नेपियर घास के बारे में आपने सुना होगा. पशुपालक हैं तो जरूर नाम सुना होगा क्योंकि पशुओं के लिए इससे अच्छा कोई चारा नहीं होता. यह भारी उपज देने वाली घास है और हाल ही में इसने काफी लोकप्रियता हासिल की है. उत्तरी भारत में इसकी फसल फरवरी के अंत से अगस्त के अंत तक बोई जाती है. लेकिन अधिक से अधिक उपज पाने के लिए, फसल की बुवाई फरवरी के अंत तक कर देनी चाहिए, क्योंकि देर से बुवाई करने पर नवंबर के अंत तक केवल एक ही कटाई हो सकती है, जिसके बाद यह सुप्त अवस्था में रहती है. इस घास ने कई पशुपालकों की कमाई बढ़ा दी है क्योंकि पशु इसे चाव से खाते हैं और अधिक दूध देते हैं. ऐसे ही कुछ पशुपालकों के बारे में जान लेते हैं.
परबतसर, जिला नागौर, राजस्थान के किसान हकीम भाई का कहना है कि उन्होंने पिछले पांच वर्षों से नेपियर घास लगा रखी है. उसमें ड्रिप सिंचाई प्रणाली का प्रयोग किया जा रहा है. इस घास में बहुत बढ़वार होती है. फसल ऊंचाई 4 से 5 फीट बड़ी होने पर कटाई लेकर पशुओं की चारा संबंधी जरूरत पूरी होती है. खाने में रुचिकर होने के कारण पशु पूरा चारा खा जाते हैं जिससे चारा बेकार नहीं जाता है. दूध का उत्पादन 8 लीटर से बढ़कर 10 लीटर हो गया. इसके साथ ही पहले की तुलना में चारा खर्च आधा हो गया. इससे उनकी कमाई बढ़ गई.
इसी तरह नागौर के ही किसान मादुराम जी का कहना है कि नेपियर घास बहुत ही बढ़िया और अच्छी बढ़वार वाली चारा फसल है. पहले जहां दूध 3 से 4 लीटर होता था अब 5 से 7 लीटर हो गया है. गाय इस घास को दूसरे चारे की तुलना में अधिक खाती है जिससे दूध की मात्रा में बढ़ोतरी हुई है. नेपियर घास सालोंभर पशुओं को मिलती रहती है जिससे दूध की मात्रा एक समान बनी रहती है.
राजस्थान के जैसलमेर जिले में पोकरण के किसान भंवर दान का कहना है कि उन्होंने अपने फार्म पर पिछले 4 वर्षों से नेपियर घास लगा रखी है. इस घास को गाय और घोड़े बड़े चाव से खाते हैं. नेपियर घास लगातार खिलाने से एक से डेढ़ किलो दूध उत्पादन बढ़ता है. इसके साथ ही पशु के शरीर में स्फूर्ति आती है. बंजर जमीन में भी खाद आदि देकर इस घास का बढ़िया उत्पादन लिया जा सकता है.
भरत चौधरी, लीलकी फार्म, कोसेलाव, पाली का कहना है कि इस घास का चारा 30 से 35 दिनों में तैयार हो जाता है. इसे एक बार लगाने पर यह 5 से 7 साल चलती रहती है जबकि ज्वार, बाजरा और मक्का को साल में दो से तीन बार लगाना पड़ता है. इससे लागत बढ़ने के साथ ही पशुओं को लगातार हरा चारा नहीं मिलता है. ज्वार और बाजरा खिलाने से दूध नहीं बढ़ता जबकि नेपियर की 12 महीने उपलब्धता होने के कारण 1 से 2 किलो दूध में बढ़ोतरी होती है. इस घास को जितना खाद और पानी देंगे, उतनी ही इसकी बढ़वार होती है.