अकाल से जूझते इलाके में रंग लाई किसान की मेहनत, बंजर जमीन में लहलहा उठे सेब के पेड़

अकाल से जूझते इलाके में रंग लाई किसान की मेहनत, बंजर जमीन में लहलहा उठे सेब के पेड़

सावंत के सेब के पेड़ों पर लगे फलों में और हिमाचल, कश्मीर से आने वाले सेब में कोई अंतर नहीं है. कलर, टेस्ट, आकार बिल्कुल एक जैसा ही है. एक-एक फल का वजन 150 से 200 ग्राम तक है. आज सेब का रेट 200 से लेकर 250 तक है. इस हिसाब से काकासाहेब सावंत को अपने बाग से दो लाख तक कमाई मिल सकती है.

सांगली जिले के किसान काकासाहेब सावंतसांगली जिले के किसान काकासाहेब सावंत
क‍िसान तक
  • Sangli,
  • Feb 24, 2023,
  • Updated Feb 24, 2023, 11:44 AM IST

महाराष्ट्र के सांगली जिले का जत तहसील हमेशा से अकाल से त्रस्त रहा है. उसी जगह पर एक किसान ने अपनी मेहनत से हिमाचल के सेब की खेती करके नया कीर्तिमान स्थापित किया है. सांगली जिले में दो हजार आबादी वाला एक छोटा सा गांव है अंतराल. यह ऐसा गांव है जो पानी के लिए बरसों से तरसता रहा है. पानी के लिए ही जत तहसील के कई गावों ने अपने पड़ोसी कर्नाटक राज्य में जाने के लिए आंदोलन किया था. इसमें अंतराल गांव भी शामिल था. लेकिन आज गांव के किसान ने हिमाचली सेब की खेती कर दूर-दूर तक अपना नाम रोशन किया है. 
          
अंतराल गांव इस मेहनती किसान का नाम है काकासाहेब सावंत. इन्होंने अपने खेत में सेब के फलों के बागान लगाए हैं. सावंत खेती में कई नए-नए प्रयोग करते हैं. उन्होंने अपने बाग में एक और नया प्रयोग किया, वह भी ऐसा कि लोग उनका तो पहले मजाक उड़ाने लगे थे. मगर आज उनकी सराहना करते हैं, उनको शाबासी देते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि काकासाहेब सावंत ने अपने इस बंजर जमीन में सेब की खेती की है जो किसी अजूबे से कम नहीं है. 

पूरे जत तहसील में खेती के लिए ही नहीं बल्कि पीने के लिए भी पानी की किल्लत है. ऐसे में जितना भी पानी उपलब्ध है, उसका सही इस्तेमाल करके ड्रीप इरिगेशन से किसान काकासाहेब ने पानी की समस्या से छुटकारा पाया. इसके बाद उन्होंने कश्मीर, हिमाचल प्रदेश के सेब की फसल को लगाकर अकाल के इलाके में भी अच्छी तरीके से उत्पादन लिया. अब उनकी बेहतर कमाई भी हो रही है.  

ये भी पढ़ें: Haryana Budget 2023: प्राकृत‍िक खेती का बढ़ेगा रकबा, गौ सेवा आयोग का बजट 10 गुना बढ़ाया गया

सेब की खेती करने से पहले काकासाहेब सावंत ने गूगल पर सर्च की पूरी जानकारी ली. सेब उगाने के लिए किस तरह की जमीन, पानी, तापमान की जरूरत होती है, ऐसी सारी जानकारी गूगल से ले ली. जब उनके ध्यान में आया कि इस फसल को कम पानी में भी लगाया जा सकता है, तो उन्होंने फैसला किया कि वे यह रिस्क लेकर सेब उगाने की कोशिश करेंगे. 

इसके लिए वे दो साल पहले हिमाचल प्रदेश गए. वहां से किसान काकासाहेब हरमन 99 प्रजाति के 150 सेब के पौधे लाए. उसके लिए उन्होंने जमीन तैयार की. तीन फीट के गड्डे खोदे, आठ फीट की दूरी पर एक-एक पौधे को लगाया. 150 पौधों में से 25 पौधे इस तामान में नहीं जी पाए. मगर बाकी 125 पौधों ने सावंत का साथ दिया. वैसे भी इस सेब के पेड़ पर कीड़े नहीं लगते. न ही कोई रोग लगता है. एसलिए किसान के कीटकनाशकों पर जो हजारों रुपये खर्च होते हैं, उसमें बचत हो जाती है. 
        
काकासाहेब सावंत ने जब सेब के पेड़ लगाए तब ये केवल दो साल में इतना अच्छा दाम देने लगे कि उन्हें भी इस पर भरोसा नहीं हुआ. हालांकि इस खेती के साथ उनका प्रयोग जारी रहा. प्रयोग करते-करते सेब सही दाम देने वाली फसल साबित हो गई. सावंत ने इन पौधों को अपनी औलाद की तरह ध्यान देकर बड़ा किया. केवल दो साल में सेब के पेड़ इतने अच्छे तरीके से बड़े हो गए कि आज बंपर पैदावार देने लगे हैं. एक-एक पेड़ पर 30-40 सेब लगे हैं. 

ये भी पढ़ें: बंपर उत्पादन के बावजूद भी निराश ओडिशा के किसान, धान खरीद की खामियों से हैं परेशान

सावंत के सेब के पेड़ों पर लगे फलों में और हिमाचल, कश्मीर से आने वाले सेब में कोई अंतर नहीं है. कलर, टेस्ट, आकार बिल्कुल एक जैसा ही है. एक-एक फल का वजन 150 से 200 ग्राम तक है. आज सेब का रेट 200 से लेकर 250 तक है. इस हिसाब से काकासाहेब सावंत को अपने बाग से दो लाख तक कमाई मिल सकती है. यानी कुल मिलाकर साल में दो बार तीन से 3.50 लाख का सेब मिल सकता है. एक बार बाग लगाया तो 20 से 25 साल तक इसका सेब निकलता है. अकाल वाले इलाके से भी इतना पैसा मिल सकता है, यह देख कर दूर-दूर के किसान भी इस खेती को देखने के लिए यहां आते हैं.
 
सावंत बताते हैं कि सेब के लिए हलकी जमीन आवश्यक है. जमीन ऐसी हो जो पानी सोख लेती हो और मौसम बिल्कुल साफ, सूखा होना चाहिए. इस तरह की जलवायु में सेब की फसल अच्छे तरीके से उत्पादन देती है. जिन-जिन किसानों के पास ऐसी जमीन हो, वे सेब की फसल का उत्पादन लेकर लाखों रुपये कमा सकते हैं.(स्वाति चिखलीकर की रिपोर्ट)

MORE NEWS

Read more!