Ragi Farming: सातारा में रागी की खेती से बदल रही महिला किसानों की किस्‍मत, लाखों में पहुंची कमाई

Ragi Farming: सातारा में रागी की खेती से बदल रही महिला किसानों की किस्‍मत, लाखों में पहुंची कमाई

सातारा के कुसुंबी गांव ने रागी (नाचनी) की खेती और महिलाओं की पहल से आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश की है. 700 हेक्टेयर में उगाई गई रागी से लड्डू, चिवड़ा, कुकीज़ सहित 15 तरह के उत्पाद तैयार होते हैं और देश और विदेश में बेचे जाते हैं. इस पहल ने न केवल गांव की पहचान बदली, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी नई दिशा मिली है. 

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क‍िसान तक
  • New Delhi ,
  • Sep 23, 2025,
  • Updated Sep 23, 2025, 1:12 PM IST

महाराष्‍ट्र के सातारा जिले के जावली तालुका का छोटा सा गांव कुसुंबी आज पूरे राज्‍य और देशभर में अपनी अलग पहचान बना चुका है. इस गांव को अब 'नाचनी गांव' या 'रागी गांव' के नाम से जाना जाता है. नाचनी यानी रागी जी हां, दक्षिण भारत में नाचनी को रागी कहते हैं और महाराष्‍ट्र के साथ-साथ उत्तर भारत के कुछ हिस्‍सों में इसे नाचनी के नाम से भी जानते हैं. यही फसल आज कुसुंबी में महिलाओं की तरक्की और आत्मनिर्भरता की कहानी लिख रही है. गांव की कई महिलाएं इसकी खेती के साथ न सिर्फ अपनी बल्कि अपने परिवार की किस्‍मत भी बदल रही हैं. 

कभी था एक साधारण गांव 

कुछ साल पहले तक यह गांव बाकी गांवों की तरह ही साधारण था. लेकिन अब यहां के हालात बदल चुके हैं. एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस साल कुसुंबी में 700 हेक्टेयर जमीन पर रागी (नाचनी) की खेती की गई जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है. इस पहल ने न केवल गांव की पहचान बदली, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी नई दिशा दी. कुसुंबी की तरक्की के पीछे सबसे बड़ी ताकत यहां की महिलाएं हैं. गांव की 400 से अधिक महिलाएं सीधे रागी की खेती और उससे जुड़े उत्पादों के निर्माण से जुड़ी हुई हैं. ये महिलाएं हर साल लाखों रुपये कमा रही हैं. इसके साथ ही साथ वो अपने परिवार के साथ-साथ पूरे गांव की आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रही हैं. 

रागी प्रोडक्‍ट्स करते दिवाली को रोशन 

यहां की 232 महिलाओं ने मिलकर एक कंपनी भी बनाई है, जहां पर रागी से बने उत्पाद तैयार और पैक किए जाते हैं. इस कदम ने महिलाओं को पूरी तरह आत्मनिर्भर बना दिया है. रागी (नाचनी) से केवल आटा ही नहीं, बल्कि कई तरह के उत्पाद बनाए जा रहे हैं. कुसुंबी की महिलाएं आज 15 से ज्‍यादा तरह के फूड प्रॉडक्‍ट्स तैयार कर रही हैं. इनमें पौष्टिक लड्डू, सेवई, चिवड़ा, भडंग, कुकीज, मिठाई और केक शामिल हैं. इन उत्पादों की मांग न सिर्फ महाराष्‍ट्र में बल्कि पूरे और देशभर में है. यहां तक कि हर साल दीवाली के अवसर पर रागी से बने स्नैक्स अमेरिका तक भेजे जाते हैं. इससे गांव को अंतरराष्‍ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिल रही है. 

पारंपरिक अनाज का महत्व

रागी समेत ज्वार, बाजरा, कोदो और वरई जैसे मोटे अनाज कभी भारतीय खानपान का अहम हिस्सा थे. समय के साथ इनकी जगह चावल और गेहूं ने ले ली. लेकिन अब बदलते दौर में रागी को सुपरफूड के रूप में मान्यता मिल रही है. कैल्शियम, आयरन और फाइबर से भरपूर रागी न सिर्फ सेहत के लिए लाभकारी है, बल्कि बदलते मौसम और कठिन परिस्थितियों में भी आसानी से उग जाती है. इसकी यही खासियत किसानों के लिए इसे एक भरोसेमंद फसल बनाती है. 

बाकी गावों के लिए भी मिसाल 

कुसुंबी गांव की यह सफलता कहानी सिर्फ एक गांव तक सीमित नहीं है. यह पूरे देश के ग्रामीण इलाकों के लिए प्रेरणा है कि किस तरह पारंपरिक खेती को आधुनिक दृष्टिकोण और महिला सशक्तिकरण से जोड़कर आर्थिक स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता हासिल की जा सकती है. आज कुसुंबी केवल रागी गांव ही नहीं बल्कि यह एक मॉडल गांव बन चुका है, जहां से आत्मविश्वास, इनोवेशंस और विकास की राहें पूरे भारत को रोशन कर रही हैं. 

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