सर्दियों में थाली में आने वाली हरी मटर को हम आमतौर पर स्वादिष्ट सब्जी के तौर पर ही जानते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यही मटर की फसल खेत के लिए प्राकृतिक खाद का काम भी करती है. मटर सिर्फ पैदावार नहीं देती, बल्कि मिट्टी की सेहत को भी चुपचाप बेहतर बनाती है. यही वजह है कि कृषि वैज्ञानिक मटर को एक स्मार्ट फसल मानते हैं.
दरअसल, मटर दलहनी फसलों की श्रेणी में आती है. दलहनी फसलों की सबसे बड़ी खासियत यह होती है कि वे हवा में मौजूद नाइट्रोजन को सीधे मिट्टी में बदलने की क्षमता रखती हैं. हवा में लगभग 78 प्रतिशत नाइट्रोजन होती है, लेकिन पौधे इसे सीधे इस्तेमाल नहीं कर पाते. मटर इस मुश्किल काम को आसान बना देती है.
मटर की जड़ों में छोटे-छोटे गांठ जैसे ढांचे बनते हैं, जिन्हें नोड्यूल कहा जाता है. इन नोड्यूल्स के अंदर राइजोबियम नाम के खास बैक्टीरिया रहते हैं. ये बैक्टीरिया हवा से नाइट्रोजन पकड़ते हैं और उसे ऐसे रूप में बदल देते हैं, जिसे पौधे और मिट्टी आसानी से इस्तेमाल कर सकें. इसी प्रक्रिया को नाइट्रोजन फिक्सेशन कहा जाता है.
कृषि शोधों के अनुसार, मटर की एक फसल खेत में करीब 20 से 40 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर तक जोड़ सकती है. इसका सीधा फायदा यह होता है कि मटर के बाद बोई जाने वाली फसल को कम रासायनिक खाद की जरूरत पड़ती है. यही कारण है कि कई किसान मटर के बाद गेहूं, सरसों या आलू की खेती करना पसंद करते हैं.
मटर की एक और खास बात यह है कि फसल कटाई के बाद अगर इसकी जड़ें खेत में ही छोड़ दी जाएं तो मिट्टी की जैविक गुणवत्ता और बेहतर हो जाती है. इससे जमीन नरम रहती है, सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ती है और लंबे समय में खेत की उर्वरा शक्ति मजबूत होती है.
कई इलाकों में मटर को ग्रीन मैन्योर यानी हरित खाद की तरह भी देखा जाता है. कुछ किसान तो मटर की फसल को पूरी तरह नहीं काटते, बल्कि मिट्टी में पलट देते हैं, ताकि खेत को ज्यादा से ज्यादा प्राकृतिक पोषण मिल सके.
सरल शब्दों में कहें तो मटर वह सब्जी है, जो खुद तो हमारी थाली भरती ही है, साथ ही खेत की भूख भी मिटाती है. यही कारण है कि मटर की खेती सिर्फ कमाई का जरिया नहीं, बल्कि मिट्टी बचाने और खेती को टिकाऊ बनाने का भी एक मजबूत तरीका मानी जाती है.