Fact Of The Day: भारत में हर साल इतने हजार करोड़ के अनाज-खाद्य उपज की होती है बर्बादी, देखें आंकड़े

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Fact Of The Day: भारत में हर साल इतने हजार करोड़ के अनाज-खाद्य उपज की होती है बर्बादी, देखें आंकड़े

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क्या आप जानते हैं कि भारत में हर साल उगाई गए अनाज का काफी हिस्‍सा लोगों की थाली तक पहुंच ही नहीं पाता. खेत में मेहनत, पानी और खाद लगाने के बाद भी यह अनाज/खाद्य उपज रास्ते में ही खराब हो जाते हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह खराब भंडारण, कमजोर सप्लाई चेन और कोल्ड स्टोरेज की कमी है. यह सिर्फ खाने की बर्बादी नहीं है, बल्कि किसानों की कमाई और देश की खाद्य सुरक्षा पर सीधा असर डालने वाली समस्या है.
 

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कटाई के बाद होने वाले इस नुकसान को पोस्ट-हार्वेस्ट लॉस कहा जाता है. खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के लिए ICAR के तहत काम करने वाले CIPHET संस्थान ने साल 2015 में एक विस्तृत अध्ययन किया था. इस अध्ययन में देश की 45 प्रमुख फसलें और पशुधन उत्पाद शामिल किए गए थे. इसमें देखा गया कि कटाई के बाद भंडारण, ढुलाई, प्रोसेसिंग और बाजार तक पहुंच के दौरान कितनी फसल नष्ट हो जाती है.

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इस सरकारी स्‍टडी के मुताबिक, भारत में पोस्ट-हार्वेस्ट मात्रात्मक हानि की कुल आर्थिक कीमत करीब 92,651 करोड़ रुपये आंकी गई थी. इसमें सिर्फ अनाज, दाल और तिलहन जैसी जरूरी फसलों का नुकसान ही लगभग 32,853 करोड़ रुपये बताया गया. यानी देश की खाद्य सुरक्षा की रीढ़ मानी जाने वाली फसलें ही सबसे ज्यादा बर्बादी का शिकार हो रही हैं. फल, सब्जियां, मसाले और पशुधन उत्पादों में होने वाला नुकसान अलग से है.
 

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नीति आयोग ने भी अपनी आधिकारिक रिपोर्टों में माना है कि बिखरी हुई मंडी व्यवस्था, वैज्ञानिक भंडारण की कमी और कमजोर कोल्ड चेन की वजह से हर साल करीब 90,000 करोड़ रुपये तक के कृषि उत्पाद नष्ट हो जाते हैं. कई बार किसान को फसल का सही दाम नहीं मिल पाता और कई बार उपभोक्ताओं को वही चीज महंगे दामों पर खरीदनी पड़ती है. नुकसान का बोझ दोनों पर पड़ता है.
 

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केवल अनाज के भंडारण की बात करें तो सरकारी अनुमानों के मुताबिक, खराब स्टोरेज व्यवस्था के कारण हर साल लाखों टन खाद्यान्न खराब हो जाता है. इसकी अनुमानित कीमत करीब 7,000 करोड़ रुपये बताई जाती है. नमी, कीट, चूहे और पुराने गोदाम इस नुकसान की बड़ी वजह हैं.
 

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सरकार इस नुकसान को कम करने के लिए आधुनिक साइलो, गोदाम, कोल्ड स्टोरेज और फार्म-गेट प्रोसेसिंग को बढ़ावा दे रही है. इसके बावजूद विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक गांव और मंडी स्तर पर भंडारण और ढुलाई की व्यवस्था मजबूत नहीं होगी, तब तक यह बर्बादी पूरी तरह नहीं रुकेगी.
 

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हालांकि, अब केंद्र सरकार इस पूरे नुकसान की ताजा तस्वीर सामने लाने की तैयारी कर रही है. खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय ने हाल ही में नई स्टडी के लिए टेंडर आवेदन आमंत्रित किए हैं, ताकि देश में मौजूदा समय में पोस्ट-हार्वेस्ट और भंडारण के दौरान हो रही खाद्यान्न बर्बादी का सही आकलन किया जा सके. 
 

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सरकारी स्तर पर यह भी माना जा रहा है कि बीते कुछ वर्षों में साइलो स्टोरेज, कोल्ड चेन और इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़ने से पहले के मुकाबले बर्बादी में कुछ कमी आई है, लेकिन इसका स्पष्ट और अपडेटेड आंकड़ा नई स्टडी के बाद ही सामने आएगा.
 

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