गाय-भैंसों के दूध उत्पादन पर आंधी-तूफान का होता है असर? NDRI ने शुरू की रिसर्च

गाय-भैंसों के दूध उत्पादन पर आंधी-तूफान का होता है असर? NDRI ने शुरू की रिसर्च

यह रिसर्च ऐसे समय में शुरू की गई है जब हमेशा आंधी-तूफान की समस्या सामने आ रही है. जलवायु परिवर्तन ने आंधी-तूफान को सामान्य घटना बना दिया है. ऐसे में जब इंसानों पर इसका असर होता है, तो पशुओं पर भी तो होता होगा. NDRI की रिसर्च में पता चलेगा कि आंधी-तूफान का प्रभाव दूध उत्पादन पर पड़ता है या नहीं.

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गाय-भैंसों के दूध उत्पादन पर आंधी-तूफान का होता है असर? NDRI ने शुरू की रिसर्चNDRI की टीम ने दूध उत्पादन पर आंधी-तूफान के असर पर रिसर्च शुरू की है

क्या आंधी-तूफान और प्राकृतिक आपदा का असर दूध के उत्पादन पर भी पड़ता है? इस पर डेयरी क्षेत्र में देश का अग्रणी अनुसंधान संस्थान एनडीआरआई रिसर्च कर रहा है. यह संस्थान तापमान और हवा के दबाव का पशुओं के शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है, इस पर रिसर्च कर रहा है. रिसर्च के लिए संस्थान ने ऐसी विंड ब्लास्ट मशीन तैयार की है जो न्यूनतम हवा के साथ-साथ 85 किलोमीटर प्रति घंटे की हवा फेंकने में सक्षम है. पशुओं पर इस मशीन के प्रयोग से यह पता लगाया जा रहा है कि तूफानों और पंखों से पशुओं को दी जाने वाली हवा का उनके दूध उत्पादन और स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है.

करनाल स्थित नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (NDRI) के निदेशक डॉ धीर सिंह के नेतृत्व में गुरुवार को विंड ब्लास्ट तकनीक का लाइव प्रदर्शन किया गया. संस्थान के निदेशक डॉ धीर सिंह ने बताया कि निकरा प्रोजेक्ट के तहत उच्च हवा के दबाव का पशुओं के शरीर पर प्रभाव का अध्ययन किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि अभी तक हमारे पास ऐसा कोई मानक नहीं है जिससे हम पता लगा सकें कि कितनी हवा के स्तर तक पशु आराम महसूस कर सकते हैं. हवा का दबाव एक सीमा से ऊपर जाता है तो उससे पशु को क्या नुकसान होते हैं, इस पर अभी शोध चल रहा है.

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क्या कहा NDRI के डायरेक्टर ने

धीर सिंह ने कहा कि वातावरण में जब अचानक कोई परिवर्तन आता है तो उसका तुरंत प्रभाव दिखाई नहीं देता. हार्मोन परिवर्तन होने से उसका प्रभाव कुछ दिनों बाद होता है. यही असर फसलों में भी नजर आता है. जैसे ही तापमान बढ़ता है तो उसका दूध उत्पादन पर असर होता है जो पिछले साल नजर भी आया था. निदेशक ने कहा कि इस पायलट प्रोजेक्ट के तहत हम न्यूनतम और अधिकतम तापमान जिस पर पशु आराम महसूस कर सकें, उसे सेट करने का प्रयास कर रहे हैं ताकि किसान और पशुपालक भी उसी तापमान को अपने पशु बाड़े में सेट करें. इससे उनके पशु के स्वास्थ्य और दूध उत्पादन पर कोई असर नहीं होगा.

दूध उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ आशुतोष सिंह ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के अलग-अलग फैक्टर पर हमारा पिछले 12 साल से शोध चल रहा है. इस दौरान जलवायु परिवर्तन पर जो डाटा हमने इकट्ठा किया है वह पहले कभी नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि शोध के दौरान हमने पाया कि किसान अपने पशु बाड़े में जो पंखा इस्तेमाल करते हैं उसकी गति मानक के अनुरूप नहीं होती, क्योंकि पशु को जितनी हवा और तापमान चाहिए वह उससे कम या ज्यादा होता है. 

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पंखा चलाने से पशुओं पर असर

एनडीआरआई ने कहा कि घरों या सभागार वगैरह में तो इसका ध्यान रखा जाता है, किंतु पशु घर में इस पर काम नहीं होता. इसी को देखते हुए हम एक ऐसा मानक तय करें जिससे पशु को परेशानी न हो. डॉ. आशुतोष ने बताया कि इस विंड ब्लास्ट मशीन से हमने पाया कि किस गति पर पशु सामान्य या असामान्य व्यवहार करता है. इसका गहनता से अध्ययन करने के बाद हम किसानों को इसकी सिफारिश करेंगे कि साल के किस मौसम में कितनी रफ्तार से हम पंखा चलाएं जिससे पशुओं के स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव न पड़े. उन्होंने कहा कि प्राकृतिक तूफानों और आपदाओं के बाद पशु पर हुए प्रभाव को कम करने के लिए उसे क्या खुराक दी जाए, इस पर भी हम एडवाइजरी जारी करेंगे.

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