Monsoon 2023: कैसे और कहां से भारत में एंट्री लेता है मॉनसून, हर सवाल का जवाब जानने के लिए पढ़ें ये कहानी

Monsoon 2023: कैसे और कहां से भारत में एंट्री लेता है मॉनसून, हर सवाल का जवाब जानने के लिए पढ़ें ये कहानी

What is Monsoon: केरल में जब पहला कदम मॉनसून रखता है, तब भारत में मॉनसून के पहुंचने की घोषणा होती है. वहीं, भारत के तमाम राज्यों में पूरे साल में जितनी बारिश होती है उसकी लगभग 90 फीसदी बारिश इन्हीं चार महीने में रिकॉर्ड की जाती है. ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर मॉनसून क्या है, मॉनसून भारत में कैसे और कहां से एंट्री लेता है-

मौसम विशेषज्ञ देवेंद्र त्रिपाठीमौसम विशेषज्ञ देवेंद्र त्रिपाठी
देवेंद्र त्रिपाठी
  • Noida ,
  • Jun 20, 2023,
  • Updated Jun 20, 2023, 7:52 PM IST

भारत में कृषि के लिए मॉनसून बेहद मायने रखता है. क्योंकि भारत के लगभग 65 प्रतिशत रकबे में वर्षा आधारित खेती होती है. उसमें भी खरीफ सीजन में सबसे ज्यादा वर्षा आधारित खेती होती है. भारत के तमाम राज्यों में पूरे साल में जितनी बारिश होती है उसकी लगभग 90 फ़ीसदी बारिश इन्हीं चार महीने में रिकॉर्ड की जाती है. वहीं अगर मॉनसून जून, जुलाई, अगस्त या सितंबर में कमजोर होता है, तो भारत में खाद्यान्न उत्पादन पर संकट आ जाता है और यह भारत की पूरी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है. 

ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर मॉनसून क्या है, मॉनसून को अल नीनो कैसे प्रभावित करता है, भारत में मॉनसून कब और क्यों आता है. इसके अलावा, किन-किन राज्यों में कब कितनी बारिश होती है, तो आइए मौसम विशेषज्ञ देवेंद्र त्रिपाठी के अनुसार विस्तार से जानते हैं-

दक्षिण-पश्चिम मॉनसून किसे कहते हैं?

1 जून से लेकर 30 सितंबर के बीच एक दिशा में, एक लाइन में, एक रिदम में, एक स्पीड में लंबे क्षेत्र पर अरब सागर से बंगाल की खाड़ी की ओर हवाएं चलती हैं. वही 1 जून से लेकर 30 सितंबर तक यही परिदृश्य रहता है. वहीं हवाओं का जो डायरेक्शन होता है वह दक्षिण-पश्चिम होता है. इसलिए इसको दक्षिण-पश्चिम मॉनसून कहा जाता है. हालांकि, अगर इस परिदृश्य में परिवर्तन आता है तो भारत में मॉनसून कमजोर हो जाता है और उसके लिए कई सारे फैक्टर होते हैं.

मॉनसून का आगमन कब होता है?

आमतौर पर भारत में 20 मई को मॉनसून अंडमान निकोबार दीप समूह के तमाम क्षेत्रों में पहुंच जाता है. हालांकि, तब भारत में मॉनसून का आगमन नहीं माना जाता है, जबकि केरल में जब पहला कदम मॉनसून रखता है, तब भारत में मॉनसून के पहुंचने की घोषणा होती है और इसके बाद अगले चरण में पांच-पांच दिनों के अंतराल पर मॉनसून आगे बढ़ता रहता है. यह सामान्य बात मैं बता रहा हूं. बात सामान्य तब होती है, जब सामान्य परिस्थियां हों.

मॉनसून कब होता है प्रभावित?

प्रशांत महासागर से आने वाली ट्रेड विंड्स जोकि भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर चलती हैं यहां पर जब ट्रेड विंड्स पूर्वी दिशा से आनी कमजोर हो जाती हैं तब एल नीनो उभर जाता है और मॉनसून कमजोर हो जाता है और इस बार एल नीनो है.

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गौरतलब है कि भारत के मौसम पर एक बड़ा खतरा इस बार एल नीनो का बना हुआ है जिसके चलते कम बारिश होने की संभावना है और जिसकी बानगी आपने अब तक देख ली होगी. क्योंकि भारत में मॉनसून के आगमन में 10 दिनों का विलंब हुआ है और बाकी जगहों पर जहां पर मॉनसून नहीं पहुंचा है उन जगहों पर भी मॉनसून बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रहा है. हालांकि, अब मौसम प्रगति करेगा दो-तीन दिनों 20 से  22 जून के बीच में कई जगहों पर मॉनसूनी बारिश होने की संभावना अच्छी दिखाई दे रही है. बारिश होने वाली है, लेकिन इसके बावजूद अभी तक मॉनसून कमजोर रहा है. यह लगभग तय है. 

