जरबेरा फूल की खेती से बदल गई महिला की किस्मत, अब इस तरह हो रही लाखों में इनकम

जरबेरा फूल की खेती से बदल गई महिला की किस्मत, अब इस तरह हो रही लाखों में इनकम

ऐसे स्वाति केंद्रे पुणे के भोर तालुका के बालावाड़ी गांव की रहने वाली हैं. वह अपने पति अमित ज्ञानेश्वर के सहयोग से जरबेरा फूलों की खेती कर रही हैं. उनके पति वर्तमान में पुणे जिला केंद्रीय सहकारी बैंक में कार्यरत हैं.

फूल की खेती से बंपर कमाई. (सांकेतिक फोटो)फूल की खेती से बंपर कमाई. (सांकेतिक फोटो)
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Jan 23, 2024,
  • Updated Jan 23, 2024, 3:49 PM IST

भारत एक कृषि प्रधान देश है. 75 प्रतिशत से अधिक आबादी की आजीविका कृषि पर ही निर्भर है. यहां पर किसान धान- गेहूं जैसी पारंपरिक फसलों के साथ- साथ अब बागवानी में भी दिलचस्पी ले रहे हैं. इससे कृषि अब धीरे-धीरे बिजनेस का रूप ले रहा है. यही वजह है कि पढ़े-लिखे युवा और नौकरी- पेशा करने वाले लोग भी खेती करने लगे हैं. इससे उनकी कमाई बढ़ गई है. कई लोग तो ऐसे भी है, जो किराए पर जमीन लेकर आधुनिक विधि से बड़े स्तर पर बागवानी फसलों की खेती कर रहे हैं. इसस वे सिर्फ न कमाई कर रहे हैं, बल्कि दूसरे लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं.

लेकिन आज हम एक ऐसी महिला किसान के बारे में बात करेंगे, जो जरबेरा फूलों की खेती से बंपर कमाई कर रही हैं. इस महिला का नाम स्वाति केंद्रे है. पहले वह पारंपरिक विधि से खेती करती थीं. इससे उन्हें अधिक कमाई नहीं होती थी. ऐसे में उन्होंने खेती करने का तरीका बदल दिया. उन्होंने पारंपरिक फसलों के बजाए जरबेरा फूलों की खेती करने का फैसला लिया. अब वह उन फूलों को बाजार में बेचकर लाखों की कमाई कर रही हैं. उनके पास 30 गुंठा जमीन है, जो लगभग 30,000 वर्ग फुट से अधिक है.

पॉलीहाउस के अंदर खेती

ऐसे स्वाति केंद्रे पुणे के भोर तालुका के बालावाड़ी गांव की रहने वाली हैं. वह अपने पति अमित ज्ञानेश्वर के सहयोग से जरबेरा फूलों की खेती कर रही हैं. उनके पति वर्तमान में पुणे जिला केंद्रीय सहकारी बैंक में कार्यरत हैं. उन्होंने लगातार नकदी खेती को बढ़ावा दिया और खेती के लिए पॉलीहाउस का निर्माण करवाया. खास बात यह है कि केंद्रे रासायनिक कीटनाशक के साथ-साथ जैविक खादों का भी इस्तेमाल करती हैं. इससे अच्छी पैदावार होती है.

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इस तरह की जाती है खेती

दंपति का कहना है कि उन्होंने जरबेरा फूल की खेती करने की योजना इसलिए बनाई, क्योंकि उनकी मांग मार्केट में हमेशा रहती है. उन्होंने बताया कि 18 हजार जरबेरा के पौधे लगाने से पहले खेत में डेढ़ टन धान की भूसी और 25 ट्रॉली गोबर मिलाया जाता है. इसके बाद खेत की कम से कम तीन से चार बार जुताई की जाती है. पानी छोड़ने के दो दिन बाद क्यारियां तैयार कर जरबेरा के पौधे रोपे जाते हैं.

इस तरह बढ़ गई इनकम

स्वाति केंद्रे को हमेशा से खेती में रुचि रही है. उन्होंने बेहतर उपज और लाभ के लिए पारंपरिक कृषि के बजाय आधुनिक खेती के तरीकों पर अपना ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया. त्योहारों, उत्सवों और शादियों के समय इन फूलों की भारी मांग होती है. इसका उपयोग अक्सर आयोजनों में सजावट के लिए किया जाता है. स्वाति केंद्रे ने कहा कि यह फसल कमाई का अच्छा जरिया है, क्योंकि इसका उत्पादन साल भर होता है. स्वाति के मुताबिक, पुणे के गुलटेकडी फूल बाजार में हर रोज जरबेरा फूलों के 300 गुच्छे बेचती है. इससे उन्हें रोज हजारों रुपये की कमाई होती है.

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