Maharashtra flood relief: महाराष्ट्र में हाल ही में आई बाढ़ और मूसलधार बारिश से किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ा है. सरकार ने राहत के तौर पर 31,628 करोड़ रुपये के मुआवजे का ऐलान तो किया, लेकिन किसानों को मिल रही सहायता पर अब सवाल उठने लगे हैं. हिंगोली जिले के गोरेगांव में किसानों ने सरकार की इस मदद को नाकाफी बताते हुए मुआवजे के पैसे तहसील कार्यालय के सामने फेंककर विरोध प्रदर्शन किया.
महाराष्ट्र सरकार द्वारा बाढ़ और बारिश से प्रभावित किसानों को राहत देने के लिए घोषित ₹31,628 करोड़ के मुआवजा पैकेज के तहत अब किसानों के बैंक खातों में पैसे पहुंचने लगे हैं. लेकिन हिंगोली जिले के गोरेगांव में किसान (Hingoli farmer protest) इससे संतुष्ट नहीं हैं.
यहां के किसानों ने सरकार द्वारा दी गई मदद को 'बहुत कम और अपमानजनक' बताते हुए मुआवजे की राशि को गोरेगांव अपर तहसील कार्यालय के सामने फेंक दिया. किसानों का आरोप है कि भारी नुकसान के मुकाबले सरकार (Maharashtra farmers outrage) की यह राहत ऊंट के मुंह में जीरा जैसी है.
नामदेव पतंगे (किसान नेता) ने कहा,
“हमारा नुकसान जमीन से लेकर फसल तक हर जगह है, लेकिन सरकार की तरफ से मिलने वाला मुआवजा जरूरत के हिसाब से बेहद कम है. हम इसे स्वीकार नहीं करते.”
गजानन कावरखे (क्रांतिकारी किसान संगठन) ने कहा,
“मराठवाड़ा (Marathwada farmer crisis) में हुई बारिश से किसानों की सोयाबीन और कपास जैसी नकदी फसलें पूरी तरह बर्बाद हो गई हैं. सरकार की घोषणा ₹8,500 प्रति हेक्टेयर की थी, लेकिन किसानों को मात्र ₹3,000 से ₹4,000 मिल रहे हैं. हमारी तहसील को अब तक 'बाढ़ प्रभावित' घोषित तक नहीं किया गया है. ये मुआवजा हमारे जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है. इसलिए हमने यह पैसा वापस किया.”
किसानों ने क्रांतिकारी किसान संघटना के नेतृत्व में सरकार से मिले मुआवजे के नोटों को सरेआम तहसील कार्यालय के सामने फेंक दिया (Farmer compensation protest) और "झूठे मुआवजे नहीं चाहिए" जैसे नारे लगाए.
किसानों की मांग है कि उन्हें प्रति हेक्टेयर ₹50,000 तक मुआवजा मिले, जिससे वे अपने खेतों को दोबारा तैयार कर सकें और अगली फसल की बुवाई कर सकें.
हिंगोली जिले में किसानों के इस अनोखे विरोध प्रदर्शन के बाद प्रशासन और राज्य सरकार पर दबाव बढ़ा है. देखना होगा कि सरकार किसानों की इस नाराजगी को कैसे सुलझाती है.
जहां एक ओर सरकार किसानों को राहत देने का दावा कर रही है, वहीं जमीनी स्तर पर किसान खुद को छला हुआ और उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या यह राहत वास्तव में राहत है या सिर्फ एक दिखावा (Agricultural land damage)?