किस राज्य में कब और कितनी बारिश होती है?

दरअसल, 1 जून से 30 सितंबर के बीच में सबसे मध्य और पश्चिम भारत का हिस्सा गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, महाराष्ट्र, गोवा, दादरा नगर हवेली और दमन दीव जो रीजन हैं. इन रीजन में पूरे साल में 12 महीने में जितने बारिश होती है उसकी 90 फीसदी बारिश इन्हीं चार महीनों में 1 जून से 30 सितंबर के बीच में होती है.

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जबकि, उत्तर पश्चिम और उत्तर भारत का जो पहाड़ी और मैदानी हिस्सा यानी जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में जितनी बारिश पूरे साल में होती है उसकी लगभग 50 से 75 फीसद बारिश मॉनसून सीजन में होती है. 

दक्षिण भारत में कब होती है बारिश?

इसके अलावा, दक्षिण भारत में नॉन मॉनसून सीजन में 25 से 50 फीसद बारिश होती है. यानी मॉनसून सीजन में कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पुदुचेरी, केरल, लक्षद्वीप और अंडमान निकोबार दीप समूह में 1 जून से 30 सितंबर के बीच जो बारिश रिकॉर्ड की जाती है वह पूरे साल की 50 से 75 फीसदी है.

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अब आप सोच रहे होंगे की यहां पर बारिश कम क्यों होती है, तो उसकी वजह मैं आपको बताता हूं कि कई बार यहां पर रिज बनती है जिसकी वजह से मॉनसूनी हवाएं तमिलनाडु को प्रभावित नहीं करती हैं और आगे निकल जाती हैं और बाकी क्षेत्रों में बारिश रिकॉर्ड की जाती है. मॉनसून के अलावा, तमिलनाडु में साउथ रीजन के पांच सबडिवीजन ऐसे हैं जब जहां पर नॉर्थईस्ट मॉनसून आता है अक्टूबर-नवंबर दिसंबर में और उस मॉनसून से तमिलनाडु आंध्रप्रदेश पुदुचेरी केरल और अपनी आंतरिक कर्नाटक के कुछ शहर प्रभावित होते हैं, तो इस वजह से भी यहां पर बारिश बहुत ज्यादा मॉनसून सीजन में या कहें कि जो अंतर है या जो रेशियो है बारिश का, मॉनसून सीजन में सबसे ज्यादा नहीं है.

भारत में 35 प्रतिशत कम हुई मॉनसूनी बारिश

भारत में मॉनसून सीजन में अब तक जो बारिश कम हुई है वह 1 जून से लेकर के 20 जून के बीच में सामान्य से लगभग 35 प्रतिशत कम है, जोकि एक बड़ा अंतर है. आप अच्छी तरह जानते हैं कि खरीफ फसलों की बुवाई के लिए जो नर्सरी तैयार की जाती है उसके लिए यह तैयार करने का समय होता है. ऐसे में अगर मॉनसून की तरफ से सिग्नल कमजोर मिल रहे हो तो किसानों में निराशा हताशा बहुत स्वाभाविक है. बुवाई का रकबा घटने का खतरा रहता है जोकि सीधे भारत की जीडीपी, भारत की अर्थव्यवस्था से लिंक होता है.

मॉनसून का भारतीय कृषि पर प्रभाव 

भारत में जून और सितंबर, 3 महीने ऐसे होते हैं जो मॉनसून के ओपनिंग मंथ और क्लोजिंग मंथ हैं. मॉनसून बहुत ज्यादा दिनों तक नहीं रहता है, लेकिन उन महीनों में बारिश काफी मायने रखती है. भारत में बारिश जुलाई और अगस्त में बहुत ज्यादा होती है. वहीं अगर जुलाई-अगस्त में बारिश कम होती है तो फसलों पर बहुत ज्यादा असर पड़ता है. लेकिन जून में बारिश कम होने का असर सीधा यह पड़ता है कि खेती का रकबा घटने का रिस्क होता है जो इस बार दिखाई दे रहा है. लगभग 37 प्रतिशत कम बारिश हुई है और मॉनसून बहुत पीछे है. ऐसे में किसानों को डर है कि कहीं मॉनसून कमजोर नहीं हो, तो इस वजह से ही बुआई का रकबा घट रहा है. लेकिन हम उम्मीद कर रहे हैं कि जल्दी ही मॉनसून आगे बढ़ेगा और देश के तमाम राज्यों में जहां पर बारिश अब तक नहीं हुई है वहां पर भी अच्छी बारिश होगी.

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