इलेक्ट्रिक चाक से चमक रही कुम्हारों की किस्मत... ऐसे 3 गुना तक बढ़ी कमाई

इलेक्ट्रिक चाक से चमक रही कुम्हारों की किस्मत... ऐसे 3 गुना तक बढ़ी कमाई

मिट्टी से बर्तन बनाने वाले कुम्हार कभी अपने परंपरागत काम को छोड़ने की सोच बैठे थे. उत्तर प्रदेश सरकार की माटी कला बोर्ड ने अब मिट्टी से मूर्ति बनाने वाले कुम्हारों को बिजली से चलने वाले इलेक्ट्रिक चाक और उसके चलाने के  मुफ्त बिजली  की सुविधा दे  रही है.कुम्हारो को जब से इलेक्ट्रिक चाक मिला है इसके बाद कुम्हारों का किस्मत बदल गई है.इस पहिये की बदौलत वह कम समय में ज्यादा बर्तन,  मुर्तियां  औऱ खिलौनें बन रहे हैं जिससे उनकी आमदनी भी दो से तीन गुना बढ़ गई है.

बिजली के चाक से कुम्हारों की बदली किस्मतबिजली के चाक से कुम्हारों की बदली किस्मत
धर्मेंद्र सिंह
  • varanasi ,
  • Apr 01, 2023,
  • Updated Apr 01, 2023, 7:52 AM IST

बदलते समय के साथ बहुत कुछ बदल गया है. क्योंकि अब लोगों की जरूरत की चीजें फैक्ट्रियों में जल्द बनने लगीं हैं तो वहीं गांव के पारंपरिक कामों में समय और मेहनत ज्यादा लगती है. इसका नतीजा यह हुआ कि मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों ने अपना पारंपरिक काम बंद कर दिया या कम कर दिया, लेकिन अब कुम्हारों की किस्मत बदल रही है, क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार का माटी कला बोर्ड अब मिट्टी से मूर्ति बनाने वाले कुम्हारों को बिजली से चलने वाले इलेक्ट्रिक चाक और उसके चलाने के लि‍ए मुफ्त बिजली की सुविधा दे रही है. कुम्हारो को जब से इलेक्ट्रिक चाक मिली है, इसके बाद कुम्हारों का जीवन बहुत कुछ बदल गया है. इस पहिये की बदौलत वह कम समय में ज्यादा बर्तन, मुर्तियां औऱ खिलौनें बना रहे हैं, जिससे उनकी आमदनी भी दो से तीन गुना बढ़ गई है.

पारंपरिक पेशे को छोड़ने के लिए थे मजबूर 

परंपरागत रूप से कुम्हार जाति के लोग मिट्टी से बर्तन बनाने का काम करते हैं. उत्तर प्रदेश में इस जाति के लोगों की संख्या 50 लाख से अधिक है. कुम्हार जाति के लोग आज भी गांव में मिट्टी के बर्तन बनाकर अपनी आजीविका चलाते हैं. कुम्हारों के पास सदियों से हाथ से चलने वाले पत्थर के पहिये थे. पत्थर से बने इस चाक को चलाने में कुम्हार को काफी मेहनत करनी पड़ती थी. वही काम भी कम होता था, जिससे समय के साथ आमदनी पर असर पड़ता था.मिट्टी के बर्तनों की घटती मांग और मेहनत की वजह से कम आय के कारण इस जाति के लोगों ने बड़ी संख्या में अपने पारंपरिक पेशे को छोड़ दिया. यहां तक कि अधिकांश कुम्हार जाति के लोग भी शहरो में जाकर मजदूरी तथा अन्य कार्य करने लगे.

इलेक्ट्रिक चाक  से कुम्हारों (potters) की बदली किस्मत

इस दिशा में उत्तर प्रदेश सरकार के माटी कला बोर्ड ने इलेक्ट्रिक चाक से कुम्हारों और कारीगरों के जीवन में काफी बदलाव लाने का प्रयास किया है. कुम्हारों को बोर्ड ने मुफ्त में इलेक्ट्रिक चाक दिया और  इसके चलाने के लिए फ्री में बिजली सुविधा दी, जिससे अब कुम्हार कम समय में दो से तीन गुना अधिक काम कर तेजी से अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं.इलेक्ट्रिक चाक मिलने के बाद कई कुम्हारों ने अपने परंपरागत काम पर लौटने लगे हैं. वाराणसी के सठवा गांव निवासी नखडू प्रजापति किसान तक को बताते हैं कि कोरोना आने से पहले उन्होंने भी ये काम छोड़ने का मन बना लिया था, क्योंकि वे मिट्टी के काम की कमाई से अपने घर का खर्च नही  चला पा रहे थे, लेकिन जब उन्हें बिजली का पहिया मिला तो इससे उनके काम में तेजी आई और उनकी आमदनी भी बढ़ने लगी. पिछले दो-तीन सालों में मिट्टी के बर्तनों की काम औऱ ब्रिकी  में इजाफा हुआ है, जिससे अब वह घर बैठे ही 20 से 25 हजार कमा लेते हैं. इससे उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल रही है और घर का खर्च भी चल रहा है.

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कुम्हार कैसे उठा सकते हैं इस योजना का लाभ? 

उत्तर प्रदेश सरकार के माटी कला बोर्ड द्वारा 18 से 55 वर्ष की आयु के कुम्हारों एवं मूर्तिकारों को इस योजना का लाभ दिया जा रहा है. कुम्हारों को इलेक्ट्रिक चाक फ्री दी जा रही है. इलेक्ट्रिक चाक प्राप्त करने के लिए, कुम्हार को अपना आधार कार्ड और पासपोर्ट आकार की तस्वीर के साथ जाति प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र और ग्राम प्रधान द्वारा जारी भूमि संबंधी प्रमाण पत्र को जिला ग्रामोद्योग विभाग के कार्यालय में लाभार्थी को जमा करना होता है. इसके बाद सरकार द्वारा कुम्हारों को इलेक्ट्र‍िक चाक निशुल्क प्रदान की जाती हैं.

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