अमरूद के पौधों और पेड़ में जुलाई से सितंबर के दौरान जब वातावरण में नमी बढ़ जाती है तो कोलेटोट्राईकम (Colletotrichum) नामक फफूंद के कारण एन्थ्रक्नोज़ रोग का प्रभाव सबसे अधिक देखने को मिलता है. समय पर पहचान और उचित प्रबंधन से इस विनाशकारी रोग से बचा जा सकता है. नहीं तो बागवानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है क्योंकि ऐसे फल बाजार में बिकने लायक नहीं रहते हैं.
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा- समस्तीपुर, बिहार पादप रोगविज्ञान हेड डॉ एस.के. सिंह ने बताया कि एन्थ्रक्नोज़ रोग सबसे पहले जुलाई-अगस्त के महीनों में अमरूद के पेड़ों की नई और कोमल पत्तियों और टहनियों पर हमला करता है.
डॉ एस.के. सिंह ने कहा कि एन्थ्रक्नोज रोग के कारण प्रभावित पत्तियों पर काले या चॉकलेट रंग के अनियमित धब्बे बनने लगते हैं, जिससे पत्तियां पीली पड़कर कमजोर हो जाती हैं और अंततः गिर जाती हैं. आसपास की पत्तियां भी काली-भूरी हो जाती हैं और ऊपर की टहनियां काली पड़ने लगती हैं.
नई कलियां फूल बनने से पहले ही कमजोर होकर गिर जाती हैं. यदि इस अवस्था में उपचार न किया जाए, तो पूरी टहनी सूख कर गिर सकती है. रोग फलों को भी प्रभावित करता है, जिससे उन पर छोटे, धंसे हुए काले धब्बे दिखाई देते हैं और फल अंदर से सड़ने लगते हैं. छोटी कलियां और फूल भी समय से पहले सूख कर गिर जाते हैं.
एन्थ्रक्नोज़ रोग को नियंत्रित करने के लिए एकीकृत नजरिया अपनाना जरूरी है, जिसमें स्वच्छता, उचित बागवानी प्रथाएं और आवश्यकतानुसार रासायनिक नियंत्रण शामिल है. अमरूद के पेड़ के आसपास के क्षेत्र को हमेशा साफ-सुथरा रखें. ज़मीन पर गिरी हुई किसी भी संक्रमित पत्ती, फल या पौधे सामग्री को तुरंत हटा दें और उचित तरीके से नष्ट कर दें. और अमरूद के पेड़ की नियमित रूप से छंटाई करें. फल की पूरी तुड़ाई के बाद, पेड़ से सूखी और रोगग्रस्त टहनियों को तेज चाकू या सिकेटियर से काट दें.
कटे हुए हिस्से पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के गाढ़े पेस्ट का लेप लगाएं, ताकि संक्रमण दोबारा न फैले. एन्थ्रक्नोज़ संक्रमण के लक्षणों के लिए अपने अमरूद के पेड़ का नियमित रूप से निरीक्षण करें. इसके पौधो की टहनियों पर सीधे पानी छिड़काव ना करें. इससे रोग फैलता है. उचित और सही मात्रा में उर्वरक प्रंबधन पर खास ध्यान दें.
अगर अमरूद का पेड़ एन्थ्रक्नोज़ से गंभीर रूप से प्रभावित है, तो अंतिम उपाय के रूप में कवकनाशी का उपयोग करें. रासायनिक दवा हेक्साकोनाजोल या प्रोपिकोनाजोल नामक फफूंदनाशी की 2 मिली दवा को प्रति लीटर पानी में घोलकर उसमें आधा मिली लीटर स्टीकर मिलाकर दो छिड़काव करें. पहला छिड़काव फूल आने के 15 दिन पहले और दूसरा छिड़काव पेड़ में पूरी तरह से फल लग जाने के बाद करने से रोग की उग्रता में भारी कमी आती है.
इसके आलवा कार्बेडाजिम 12% + मैन्कोजेब 63% जो कि साफ नाम से बाजार में आती है, इसकी 3 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से भी रोग की उग्रता में भारी कमी आती है. अमरूद के पौधों में 25 जून के आसपास इसका स्प्रे करने से बरसात के मौसम में इस रोग से बचाव करता है और सर्दियों में फसल को सुरक्षित रखने में मदद करता है.