राजस्थान की तपती धूप और कम पानी वाले इलाकों में खेती करना आसान नहीं है, लेकिन पश्चिमी राजस्थान के प्रगतिशील किसान रावल चंद जी ने इस मुश्किल को अपनी ताकत बना लिया. उन्होंने यह साबित कर दिया कि अगर सोच नई हो और मेहनत सच्ची, तो बंजर जमीन भी सोना उगल सकती है. शकरकंद की खेती में उनका प्रयोग आज पूरे इलाके के किसानों के लिए प्रेरणा बन गया है.
रावल चंद जी ने वैज्ञानिक नजरिए और अपने खेतों के अनुभव के दम पर शकरकंद की तीन खास किस्में विकसित कीं. इन किस्मों ने न सिर्फ पैदावार बढ़ाई, बल्कि पोषण और बाजार की मांग-दोनों पर खरी उतरीं. उनका मानना है कि असली खेती किताबों से नहीं, बल्कि मिट्टी से सीखनी चाहिए.
रावल चंद जी द्वारा विकसित शकरकंद की किस्में हैं- ‘थार मधु’, ‘सफेद शकरकंद’ और ‘मरु गुलाबी’. ये तीनों किस्में राजस्थान की गर्म और शुष्क जलवायु के लिए बिल्कुल अनुकूल हैं और कम पानी में भी शानदार उत्पादन देती हैं.
‘थार मधु’ किस्म अपनी जबरदस्त मिठास और औषधीय गुणों के लिए जानी जाती है. इसके गुलाबी रंग के फल एंटी-ऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं. यह किस्म 120 से 130 दिन में तैयार हो जाती है और 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार देती है.
थार मधु की खास बात यह है कि खुदाई के 10 दिन बाद भी यह खराब नहीं होती. इसमें रेशे नहीं होते और यह लंबे समय तक जमीन में भी सुरक्षित रह सकती है. इसी वजह से बाजार में इसकी मांग लगातार बनी रहती है और किसानों को अच्छा दाम मिलता है.
‘सफेद शकरकंद’ उन लोगों के लिए खास है जो डायबिटीज से परेशान हैं. खाने में मीठी होने के बावजूद इसमें शुगर की मात्रा कम पाई गई है. यह किस्म 90 से 100 दिन में तैयार हो जाती है और करीब 367 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार देती है, जिससे किसानों को कम समय में ज्यादा मुनाफा मिलता है.
‘मरु गुलाबी’ किस्म ने उत्पादन के मामले में सभी को पीछे छोड़ दिया है. इसके फल अंदर-बाहर से गहरे बैंगनी रंग के होते हैं और इसमें फाइबर की मात्रा अधिक होती है, जो पाचन के लिए फायदेमंद है. यह किस्म 100 से 110 दिन में पकती है और 434 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार दे सकती है.
मरु गुलाबी न सिर्फ देखने में आकर्षक है, बल्कि बाजार में इसकी मांग भी काफी ज्यादा है. यह चिप्स, ग्रेवी और सलाद बनाने के लिए बेहद उपयोगी है. इसी वजह से स्थानीय किसानों की आमदनी में अच्छी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है.
कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर के परीक्षणों में यह सामने आया कि रावल चंद जी की ये तीनों किस्में गर्म और शुष्क जलवायु के लिए पूरी तरह उपयुक्त हैं. इनमें कीट और रोग कम लगते हैं और खाद व कीटनाशकों पर खर्च भी काफी घट जाता है.
रावल चंद जी की यह सफलता आज हजारों किसानों के लिए नई उम्मीद बन चुकी है. शकरकंद की इन किस्मों का रकबा लगातार बढ़ रहा है और अब इन्हें राजस्थान के बाहर भी पहुंचाने की तैयारी है. उनका यह नवाचार साबित करता है कि सही सोच और मेहनत से खेती को भी मुनाफे का सौदा बनाया जा सकता है.