राजस्थान का नाम सुनते ही अधिकांश लोगों के जहन में सबसे पहले रेगिस्तान का नाम उभर कर सामने आता है. लोगों को लगता है कि राजस्थान में किसान सिर्फ मक्का, बाजरा और सरसों जैसी फसलों की ही खेती करते हैं, लेकिन ऐसी बात नहीं है. यहां पर किसान वैज्ञानिक तरीकों से दूसरी फसलों की भी खेती कर रहे हैं. इससे किसानों को अच्छा मुनाफा हो रहा है. आज हम एक ऐसे ही किसान के बारे में बात करेंगे, जो वैज्ञानिक विधि से वेदशी किस्म के गेहूं की खेती कर रहे हैं. इससे उनकी चर्चा पूरे जिले में हो रही है. अब आसपास के दूसरे किसान भी इनसे खेती की बारीकी सीख रहे हैं.
दरअसल, हम जिस किसान के बारे में बात कर रहे हैं, उनका नाम दिनेशचंद तेनगुरिया है. वे राजस्थान के भरतपुर जिले के रहने वाले हैं. वे अपने गांव पीपला में इजरायली गेहूं की खेती कर रहे हैं. इससे उन्हें कम लागत में बंपर कमाई हो रही है. हालांकि, पहले वे अन्य किसानों की तरह गांव में पारंपरिक विधि से सरसों और अन्य फसलों की खेती करते थे. इससे उन्हें उतना मुनाफा नहीं होता था. कई बार तो लागत निकालना मुश्किल हो जाता था. लेकिन इजरायली गेहूं की खेती से उनकी तकदीर बदल गई.
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किसान दिनेश चंद तेनगुरिया ने बताया कि उनके एक रिश्तेदार इजरायल में रहते हैं. वे राजस्थान आने पर इजरायली कृषि पद्धति की काफी तारीफ किया करते थे. खास कर इजरायल के गेहूं की क्वालिटी और उपज के बारे में ज्यादा प्रशंसा करते थे. ऐसे में मेरे भी मन में इजरायली गेहूं की खेती करने का विचार आया. तेनगुरिया ने बताया कि उन्होंने अपने रिश्तेदार से इजरायल से गेहूं की बीज मंगवाया और खेती शुरू कर दी.
किसान दिनेश की इजरायली गेहूं की खेती करने पर पहले साल ही बंपर उपज मिली. उन्होंने कहा कि इजरायली गेहूं की बाली भारतीय गेहूं की किस्म से तीन गुना बड़ी होती है. इससे गेहूं का उत्पादन भी लगभग तीन गुना होता है. अब दिनेश चंद तेनगुरिया की चर्चा पूरे जिले में हो रही है. कृषि विभाग के अधिकारी भी उनकी खेती को देखने के लिए गांव में आ रहे हैं. तेनगुरिया ने कहा कि उसने 700 रुपए प्रति किलो की दर से 10 किलो गेहूं का बीज इजरायल से मंगवाया था.
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दिनेश चंद ने बताया कि इजरायली गेहूं की बुवाई के 20 दिन बाद पहली सिंचाई की जाती है. इसकी खेती के लिए एक एकड़ में 5 किलो बीज की जरूरत होती है. जबकि, प्रति एकड़ इसकी पैदावार 40 क्विंटल है. इसका दाना काफी मोटा और वजनी होता है. अगर स्वाद की बात करें, तो इसमें भी यह उम्दा है. खास बात यह है कि दिनेश चंद केवल जैविक खाद का ही इस्तेमाल किया है.