
साल 2020–2021 में चर्चा में रहे किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा से टूट कर बना संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) पिछले तीन दिनों से पंजाब– हरियाणा की सड़कों पर इस आंदोलन का सिक्वल यानी किसान आंदोलन 2.0 की चिंगारी पैदा करने की कोशिश कर रहा है. कुछ किसान संगठनों ने संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) के बैनर तले‘दिल्ली चलो मार्च’ का आह्वान किया है. यह संगठन एक दर्जन से ज्यादा मांगों को लेकर आंदोलनरत है जिनमें एसपी कानून ,सभी फसलों को एसपी देने और किसान –मजदूर का कर्ज माफ करने की मांगे खास हैं. केंद्र सरकार किसान संगठनों के साथ बातचीत करना चाहती है. अब तक दो दौर की वार्ता करने की कोशिश की जा चुकी है लेकिन दोनों बार वार्ता बेनतीजा रही. गुरुवार को एक बार फिर से इस मोर्चे से बातचीत करने की तीसरी कोशिश की जा रही है.
फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य देने, कर्ज माफी, किसान आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज मामले वापस लेने और एमएससी पर कानून बनाने की मांग तर्क संगत हो सकती है. लेकिन कई किसान नेता अब कई तरह की हास्यास्पद मांगे भी सामने ला रहे है जिनको सुनकर हंसी आती है. उदाहरण के तौर पर WTO समझौता रद्द करने की मांग, बिजली संशोधन विधेयक 2020 रद्द करने की मांग, किसानों को प्रदूषण कानून से मुक्त रखने की मांग और बिजली के इलेक्ट्रॉनिक मीटर न लगाने की मांग कर रहे हैं. आंदोलन में शामिल किसान संगठनों द्वारा सरकार के सामने जो मांगे रखी गई हैं उनमें
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साल 2020-21 में किसान आंदोलन का मोर्चा संभालने वाले बड़े किसान नेताओं यानी संयुक्त किसान मोर्चा ने दिल्ली चलो मोर्चा की काल देने वाले संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) से पल्ला झाड़ लिया है. इन नेताओं ने कहा है कि उनको ना चंडीगढ़ में आयोजित बैठकों का निमंत्रण मिला और ना ही मार्च में शामिल होने का न्योता मिला है. हरियाणा के प्रमुख किसान नेता गुरनाम चढूनी ने कहा है कि इस SKM ने मार्च में शामिल होने के लिए कुछ शर्ते रख दी इसलिए वह उसमें शामिल नहीं हुए. दूसरे बड़े किसान नेताओं ने भी मार्च में शामिल होने से किनारा कर लिया है. इन नेताओं में जोगिंदर सिंह उग्रहां,बलबीर सिंह राजेवाल और राजेश टिकैत आदि के नाम शामिल हैं.
इस मोर्चा की तरफ से दावा किया गया है कि दिल्ली चलो मार्च में 200 किसान संगठन शामिल हैं. लेकिन हैरानी की बात ये है कि इस मार्च में पंजाब के भी इक्का–दुक्का किसान संगठन ही शामिल हैं। इनमें सरवन सिंह पंढेर और जगजीत सिंह डल्लेवाल के संगठन शामिल हैं. दिलचस्प बात ये है कि अकेले पंजाब में ही 40 के करीब किसान संगठन हैं और 2020–21 में शामिल किसान संगठनों की गिनती 500 के आसपास थी.
पिछले तीन दिनों से सड़कें जाम होने से अब उसका असर जनजीवन पर भी देखा जा रहा है. पिछले तीन दिनों से पंजाब और हरियाणा को जोड़ने वाले दो बड़े राष्ट्रीय राजमार्ग बंद पड़े हैं. शंभू बॉर्डर को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग के दोनों तरफ उद्योगों का कच्चा माल और तैयार माल ले जाने वाले ट्रैकों की लंबी लाइन लगी है. इस राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित होटल रेस्टोरेंट और खाने पीने की दुकानों पर ग्राहकों के लाले पड़ गए है. पंजाब के विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्र कक्षा में नहीं जा पा रहे हैं.
किसान आंदोलन की वजह से पहले से ही करोड़ों रुपए का नुकसान उठाने वाले ट्रांसपोर्टरों और उद्योगपतियों ने चिंता जताई है कि अगर सड़के ना खुली तो उनको अपना कारोबार बंद करना पड़ सकता है. वहीं अब किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच तीसरे दौर की बैठक आज चंडीगढ़ में आयोजित की जा रही है. पिछली दो बैठकों में विवाद का कोई हल नहीं निकला क्योंकि किसान एक-एक करके अजीबोगरीब मांगे सरकार के सामने ला रहे हैं.
कई मांगे तो अव्यावहारिक है जिसकी वजह से डेडलॉक बढ़ सकता है.
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