गर्मी के मौसम में मक्के (Maize Farming) की फसल एक अच्छी फसल है. उत्तर प्रदेश के किसान भी बड़ी मात्रा में मक्के की खेती करते है. इस क्रम में उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही ने कहा है कि राज्य में मक्का उत्पादन में अपार संभावनाएं हैं. उत्तर प्रदेश में त्वरित मक्का विकास कार्यक्रम पूरे प्रदेश में चलाया जा रहा है. इसमें किसानों को बीज पर 15 हजार रुपये प्रति कुंतल की दर से अनुदान दिया जाता है. साथ ही, संकर मक्का व देशी मक्का के साथ-साथ पॉप कॉर्न, बेबी कॉर्न तथा स्वीट कॉर्न पर भी अनुदान दिया जाता है. इस प्रकार मक्का प्रदेश के किसानों की किस्मत बदल सकता है.
उन्होंने आह्वान किया कि इसी वर्ष सीड पार्क की योजना को अंतिम रूप दें. गेहूं और धान के बाद प्रदेश में मक्का तीसरी महत्वपूर्ण फसल है. कृषि मंत्री शाही ने कहा कि एथेनॉल उद्योग से जुड़े हुए लोग मक्का के किसानों को आवश्यक सहयोग दें, ताकि अधिक मक्का की उपज मिले. आगे भी एथेनॉल उद्योग को आगे भी लाभ मिल सकेगा.
उन्होंने कहा कि प्रदेश 665 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न का उत्पादन कर रहा है व खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर है. साथ ही फलों व सब्जियों के मामले में भी आत्मनिर्भर है. न केवल अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए फल व सब्जियां उगा रहे हैं, बल्कि उन्हें निर्यात कर अन्य की आवश्यकता पूर्ति भी कर रहे हैं.
शाही ने बताया कि बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश की जलवायु लगभग एक समान है, परंतु बिहार में मक्का की उत्पादकता अधिक है तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में मक्का की उत्पादकता बिहार के मुकाबले कम है. इसके लिए प्रदेश के किसानों के द्वारा बिहार में मक्का की खेती करने वाले सफल किसानों के यहां भ्रमण कर उनके द्वारा प्रयोग की जाने वाली तकनीकों के बारे में जानकारी प्राप्त कर मक्का की उत्पादकता को और बढ़ाकर अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं.
प्रमुख सचिव (कृषि) रविंद्र कुमार ने कहा कि प्रदेश में करीब 1 करोड़ क्षेत्र में गेहूं और 60 लाख हेक्टर क्षेत्र में धान की फसल होती है. वर्तमान में प्रदेश में खाद्यान्न सरप्लस मात्रा में पैदा हो रहा है, लेकिन भविष्य में खाद्यान्न की किसी भी समस्या से निपटने हेतु फसल डाइवर्सिफिकेशन आवश्यक है. किसान धान व गेहूं के विकल्प के रूप में मक्का की फसल ले सकते हैं.
उन्होंने कहा कि मक्का की फसल की विशेषता यह है कि वह तीनों सीजन में होती है. मक्का का प्रयोग वर्तमान में खाने के अतिरिक्त एथेनॉल उत्पादन में भी किया जा रहा है. साथ ही मक्का से एथेनॉल के लिए स्टार्च ग्रहण करने के बाद अवशेष भी पशु आहार के रूप में एक अच्छे, पौष्टिक तत्व के रूप में प्रयोग किया जा सकता है. प्रमुख सचिव ने किसानों से आह्वान किया कि उन्हें पराम्परागत विधियों से हटकर नवोन्मेशी विधियों को अपनायें.
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