समाजवादी पार्टी (सपा) के पूर्व विधायक मनोज पांडे शुक्रवार को आखिरकार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल हो गए. मनोज पांडे इस साल फरवरी में तब खबरों में आए थे जब उन्होंने क्रॉस वोटिंग में बीजेपी को वोट दिया था. तब से ऐसी खबरें थीं कि वह लोकसभा चुनाव के समय बीजेपी का दामन थाम सकते हैं. रायबरेली में गृह मंत्री अमित शाह ने उनको पार्टी की सदस्यता ग्रहण कराई. इस मौके पर शाह ने कहा कि मनोज पांडेय आज बीजेपी के साथ आ गए हैं. वह सनातन का साथ देने आए हैं. वहीं, मनोज पांडेय ने कहा कि वह राजनीति में रहें न रहें लेकिन सनातन के साथ रहेंगे. गर्दन भले कट जाए लेकिन भगवान राम ही मेरे हैं.
मनोज पांडे, रायबरेली में आने वाले ऊंचाहार से सपा के विधायक थे. वह पार्टी का प्रमुख ब्राह्मण चेहरा भी थे. फरवरी में राज्यसभा चुनाव के दौरान उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. मनोज सपा में मुख्य सतेचक के पद पर थे. मनोज का फैसला अखिलेश के लिए बड़ा झटका बताया गया था. मनोज पर अखिलेश बहुत भरोसा करते थे. मनोज का यह कदम लोकसभा चुनावों में भी अखिलेश को काफी नुकसान पहुंचाने वाला साबित हो सकता है. वह सन् 1990 के दशक के अंत में सपा की यूथ विंग में शामिल हुए थे. धीरे-धीरे वह पार्टी के मुखिया और पूर्व यूपी सीएम अखिलेश यादव के खास बन गए.
यह भी पढ़ें-केजरीवाल के सामने लोकसभा चुनाव से ज्यादा बड़ी चुनौतियां
मनोज, अखिलेश के सबसे भरोसेमंद सहयोगियों में से एक बनकर उभरे. विधानसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक के रूप में उन्हें पार्टी के बाकी वरिष्ठ नेताओं से ज्यादा तवज्जो दी गई थी. मनोज, ऊंचाहार विधानसभा क्षेत्र से तीन बार के विधायक हैं. 55 साल के मनोज पांडे साल 2000 के दशक की शुरुआत में कुछ समय के लिए बीजेपी में शामिल हुए थे. लेकिन साल 2007 के विधानसभा चुनावों से पहले वह सपा में लौट आए और फिर से पार्टी के अच्छे नेताओं में शामिल हो गए. साल 2012 में अखिलेश के नेतृत्व वाली सपा सरकार के सत्ता में आने के दो साल बाद उन्हें कृषि राज्य मंत्री बनाया गया. बाद में उन्हें कैबिनेट रैंक पर प्रमोट किया गया.
यह भी पढ़ें- यूपी की 41 सीटों पर जीत के लिए बीजेपी और पीएम मोदी का धुंआधार कैंपेन
जब साल 2012 में मनोज पांडे ने पहली बार विधानसभा चुनाव जीता था तो उस समय उन्होंने मौर्य के बेटे और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के उम्मीदवार उत्कृष्ट को मात दी थी. साल 2017 में जब एसपी और कांग्रेस ने गठबंधन में विधानसभा चुनाव लड़ा तो पांडे ने कांग्रेस को सीट देने का वादा किए जाने के बावजूद, ऊंचाहार से चुनाव लड़ने पर जोर दिया था. उन्होंने साल 2022 के चुनावों में बीजेपी के अमरपाल मौर्य को करीब 7000 वोटों से हराकर सीट बरकरार रखी.
पांडे का सपा से बाहर जाना लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के लिए भी परेशानी का सबब बन सकता है. कांग्रेस का गढ़ रही रायबरेली राज्य की उन 17 सीटों में से एक है, जिस पर पार्टी सपा के साथ सीट-बंटवारे समझौते के तहत चुनाव लड़ रही है. यहां से इस बार राहुल गांधी को उतारा गया है. बीजेपी का पूरा ध्यान यह सुनिश्चित करने पर है कि राहुल गांधी रायबरेली हार जाएं. इससे हिंदी बेल्ट की जमीनी हकीकत से कांग्रेस के अलगाव की पुष्टि होगी. अमित शाह ने इसी रणनीति को आधार बनाकर रायबरेली रैली के बाद मनोज पांडे के घर पर करीब आधे घंटे तक मीटिंग की.