
मुर्गी पालन ग्रामीण और शहरी इलाकों में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. इसी में टर्की मुर्गी पालना का प्रचलन भी तेजी से बढ़ा है. लोग इसे मुनाफे के व्यवसाय के रूप में देख रहे हैं. टर्की (Turkey) का मांस बहुत ही स्वादिष्ट और औषधीय गुणों से भरपूर होता है. पटना जिले के फुलवारी शरीफ ब्लॉक के छतरा गांव में विपिन कुमार झा दो साल से टर्की पालन कर रहे हैं. वे बताते हैं कि टर्की पक्षी के मीट की मांग बढ़ी है. पिछले साल दिसंबर महीने में विपिन झा ने 150 से अधिक टर्की बेचे थे. इसके मांस में मटन और चिकन दोनों का स्वाद ले सकते हैं.
टर्की एक विदेशी नस्ल है, लेकिन भारत में भी बड़े पैमाने पर किसान इसका पालन कर रहे हैं. इसकी तुलना बड़े पक्षियों के रूप में की जाती है. टर्की की मुख्य रूप से दो प्रजाति पाई जाती है, जिनमें नेत्रांकित टर्की और जंगली टर्की हैं. ये घरों में पाले जाने वाले मुर्गा और मुर्गियों की तरह ही दिखते हैं. मगर इसका आकार अन्य मुर्गियों की तुलना में अधिक बड़ा होता है. लोग मांस और अंडा के लिए इसे पालते हैं.
विपिन कुमार झा वैसे 20 साल से पशुपालन और मत्स्य पालन से जुड़े हुए हैं. लेकिन पिछले दो साल से उन्होंने टर्की का काम शुरू किया है. झा ने 'किसान तक' को बताया कि टर्की की सबसे बड़ी खासियत है कि इसके आगे का हिस्सा सफेद यानी चिकन के जैसा होता है. वहीं पीछे वाला भाग बकरे के मीट यानी लाल रंग का होता है. इसके कारण मांग अधिक है. लोग एक पक्षी से मटन और चिकन दोनों का स्वाद लेते हैं. इसमें बीमारियों का डर अन्य पक्षियों की तुलना में कम रहता है. अगर कोई इसका पालन करना चाहता है, तो उसे शुरुआत के एक महीना टर्की चूजे का ध्यान रखना पड़ता है. विपिन झा ने क्रिसमस के दौरान 150 टर्की बेचे, जिसमें लागत 18000 रुपये के आसपास आया. वहीं शुद्ध कमाई 50 हजार रुपये तक हुई.
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किसान विपिन कुमार झा कहते हैं कि एक टर्की के लिए करीब 3-4 वर्ग फुट आराम के लिए जगह चाहिए. प्रति नर टर्की पूरे दिन में करीब 150 से 200 ग्राम तक चारा खाता है. अगर महीने की बात की जाए तो 100 से 150 रुपये की लागत प्रति टर्की पर आ जाता है. टर्की एक साल में 14 किलो तक का हो जाता है. झा कहते हैं कि छह महीने के बाद ही इसका मीट खाने लायक होता है. सात महीने में आठ किलो तक वजन हो जाता है. करीब एक साल में टर्की पर पूरा खर्च दो हजार से अधिक नहीं आता है. वहीं जिंदा टर्की 450 रुपये प्रति किलो बिकता है. यानी अगर एक साल में एक टर्की पक्षी 12 किलो का भी होता है, तो एक पक्षी करीब 5400 रुपये में बिक जाएगा. यानी एक टर्की पर 3400 रुपये तक की कमाई आसानी से हो जाती है.
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टर्की पालन करने वाले विपिन कुमार झा बताते हैं कि टर्की का उपयोग मछली पालन में भी कर सकते हैं. टर्की चारा के साथ कीड़े, कीट भी खाते हैं, जिससे तालाब के आसपास सफाई बनी रहती है. ये तालाब के किनारे बोलते हैं तो मछलियों में एक हलचल पैदा होती है. इसके कारण मछली एक स्थान से दूसरे स्थान तक चली जाती है. इससे तालाब में ऑक्सीजन की कमी नहीं होती. मछलियों की कसरत भी हो जाती है. नर टर्की एक साथ आवाज निकालते है और पूरे दिन में करीब 150 बार एक साथ आवाज निकालते हैं. वहीं तालाब के किनारे चरने के दौरान करीब 15 से 20 प्रतिशत चारा बच जाता है. इसके अपशिष्ट (मल) से खाद भी तैयार की जाती है, जो खेती के लिए उपजाऊ होती है.
टर्की मुर्गी दिन में पूरी तरह से सक्रिय रहती है. वहीं रात में आराम से सो जाती है. वहीं नर पक्षी जब एग्रेसिव मूड में रहता है तो उसके सिर का रंग लाल होता है. जब यह शांत रहता है तो सिर का रंग नीला हो जाता है. वहीं इसका शरीर गर्मी सहन करने के लिए अनुकूल होता है. नर टर्की अपनी मादा को रिझाने के लिए अपनी पूंछ को मोर की तरह फैला भी सकता है.
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