तीसरी बार भी नहीं मानी हार, पटमदा के किसानों ने की बंपर गेंदे की खेती

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तीसरी बार भी नहीं मानी हार, पटमदा के किसानों ने की बंपर गेंदे की खेती

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जमशेदपुर का पटमदा इलाका सर्दियों में फूलों की खेती के लिए जाना जाता है. यहां के किसान लाल, पीला और गुलाबी गेंदा फूल की बेहतरीन वैरायटी उगाते हैं. पिछले साल यहां के 10 किसानों ने बंपर पैदावार ली थी.
 

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इस बार जमशेदपुर और आसपास के इलाकों में लगातार हुई बारिश ने किसानों की मेहनत पर पानी फेर दिया. खेत में लगाए फूलों के बीज बारिश में बह गए. कई किसानों ने खेती छोड़ने का मन बना लिया.
 

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कुमहीर और लोहा डीह गांव के दो किसान-गोराचंद गोराई और युधिष्ठिर महतो-ने भारी नुकसान के बाद भी हार नहीं मानी. गोराचंद गोराई विकलांग हैं और बैसाखी के सहारे चलते हैं, फिर भी उनका जज़्बा कम नहीं हुआ.

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दोनों किसानों के बीज दो बार बारिश में बह गए, लाखों का नुकसान हुआ. फिर भी इन्होंने तीसरी बार गेंदा फूल की खेती की. कठिन परिश्रम और उम्मीद ने इन्हें फिर से खेत में खड़ा कर दिया.
 

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तीसरी बार की गई खेती ने इन किसानों को सफलता दिलाई. खेत अब गेंदा फूलों से भर चुके हैं. नुकसान अभी भी बड़ा है, लेकिन खुशियां उससे भी बड़ी हैं.
 

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किसानों के खेतों से हर दिन 2 से 3 क्विंटल गेंदा फूल तोड़े जा रहे हैं. इन्हें झारखंड, बिहार और बंगाल के कई शहरों में भेजा जाता है.

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किसानों का कहना है कि इस साल की अच्छी पैदावार से पिछले दो बार हुए भारी नुकसान की भरपाई हो जाएगी. उनका उत्साह पहले से भी ज्यादा है.
 

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जितेंद्र कुमार महतो बताते हैं कि उन्होंने चार वैरायटी के गेंदा फूल लगाए हैं और हर दिन लगभग 2 क्विंटल फूल निकाल रहे हैं. युधिष्ठिर महतो कहते हैं कि उन्होंने दो एकड़ में फूल लगाए-नुकसान झेला, पर हिम्मत नहीं खोई. गोराचंद गोराई कहते हैं-“दो बार बीज बह गया, पर हमने हिम्मत नहीं छोड़ी. इस बार अच्छा उत्पादन मिल रहा है.”
 

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पटमदा के ये किसान साबित करते हैं कि खेती में मेहनत, धैर्य और उम्मीद सबसे बड़ा बल है. नुकसान कितना भी बड़ा हो, हौसला और जज़्बा हो तो किसान फिर से खड़ा हो सकता है. इस बार की फूलों की खेती उनके संघर्ष और सफलता की मिसाल है. (अनूप सिन्हा का इनपुट)

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