिनाथ पशु मेले पशु पालकों को अश्व वंशीय पशुओं को ले जाने के लिए एलिसा और सीएफटी टेस्ट में नेगिटिव रिपोर्ट देनी होगी. अगर रिपोर्ट नहीं दी जाती है तो घोड़ों को मेले में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा. राठौड़ ने बताया कि बीमारी के संबंध में अखबारों में भी सूचना निकलवा दी गई है.
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प्रदेश में ग्लैंडर्स रोग की वर्तमान स्थिति जानने के लिए किसान तक ने पशुपालन विभाग में संयुक्त निदेशक रोग एवं निदान डॉ. रवि इसरानी से बात की. उन्होंने बताया, “चार जिलों में ग्लैंडर्स की पुष्टि हुई है. जिसमें छह घोड़ों की मौत अब तक हुई है. विभाग ने 25 किलोमीटर एरिया में अश्व वंश जानवरों के आवागमन पर रोक लगा दी है. अब तक विभाग ने एक हजार से अधिक सैंपल हिसार स्थित राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र में भेजे हैं.
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जहां से छह घोड़ों की पॉजिटिव रिपोर्ट मिली है. इनमें से चार को यूथेनाइज (मानवीय तरीके से मारना) किया गया है जबकि दो की पहले ही बीमारी से मौत हो गई.” उन्होंने कहा कि इस रोग से प्रभावित अश्व वंशीय पशुओं के पशुपालकों को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित मुआवजा दिया जायेगा.
पशु चिकित्सक डॉ. सत्यनारायण मीणा के अनुसार ग्लैंडर्स जीवाणु जनित बीमारी है. अगर किसी घोड़े को ये बीमारी होती है, तो उसके नाक से तेज म्यूकसनुमा पानी बहने लगता है, शरीर में फफोले हो जाते हैं, सांस लेने में दिक्कत महसूस होने लगती है. साथ ही बुखार आने के कारण घोड़ा सुस्त हो जाता है. एक जानवर से दूसरे जानवर में फैलने वाली यह बीमारी आमतौर पर घोड़ों में होती है.
इस बीमारी से बचाव के लिए अभी तक कोई भी दवा या टीका नहीं बना है. इसीलिए रोगी पशु से दूरी एवं बायो सेफ्टी उपाय ही बचाव के उपचार हैं. उन्होंने कहा की यदि किसी अश्व वंशीय पशु में ग्लैंडर्स रोग के लक्षण देखे जाये तो तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क किया जाना चाहिए. ताकि रोग की समय रहते रोकथाम की जा सके.
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