दूध और गोबर से आत्मनिर्भर बना झारखंड का यह गांव, हर महीने होती है लाखों की कमाई

दूध और गोबर से आत्मनिर्भर बना झारखंड का यह गांव, हर महीने होती है लाखों की कमाई

बोकारो के एक गांव ने बड़ा नाम कमाया है. यह गांव आज आत्मनिर्भर बन चुका है और वह भी गोबर और दूध से. इस गांव का नाम जराडीह है. जराडीह में लोग आज गोबर और दूध से अच्छी कमाई कर रहे हैं. यहां के लोग अपना खर्च निकाल रहे हैं. इस गांव का नाम पूरे झारखंड में रोशन हो गया है.

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क‍िसान तक
  • Bokaro,
  • Jul 07, 2025,
  • Updated Jul 07, 2025, 5:22 PM IST

बोकारो जिले के पेटरवार प्रखंड का जराडीह गांव आज ग्रामीण आत्मनिर्भरता की एक सशक्त मिसाल बन चुका है. कभी रोजगार की तलाश में लोगों के पलायन के लिए जाना जाने वाला यह गांव, अब दूध और गोबर से आर्थिक क्रांति की कहानी लिख रहा है.
गांव के 72 किसान मिलकर प्रतिदिन करीब 2,000 लीटर दूध का उत्पादन कर रहे हैं. उनके पास कुल 250 गायें हैं, जिनका दूध मेधा डेयरी में भेजा जाता है. किसानों को प्रति लीटर दूध पर लगभग 45 रुपये का मूल्य डेयरी से मिलता है. इस तरह पूरे गांव के किसान हर महीने लगभग 27 लाख रुपये का व्यवसाय कर रहे हैं.

सिर्फ दूध उत्पादन ही नहीं, बल्कि अब गोबर से गैस निर्माण में भी जरीडीह गांव ने आत्मनिर्भरता हासिल कर ली है. गांव के सभी 72 पशुपालकों ने अपने घरों में मिनी बायोगैस प्लांट स्थापित किए हैं. अब खाना पकाने के लिए यही गैस प्रयोग में लाई जा रही है, जिससे ईंधन पर खर्च की बचत हो रही है और प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग सुनिश्चित हो रहा है.

दूध उत्पादन में कायम की मिसाल

बोकारो जिले के पेटरवार प्रखंड स्थित जराडीह गांव ने पिछले 10 वर्षों में दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में एक मिसाल कायम की है. करीब 1 हजार की आबादी वाला यह गांव आज न केवल आत्मनिर्भर है, बल्कि आसपास के इलाकों के लिए भी प्रेरणा स्रोत बन गया है. 

किसानों को यह सफलता सरकार की योजनाओं और उनकी कड़ी मेहनत से मिली है. 10 वर्ष पूर्व, राज्य सरकार ने 90 प्रतिशत अनुदान पर इन्हें दुधारू गायें उपलब्ध कराईं थीं. किसी को दो तो किसी को पांच गायें दी गई थीं. आज उसी मेहनत और देखभाल का नतीजा है कि कुछ किसानों के पास 10 से लेकर 40 तक गायें हैं.

सफलता में महिलाओं का रोल अहम

जरीडीह गांव की सफलता में महिलाओं की भूमिका सबसे अहम रही है. वे न केवल पशुपालन का जिम्मा संभाल रही हैं, बल्कि स्वयं ही दूध को मिल्क कलेक्शन सेंटर तक पहुंचा रही हैं. महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से कहीं अधिक है, जो गांव को आत्मनिर्भरता की दिशा में मजबूत आधार दे रही है. कई महिलाएं आज 30 से 50 हजार रुपये तक प्रतिमाह की आमदनी कर रही हैं.

सिर्फ दूध ही नहीं, बल्कि गोबर से गैस उत्पादन में भी जरीडीह गांव आत्मनिर्भर बन चुका है. गांव के 72 किसानों ने अपने-अपने घरों में बायो गैस प्लांट स्थापित किया है. इन प्लांट्स से निकलने वाली मीथेन गैस से न केवल रसोई चूल्हा जल रहा है, बल्कि इससे 72 घरों में प्रतिदिन सुबह-शाम भोजन भी तैयार हो रहा है. बढ़ती रसोई गैस की कीमतों से परेशान लोगों को अब इस वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत से बड़ी राहत मिली है. किसानों का कहना है कि बायो गैस से न केवल ईंधन की बचत हो रही है, बल्कि गोबर और जैविक अपशिष्ट का बेहतर उपयोग भी संभव हो पाया है. जरीडीह गांव अब जिले के अन्य गांवों के लिए प्रेरणा बन चुका है.

पलायनमुक्त बना यह गांव

कभी यही जरीडीह गांव था, जहां 50 से अधिक युवा रोजगार की तलाश में अन्य राज्यों की ओर पलायन कर चुके थे. महिलाएं भी मजदूरी के लिए आस-पास के गांवों में जाया करती थीं. लेकिन आज तस्वीर बदल चुकी है. घर-घर दूध उत्पादन और उससे होने वाली कमाई ने गांव को पलायन मुक्त बना दिया है.

गांव की आधी आबादी के पास अब दुधारू गायें हैं, और शेष आधी आबादी भी धीरे-धीरे दुग्ध उत्पादन को जीविका का माध्यम बना रही है. जरीडीह गांव अब सिर्फ एक गांव नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की जीवंत तस्वीर बन चुका है. (संजय कुमार का इनपुट)

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