आज से करीब 15 साल पहले नालंदा जिले के बिहार शरीफ ब्लॉक के सोहडीह गांव में परंपरागत खेती की जाती थी, लेकिन अब इस गांव सहित आसपास के 10 से 12 गांव में धान गेहूं की जगह किसान सब्जी की खेती कर रहे हैं. किसानों के सोच में बदलाव लाने वाले सोहडीह गांव के राकेश कुमार हैं. उन्हीं की सकारात्मक सोच का नतीजा है कि यहां के लोग अब सब्जी की खेती को अपने विकास की सफल कुंजी मान रहे हैं. वहीं राकेश कुमार ने किसान समूह की मदद से प्रति हेक्टेयर 1088 क्विंटल आलू का उत्पादन कर चुके हैं. वह कहते हैं कि आज सब्जी की खेती के बदौलत जीवन में काफी बदलाव आया है. कभी पैसे की किल्लत की वजह से घर का खर्च चलाने में मुश्किल आता था. वहीं आज सब्जी की खेती से पैसे की कमी नहीं है.
प्रगतिशील किसान राकेश कुमार सोहडीह गांव के रहने वाले हैं. कभी एक कट्ठा में सब्जी की खेती शुरू करने वाले राकेश आज तीन एकड़ से अधिक एरिया में सब्जी की खेती कर रहे हैं. सालाना 6 लाख से अधिक की कमाई कर रहे हैं.
नालंदा जिले के सोहडीह गांव सहित आसपास के खेतों की सब्जियां देश के विभिन्न राज्यों तक पहुंच रही हैं. वहीं किसान राकेश कुमार कहते हैं कि आज सब्जी की खेती के दम पर वह कई पुरस्कार जीतने के साथ ही कई रिकॉर्ड बना चुके हैं. उन्होंने बताया कि वे किसान समूह की खेती के दम पर प्रति हेक्टेयर 1088 क्विंटल आलू का उत्पादन कर चुके हैं. वहीं 660 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्याज का उत्पादन भी कर चुके हैं, जो अपने आप एक रिकॉर्ड है. वह आगे जोड़ते हैं कि अगर राज्य की राजधानी पटना में एक दिन बिहार शरीफ ब्लॉक के सोहडीह गांव से सब्जी नहीं जाए. तो सब्जी के दाम में काफी अंतर आ सकता है और ये सब उनकी एक सकारात्मक सोच के कारण संभव हो पाया है.
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राकेश कुमार कहते हैं कि 2009 में पहली बार सब्जी की खेती शुरू की तो उस समय एक कट्ठा जमीन में कद्दू लगाने के लिए बीज उद्यान कृषि महाविद्यालय नूरसराय से मिला. वह कहते हैं कि उस समय उन्हें सब्जी की खेती से करीब दो हजार रुपये तक लाभ मिला. उसी समय से धान-गेहूं की खेती को छोड़कर सब्जी की खेती अपनी ढाई एकड़ जमीन में करना शुरू की और आज उसी सब्जी की खेती के दम पर सालाना 6 से 7 लाख रुपये की कमाई कर रहा हूं. उसके बाद अन्य किसानों को समूह के माध्यम से जोड़कर सब्जी की खेती करने का सुझाव दिया. राकेश के सुझाव को मान कर आज सोहडीह सहित लोहड़ी, बड़ी पहाड़ी,सलीमपुर, इब्राहिमपुर, हेमंतपुर, कखड़ा गांव के अलावा आसपास के अन्य गांव के किसान सब्जी की खेती शुरू किया.
वहीं आज आसपास के करीब हजार एकड़ एरिया में सब्जी की खेती हो रही है और करीब हर रोज तीन से चार गाड़ी से सब्जी बाहर भेजी जाती है. कखड़ा के संजय कहते हैं कि वे 3 एकड़ में सब्जी की खेती करते है और इसी के बदौलत अपनी बेटी को कोटा और बेटा को पटना में शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजे हैं. ये कहते हैं कि महीने का 20 हजार से अधिक का खर्च बच्चों की पढ़ाई पर लगता है, जो इसी सब्जी की खेती से संभव हुआ है. सब्जी की खेती में लाने वाले राकेश कुमार है.
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राकेश कुमार कहते हैं कि उनके समय घर की आर्थिक स्थिति सही नहीं होने की वजह से वह दसवीं तक ही पढ़ाई कर सके.क्योंकि परंपरागत खेती से अच्छी कमाई नहीं थी, लेकिन आज उसी जमीन से सब्जी की खेती करके उन्होंने अपने बच्चों का महंगा स्कूल में दाखिला करावाया है. साथ ही डेढ़ एकड़ जमीन खरीदने के साथ अपना नया मकान बनवा चुके है.