PHOTOS: प्याज की खेती क्यों कम कर रहे हैं किसान, जानिए दो बड़ी वजह

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PHOTOS: प्याज की खेती क्यों कम कर रहे हैं किसान, जानिए दो बड़ी वजह

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जलगांव के खानदेश में गर्मी या रबी सीजन में प्याज की खेती जारी है. जलगांव जिले का चोपड़ा तालुका इसकी खेती में काफी आगे माना जाता है. पिछले 15 से 20 दिनों से प्याज के नर्सरी की रोपाई चल रही है. शुरू से ही संकेत थे कि इस साल खेती कम होगी. क्योंकि वर्षा कम हो रही है और दाम भी कम म‍िल रहा है. ग्रीष्मकालीन प्याज की खेती में धुले जिला भी काफी आगे माना जाता है. लेकिन इस साल धुले में खेती कम हो गई है. 
 

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कम दाम और कम बारिश के कारण खेती के रकबा में बड़ी गिरावट आई है. कई क‍िसानों ने रकबा कम कर दिया है. जिस वक्त प्याज के दाम बढ़े थे, उस वक्त किसानों के पास बेचने के लिए प्याज नहीं था. जैसे ही किसानों के खेतों में प्याज की फसल आने लगी, कीमतें कम हो गईं. 
 

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इसका असर प्याज की खेती पर भी पड़ा है. खानदेश में ग्रीष्मकालीन प्याज की खेती 12 से 13 हजार हेक्टेयर में होती है. लेकिन इस साल संकेत हैं कि रकबा 9,500 से 10,500 हेक्टेयर के आसपास ही रहेगा. जब मौसम और बाजार साथ नहीं देगा तो फ‍िर क‍िसान घाटा सहने के ल‍िए खेती क्यों करेंगे. 
 

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राज्य के और ह‍िस्सों से भी रबी सीजन के प्याज की खेती का रकबा स‍िकुड़ने की खबर है. क‍िसान बाजार में प्याज का दाम ग‍िराने को लेकर सरकारी हस्तक्षेप से परेशान हैं, वरना प्याज उनके ल‍िए कभी घाटे का सौदा नहीं बनती. 

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जलगांव जिले में चालिसगांव, भडगांव, पचोरा, अमलनेर, धरनगांव में प्याज की खेती में कमी आई है. लेकिन चोपड़ा और यावल क्षेत्रों में खेती स्थिर है. दूसरी ओर नंदुरबार, शहादा, नवापुर, नंदुरबार तालुका में प्याज की फसल होती है. वहां खेती भी खेती कम हो रही है. जो अगले साल सरकार के ल‍िए बड़ी च‍िंता का सबब हो सकती है. क‍िसान अब अपनी फसल एक-दो रुपये क‍िलो नहीं बेचना चाहते. वो प्याज की जगह गेहूं, कपास, सोयाबीन की खेती करेंगे. क्योंक‍ि इनमें प्याज ज‍ितना घाटा नहीं है. 

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ग्रीष्मकालीन प्याज की खेती के लिए किसान लाल प्याज की किस्म को प्राथमिकता दे रहे हैं. कुछ किसानों ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत सफेद प्याज की खेती भी की है. सफेद प्याज की खेती धुले, जलगांव और नंदुरबार में भी की गई है. किसान अब कम अवधि वाली किस्मों को प्राथमिकता दे रहे हैं. प्याज की खेती के लिए किसानों ने अपने खेतों में नर्सरी तैयार की थी.इन नर्सरियों में पौधों को को अब खेत में लगाया जा रहा है. किसान बीज की लागत की न‍िकालने के ल‍िए रोपण के बाद बची हुई नर्सरी को बेच रहे हैं.

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