Makhana: चुनावी रंग में रंगा बिहार का मखाना, किसानों ने लोकल बाजार बनाने की उठाई मांग

Makhana: चुनावी रंग में रंगा बिहार का मखाना, किसानों ने लोकल बाजार बनाने की उठाई मांग

बिहार का मखाना, जिसे अब "सुपरफूड" के रूप में जाना जाता है, अपनी बढ़ती लोकप्रियता के साथ न सिर्फ राज्य की अर्थव्यवस्था को बल दे रहा है, बल्कि किसानों के लिए एक नए अवसर का द्वार भी खोल रहा है. अगर सरकार मखाना की खेती के प्रत्येक चरण में किसानों के साथ उचित कदम उठाती है, तो यह राज्य के लिए एक बहुत लाभकारी उद्योग बन सकता है.

Cultivation and production of MakhanaCultivation and production of Makhana
प्राची वत्स
  • Noida,
  • Mar 04, 2025,
  • Updated Mar 04, 2025, 2:02 PM IST

बिहार का सुपरफूड 'फॉक्स नट्स' यानी मखाना अब सिर्फ राज्य ही नहीं, बल्कि पूरे देश के ध्यान का केंद्र बन चुका है. चुनावी वर्ष में इसने अपनी अहमियत और लोकप्रियता में अचानक वृद्धि पाई है, और इसका श्रेय हाल ही में पेश किए गए यूनियन बजट 2025 को जाता है, जिसमें मखाना को एक खास स्थान दिया गया है. इस निर्णय ने न सिर्फ मखाना के उत्पादन को बढ़ावा दिया, बल्कि किसानों के लिए भी नए अवसर खोले हैं.

किसानों की उम्मीदें और चुनौतियां

बिहार में मखाना की खेती करने वाले किसानों का कहना है कि सरकार को इस फसल की खेती के हर चरण में मज़दूरी के लिए दर तय करनी चाहिए, ताकि बुवाई से लेकर रोपाई, कटाई और पैकेजिंग तक, हर चरण में किसान को उचित मुआवजा मिल सके. इससे मखाना की खेती से जुड़े किसानों के साथ हो रहे शोषण को रोका जा सकेगा. किसानों का यह भी कहना है कि सरकार को स्थानीय बाज़ार बनाने चाहिए, ताकि वे बिचौलियों पर निर्भर हुए बिना अपने उत्पाद बेच सकें.

आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़े

हाल ही में हुए बिहार आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, 2023-24 में राज्य में मखाना का उत्पादन 56.4 हज़ार टन था और यह 27.8 हज़ार हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ था. हालांकि, बिहार में मखाना की मार्केटिंग व्यवस्था, खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों और निर्यात बुनियादी ढांचे की कमी के कारण, मखाना के निर्यात में पंजाब और असम जैसे राज्य अग्रणी हैं. इन राज्यों के माध्यम से मखाना विदेशी बाजारों में निर्यात किया जाता है.  

सरकार ने मखाना को एक ऐसी फसल के रूप में पहचाना है, जिसमें "एक प्रमुख निर्यात उत्पाद बनने की क्षमता" है. इस दृष्टिकोण से, मखाना की खेती करने वाले मल्लाहों पर विशेष ध्यान दिया गया है, जो राज्य के एक पिछड़े समुदाय के सदस्य हैं और मखाना की खेती पर लगभग एकाधिकार रखते हैं. 

ये भी पढ़ें: मखाना बोर्ड के निर्माण में 100 करोड़ का निवेश, तेज़ी से काम करने का निर्देश

पारंपरिक से आधुनिक खेती तक

पारंपरिक रूप से, मखाना तालाबों में उगाया जाता था, लेकिन अब इसे ज्यादातर खेतों में उगाया जाता है. मखाना का फसल मौसम जनवरी में बुवाई से शुरू होकर जुलाई-सितंबर में कटाई तक रहता है. 

रोपाई के लिए बीज पिछले साल की फसल से या फिर सरकार के कृषि विज्ञान केंद्रों से मिलते हैं, जहां किसान 180 रुपये प्रति किलोग्राम की सब्सिडी दर पर बीज खरीद सकते हैं. शुरुआत में, किसान बीज को छोटी नर्सरियों में बोते हैं, जहां कुछ इंच पानी जमा रहता है. जैसे-जैसे महीने बीतते हैं, पानी का स्तर बढ़ता जाता है, जिससे पौधों का विकास होता है. लगभग 2-3 सप्ताह बाद, इन पौधों को बड़े खेतों में स्थानांतरित कर दिया जाता है. 

ये भी पढ़ें: आखिर कहां बनेगा बिहार का मखाना बोर्ड? बजट में ऐलान के बाद सुलगी राजनीति

मखाना की कीमत में बढ़त

मखाना की कीमत हर चरण में बढ़ती जाती है. जब मखाना बाजार में पहुंचता है, तो यह 1,200 से 2,000 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिकता है, जो इसकी क्वालिटी पर निर्भर करता है. हालांकि, कई किसान मखाना भूनने के लिए मज़दूरों को रखने में असमर्थ होते हैं, और इसलिए वे कच्चे बीज को 300 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेच देते हैं. 

बाजारों में मखाना का व्यापार

बिहार के विभिन्न बाजारों, जैसे दरभंगा, में मखाना के व्यापारी नमूने की जांच करने और उत्पाद खरीदने के लिए आते हैं. व्यापारियों द्वारा अक्सर तय कीमत का 60 प्रतिशत एडवांस भुगतान किया जाता है, जो मखाना की मांग को बताता है. मखाना की व्यापारिक प्रक्रिया में सुधार लाने और किसानों के साथ बेहतर सौदे सुनिश्चित करने के लिए सरकार को आगे आकर ठोस कदम उठाने होंगे.

सरकार की पहल और दिशा

सरकार ने मखाना को एक प्रमुख निर्यात उत्पाद के रूप में पहचानते हुए इसके उत्पादन, प्रसंस्करण और निर्यात के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की है. यदि सरकार मखाना के उत्पादन से जुड़ी समस्याओं का समाधान करने में सफल होती है, तो यह न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार करेगा, बल्कि बिहार को मखाना के वैश्विक निर्यातक के रूप में स्थापित करेगा.

मखाना की खेती को लेकर बिहार के किसानों और सरकार के बीच एक सकारात्मक संवाद की आवश्यकता है, ताकि इस सुपरफूड के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सके और मखाना की खेती करने वाले किसानों को लाभ मिल सके. साथ ही, इसके निर्यात को बढ़ाने के लिए जरूरी बुनियादी ढांचे का विकास किया जा सके.

बिहार का मखाना, जिसे अब "सुपरफूड" के रूप में जाना जाता है, अपनी बढ़ती लोकप्रियता के साथ न सिर्फ राज्य की अर्थव्यवस्था को बल दे रहा है, बल्कि किसानों के लिए एक नए अवसर का द्वार भी खोल रहा है. अगर सरकार मखाना की खेती के प्रत्येक चरण में किसानों के साथ उचित व व्यवहारिक कदम उठाती है, तो यह राज्य के लिए एक अत्यंत लाभकारी उद्योग बन सकता है.

MORE NEWS

Read more!