पंगास मछली पालन से अच्छी कमाई कर सकते हैं किसान, पढ़ें यहां

पंगास मछली पालन से अच्छी कमाई कर सकते हैं किसान, पढ़ें यहां

निशांत बताते हैं कि पंगास मछली की खासियत यह है कि पंगास मछली दुनिया भर में सबसे अधिक खाई जाती है. यह प्रोटीन और और विटामीन का सबसे सस्ता स्रोत है. इसके अलावा इस मछली में ऊपरी चमड़ी हटाने की जरूरत नहीं होती है.

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पंगास मछली पालन से अच्छी कमाई कर सकते हैं किसान, पढ़ें यहांपंगास मछली फोटोः किसान तक

मछली पालन रोजगार का एक बेहतरीन माध्यम है, पर इसके लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि कौन सी मछली का पालन किया जाए, ताकि अधिक से अधिक मुनाफा कमाया जा सके. पंगास मछली एक ऐसी ही मछली की प्रजाति है जिसमें मछली किसान कम समय में कमाई कर सकता है. इस मछली की खासियत यह होती है कि किसान इस मछली की इंटेंसिव फार्मिग कर सकता है, जबकि इसके अलावा दूसरी मछलियों में यह इतना सफल नहीं होता है. इंटेंसिव फार्मिंग का मतलब यह होता है कि छोटी जगह में सघन तरीके से अधिक से अधिक मछली का पालन किया जा सके. 

पंगास कैटफिश प्रजाति की मछली है. यह एक विदेशी मछली है जिसे भारत में 1995 में पहली बार सघन के लिए लाया गया था. शुरूआत में आंध्र प्रदेश औरपश्चिम बंगाल में इसका पालन किया गया था, इसके बाद देश के अन्य हिस्सों में भी इसका पालन होने लगा. झारखंड में पंगास मछली का पालन करने वाले मत्स्य पालक निशांत कुमार बताते हैं कि झारखंड में पहले आंध्र प्रदेश से इस मछली की सप्लाई होती थी. चूंकी यह मीठे पानी की मछली है इसका बड़े पैमाने पर यहां पर चांडिल डैम बनने के बाद पालन शुरू हुआ. आज के समय में यह राज्य के मत्स्य पालकों की पहली पसंद है. पंगास को इस नाम के अलावा बासा,जासरी और प्यासी के नाम से भी जाना जाता है. 

इन नामों ने जानते हैं इन्हें 

निशांत बताते हैं कि पंगास मछली की खासियत यह है कि पंगास मछली दुनिया भर में सबसे अधिक खाई जाती है. यह प्रोटीन और और विटामीन का सबसे सस्ता स्त्रोत है. इसके अलावा इस मछली मेंउपरी चमड़ी हटाने की जरूरत नहीं होती है. इसके साथ ही बच्चों के लिए यह मछली लाभदायक होती है क्योंकि इसके कांटे आराम से निकाले जा सकते हैं. इस मछली में ओमेगा थ्री पाया जाता है. जो हर्ट के लिए सबसे अच्छा माना जाता है. निशांत बताते हैं कि पहले झारखंड में इसका पालन नहीं होता था इसके कारण ताजी मछलिया यहां के बाजारों तक नहीं पहुंच पाथी थी इसलिए लोग इसका स्वाद नहीं ले पाते थे पर अब ताजी

मछलियां यहां के लोगों को मिल रही है.

छोटी जगह में अधिक उत्पादन इस मछली से हासिल किया जा सकता हैं. किसान के लिए पंगास मछली पालन फायदे का सौदा होता है क्योंकि अन्य देसी मछलियों की तुलना में सात से आठ महीने में यह एक किलो का तैयार हो जाता है. इतना ही नहीं अगर पानी का पैरामीटर भी खराब होता है तब भी यह मछली के उत्पादन में ज्याजा फर्क नहीं पड़ता है. कम ऑक्सीजन में भी यह मछली जीवित रह जाती है. अगर उत्पादन की बात करें तो एक एकड़ के जलक्षेत्र में देसी कार्प मछलियों की पैदावार तीन से चार टन होती है, जबकि इतनी ही क्षेत्र में पंगास मछली का उत्पादन 15-20 टन होता है. हालांकि इसमें मछलियों को खाना देने की जरूरत होती है.

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