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नक्सलवाद पर भारी पड़ा गौपालन, गाय ने बदल दी झारखंड के इस गांव की तकदीर

नक्सलवाद पर भारी पड़ा गौपालन, गाय ने बदल दी झारखंड के इस गांव की तकदीर

झारखंड के कोटरी गांव के युवाओं के सामने कुछ समय पहले रोजगार का अभाव था. इस वजह से गांव के युवाओं का झुकाव नक्सलवाद की तरफ हो रहा था. लेक‍िन, गौपालन से गांव की आज तस्वीर बदल दी है.

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गायों के बीच खड़ें कोटारी गांव के लखन यादव            फोटोः किसान तक गायों के बीच खड़ें कोटारी गांव के लखन यादव फोटोः किसान तक

झारखंड के एक गांव की तस्वीर गौपालन ने बदल दी है. कुल म‍िलाकर सच ये है कि‍ नक्सलवाद पर गौपालन भारी पड़ा है. ये कहानी झारखंड के बुढ़मू प्रखंड अंतर्गत कोटारी गांव की है. गांव आज समृद्धि की राह पर आगे बढ़ रहा है. गांव में हरआदमी के पास रोजगार है, गांव में इसकी शुरुआत 2008 में हुई थी, जब गांव में पहली बार मेधा डेयरी द्वारा एमपीपी का गठन किया गया और फिर बल्क मिल्क कूलिंग मशीन लगाई गई. इसके बाद गांव वालों को गाय पालन के लिए प्रेरित किया गया. इसका असर दिखा आज गांव में 800 लीटर दूध रोजाना उत्पादन  हो रहा है.

नक्सलवाद की तरफ हो गया था झुकाव

कोटारी गांव बुढ़मू प्रखंड का एक ऐसा गांव हैं, जो जंगलों से घिरा हुआ है. एक वक्त था जब यह गांव काफी पिछड़ा हुआ था. गांव के युवाओं का झुकाव नक्सलवाद की तरफ हो रहा था. तो वहीं कई युवा गांव से पलायन करने लगे थे. रोजगार के अभाव में समाजिक कुरितीयां गांव में व्याप्त थीं. गांव में बीएमसी की देखरेख करने वाले किसान लखन यादव ने बताया कि एक वक्त ऐसा भी था गांव में रोजगार के अभाव में युवाओं का झुकाव नक्सलवाद की तरफ हो रहा था. वे बताते हैं क‍ि उस समय युवाओं को अधिक से अधिक संख्या में नक्सलवादी बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाने लगा था.  

गाय ने बदल दी गांव की किस्मत

क‍िसान लखन यादव बताते हैं क‍ि इसके बाद गांव में गौपालन के जरिए जागरुकता लाने की कोशिश की गई. गांव में लोगों को गौपालन के फायदे को सझाया गया, तब ग्रामीण मुख्यधारा से जुड़ते चले गए. गांव में कृषि योग्य जमीन तो है. लेक‍िन, सिंचाई एक बड़ी समस्या थी. इसके कारण भी लोग गांव से रोजगार के लिए पलायन कर जाते थे. लेक‍िन, गौपालन से जुड़ने के बाद गांव से पलायन कम हुआ. आज गांव में 65 फीसदी से अधिक परिवारों से पास गाय है. इतना ही नहीं अब सभी  के पास शंकर नस्ल की गाय और भैंस हैं.

दूध के मिल रहे अच्छे दाम

लखन यादव बताते हैं कि एक वक्त ऐसा था जब गांव में दूध का उचित दाम भी नहीं मिलता था और ना ही अधिक दूध का उत्पादन होता था. लेक‍िन जब से गांव में मेधा डेयरी का बल्क मिल्क कूलिंग सेंटर की स्थापना की गई और एमपीपी बनाया गया. तब से यहां के ग्रामीणों को दूध के अच्छे दाम मिलने लगे हैं. ग्रामीणों को जब दूध के अच्छे दाम मिलने लगे तब गांव में समृद्धि आई है. गांव में अब लोग अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ा रहे हैं. सही समय पर पशुओं का टीकाकरण किया जाता है, गांव में पर्याप्त मात्रा में गोबर हो रहा है. इसलिए अब यहां पर लोग खेती पर भी ध्यान दे रहे हैं. वहीं भी किसान जैविक खेती कर रहे हैं. 

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