खरीफ सीजन में मानसून की बेरुखी का असर झारखंड में अब तक दिखाई दे रहा है. खरीफ सीजन में कम बारिश की वजह से झारखंड में गंभीर सूखा पड़ा था. इस वजह से धान की बुवाई कम हुई थी. नतीजतन, धान का उत्पादन प्रभावित हुआ है. इसी कड़ी में सूखे ने धान खरीद की पूरी सरकारी योजना को ही स्लो कर दिया है. सूखे की वजह से झारखंड धान की खरीददारी करने में पिछड़ रहा है. राज्य में किसानों से धान की खरीददारी करने के हालात ये हैं कि अब तक दो जिलों में एक भी किसान ने सरकारी केंद्रों में धान नहीं बेचा है.
राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक साहेबगंज औऱ दुमका जिलों में सूखे का असर यह है कि इन जिलों में धान खरीद का एक महीना समय बीत जाने के बाद भी एक भी किसान ने धान नहीं बेचा है.
पिछले साल की तुलना में राज्य सरकार ने इस बार धान खरीद का लक्ष्य आधे से भी कम किया हुआ है. असल में धान खरीद के लिए राज्य सरकार द्वारा 652 एमएसपी केंद्र भी खोले गए थे. पिछल खरीफ वर्ष में राज्य सरकार ने आठ लाख टन धान की खरीद का लक्ष्य रखा था.
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बता दें कि धान की खरीद शुरू हुए एक महीना से अधिक का समय बीत चुका है. पिछले साल भी इस समय तक धान खरीद का आंकड़ा पूरा नहीं हुआ था. राज्य सरकार ने धान खरीद के आंकड़े को पूरा करने के लिए धान खरीद की तिथि को अप्रैल तक के लिए बढ़ा दिया था. वहीं राज्य में इस बार धान की पैदावार को देखते हुए धान खरीद का लक्ष्य भी पिछले बार की तुलना में आधा से कम है.
असल में खरीफ सीजन के दौरान झारखंड के 24 में से 22 जिलों के 226 प्रखंड गंभीर सूखे की चपेट में रहे. इन प्रखंडों में धान की खेती पर व्यापक असर पड़ा था. नतीजतन उत्पादन में रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई है. इसके कारण पूरी धान की सरकारी खरीद प्रक्रिया प्रभावित हो रही है. धान ना बेचने को लेकर किसानों की तरफ से दो बातें सामने आ रही हैं. एक तरफ कई ऐसे किसान हैं, जिन्होंने धान बेचा ही नहीं है. इसके पीछे किसानों का तर्क है कि जब अपने लिए नहीं बचेगा तो बेचकर क्या करेंगे.वहीं दूसरी तरफ सूखे से प्रभावित कई किसान ऐसे भी हैं, जिन्हें तत्काल पैसे की जरूरत थी. इसके कारण उन्होंने निजी दुकानों या बिचौलियों को जाकर धान बेच दिया, क्योंकि इनके पास से किसानों को तुरंत पैसे मिल जाते हैं, जिससे किसान अपना खर्च चलाते हैं.
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