मौसम ने अपना रूख बदल दिया है, फरवरी माह में जहां ठंड पड़नी चाहिए वहीं अब गर्मी पड़ने लगी है. दोपहर होते-होते सूर्य का तापमान बढ़ने लग रहा है इसके कारण भीषण गर्मी उत्पन्न हो जाती है, जिसकी वजह से आम जनता अभी से घरों और कारों में AC का उपयोग करने लगी है. साथ ही फ्रिज में ठंडे पानी की बोतलें भी रख रहे हैं. वहीं जलवायु परिवर्तन की वजह से फसलों पर पड़े रहे प्रभाव, गेहूं के उत्पादन और रबी फसलों के उत्पादन को लेकर कृषि वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है. दरअसल, उत्तर प्रदेश मौसम विभाग के वरिष्ठ साइंटिस्ट मोहम्मद दानिश ने बताया कि, लखनऊ का टेंपरेचर पिछले 7 सालों में सेकंड हाईएस्ट टेंपरेचर 2021 में 33.6 डिग्री तापमान रहा, 2016 में इससे ज्यादा था, तो ऐसे में 7 सालों में लखनऊ का तापमान सेकंड हाईएस्ट टेंपरेचर रहा, इस साल की फरवरी में लखनऊ का टेंपरेचर 32 डिग्री है.
मौसम विभाग के वैज्ञानिक मोहम्मद दानिश ने आगे बताया कि, वहीं बनारस न्यू पिछले 50 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. बनारस का तापमान 36 डिग्री आंका गया है. 50 साल पहले फरवरी माह में काशी का तापमान 35.5 डिग्री था. मौसम विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि, भीषण गर्मी में बारिश होने के कोई आसार नहीं है और न ही ही ठंडी हवाएं चलेंगी. हालांकि, कल से तापमान में 1 डिग्री की गिरावट दर्ज की जाएगी. मौसम वैज्ञानिक ने आगे कहा कि हवा की रफ्तार साढे 6 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से रहेगी जो कि सामान्य है बढ़कर यह 10 किलोमीटर प्रति घंटा भी हो सकती है. रात्रि में तापमान में गिरावट आएगी और अधिकतम तापमान 22 डिग्री रहेगा.
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इधर कृषि वैज्ञानिक और वैज्ञानिक संचारक डॉ सुशील द्विवेदी ने जानकारी देते हुए बताया कि, जो धरती का तापमान जो बढ़ रहा है लगातार उससे जो परेशानी हम लोग झेल रहे हैं उससे यह है कि फरवरी माह में ही अप्रैल जैसी गर्मी महसूस कर रहे हैं यह कोई सामान्य बात नहीं है या असामान्य बात है, क्योंकि जो खेतों में गेहूं मटर जौ उगाए जाते हैं इस पर काफी असर पड़ेगा जो हमारे अन्नदाता, किसान है वह जो भी फसल उगाएंगे उनको इसका लाभ नहीं मिलेगा, क्योंकि जो गेहूं है उसके जो दाने होते हैं वह बड़े नहीं होंगे वह छोटे-छोटे रहेंगे क्योंकि अक्टूबर-नवंबर माह में किसान रोपाई करता है उसे बोता है और फरवरी माह में जब टेंपरेचर को ठंडा होना चाहिए उसकी जगह पर भीषण गर्मी पड़ रही हो तो ऐसे में जो गेहूं की बाली होगी उसमें जो अन्न होंगे उसके दाने बहुत छोटे होंगे, साथ ही गुणवत्ता भी उसमें नहीं होगी.
एक तरफ जहां बाहर देशों में युद्ध चल रहा है, रशिया और यूक्रेन आपस में लड़ रहे हैं. ऐसे में दोनों देश भारत की तरफ देख रहे हैं, क्योंकि उनका मानना है भारत गेहूं ज्यादा प्रोडक्शन करता है और उन्हें सप्लाई भी करेगा लेकिन जब इस तरीके की गर्मी पड़ेगी तो फसल की प्रोडक्शन कम होगी. वैज्ञानिक सुशील द्विवेदी बताते हैं कि, पिछले वर्ष कृषि मंत्रालय ने उम्मीद की थी कि, 10.70 करोड़ टन उपज होगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ प्रोडक्शन 10.68 करोड़ टन ही हो पाई. अब ऐसे में हमारे और आपके थाली में जो भोजन आएगा वह महंगा होगा, क्योंकि पैदावार ही कम होने वाली है, क्योंकि गेहूं की फसल तैयार होने में जो अनुकूलित वातावरण है. उसका तापमान 15 से 20 डिग्री होना चाहिए जो अक्सर फरवरी के माह में रहता था, लेकिन इस फरवरी के माह में 30 से 35 डिग्री तापमान हो गया है, खास करके उत्तर प्रदेश में जहां गेहूं की पैदावार अच्छी खासी मानी जाती है, ऐसे में पैदावार कम होगी. साथ ही गेहूं के दाने का विकास भी ठीक से नहीं हो पाएगा जोकि उत्पादन में असर डालेगी.
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द्विवेदी ने बताया कि, यह रबी क्रॉप का सीजन है, जिसमें चना गेहूं मटर,जव यह सब पैदावार होती हैं और इसे ठंड वाले महीने में उगाया जाता है ऐसे में जब ठंड कम पड़ेगी और गर्मी ज्यादा होगी तो उपज नहीं हो पाएगी. साइंटिस्ट सुशील ने बताया कि, वह खुद बुंदेलखंड के रहने वाले हैं, वहां उन्होंने देखा कि, जिस मटर की कटाई मार्च के पहले हफ्ते में होनी चाहिए थी वह अभी से शुरु हो गई है इसके पीछे का कारण बढ़ता तापमान है, जैसे ही तापमान बढ़ा किसान मटर की फसल को काटने लगा नहीं तो मटर पूरी तरीके से जल जाती और पैदावार कुछ भी नहीं हो पाती समय से पहले काटने की वजह से मटर में जो मिनरल्स पाए जाते हैं जो तत्व पाए जाते हैं वह भी पूरी तरीके से नहीं मिल पाएंगे और उसका विकास भी सही से नहीं हो पाएगा.
इसी तरह मसूर,सरसों के फसलों के अलावा अन्य फसलें भी प्रभावित होने वाली है और इससे हमारे और आपके किचन के बजट पर असर पड़ेगा और रसोई का सामान महंगा हो जाएगा. अगर इन सब चीजों को रोकना है तो जो जलवायु परिवर्तन इतनी तेजी से हो रहा है इस पर काम करना होगा, ईको फ्रेंडली बनना होगा, कम प्रदूषण फैलाना होगा. ग्रीन हाउस गैस जैसी चीजों से बचना होगा. पेट्रोल डीजल से चलने वाले वाहन का कम इस्तेमाल करना होगा और प्रदूषण न फैले इसके लिए हमें साइकिल या इलेक्ट्रॉनिक व्हीकल का इस्तेमाल करना होगा, जो प्रदूषण रहित हो,साथ ही बायोमास को कम जलाएं, वहीं प्रकृति द्वारा निर्मित चीजों का इस्तेमाल करें और अपने आसपास से ज्यादा पेड़ पौधे लगाने की कोशिश करें.
कृषि वैज्ञानिक और विज्ञान संचालक डॉक्टर दिवेदी बताते हैं कि,फसलें जब उगने वाली हो जाती है तो उसमें फूल लगता है और उस फूल में पॉलेन ग्रेन बनता है और वह पॉलेनग्रेन एक फसल की पुष्प से दूसरे फसल की पुष्प में जाता है, तो इस प्रक्रिया को हम पॉलिनेशन कहते हैं, जिसके चलते पौधे में बीज बनते हैं और इसी बीज से हमें आपको अन्न प्राप्त होता है, तो ऐसे में जो कीड़े पॉलिनेशन की प्रक्रिया में सहायक होते हैं वह इस बढ़ती गर्मी में मर जाएंगे, क्योंकि वह ठंडी वाले कीड़े होते हैं वह उसी में जीवित रहते हैं. पॉलिनेशन वाले कीड़े जैसे तितली, मधुमक्खी जब मरने लगेंगे तो प्रोडक्शन कम होने लगेगा वहीं जो नुकसानदायक कीड़े हैं जो फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिन्हें हम कैटरपिलर कहते हैं.इसके अलावा जो टिड्डे होते हैं उनकी संख्या बढ़ रही है और यह कीड़े फसल को चट कर जाएंगे, जिससे यह होगा की उत्पादन कम होगी और जनसंख्या तो बढ़ ही रही है और इससे यह होगा कि हम, भुखमरी की तरफ बढ़ जाएंगे और यह सब जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहा है और इसके पीछे कोई और नहीं बल्कि हम मानव ही हैं, क्योंकि हम अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए तरह-तरह के उपकरण सुविधाजनक चीजों का इस्तेमाल कर रहे हैं और उर्जाओं को नष्ट कर रहे हैं.
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वहीं दूसरी जगह जाने के लिए फॉसिल फ्यूल जलाते हैं तो उस फॉसिल फ्यूल से ग्रीन हाउस गैस निकलती है, जिसकी वजह से हमारे आसपास कार्बन डाइऑक्साइड ज्यादा मात्रा में मौजूद रहती हैं, साथ ही मिथेन और क्लोरोफ्लोरोकार्बन, वाटर पेपर मौजूद होते हैं जो धरती को गर्म कर रहे हैं और यही सब चीजें धरती को बढ़ते हुए तापमान की तरफ ले जा रही हैं, हम इसे ऐसे समझ सकते हैं जब मानव के शरीर का तापमान अगर 1 डिग्री बढ़ जाता है तो वह विचलित होने लगता है, ठीक इसी तरह पृथ्वी के तापमान को भी हम समझ सकते हैं. पृथ्वी के तापमान को कैसे रोका जाए इसके लिए वैज्ञानिक काम कर रहे हैं, मीडिया के माध्यम से सरकार के जरिए तमाम प्रयास किए जा रहे हैं लोगों को जागरूक किया जा रहा है कि, कैसे बढ़ते तापमान को इको फ्रेंडली व्यवहार अपनाकर रोका जाए लेकिन बढ़ता हुआ तापमान खेतों में काम कर रहे किसान और उसके फसलों के लिए काफी नुकसानदायक है. (रिपोर्ट: सत्यम मिश्रा)
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