गिनी फाउल पालन से एक नहीं तीन तरह से मुनाफा होता है. बाजार में जहां गिनी फाउल के मीट और अंडे की डिमांड है तो वहीं उसके पंखों की भी खूब मांग है. गिनी फाउल एक्सपर्ट का कहना है कि साल के 12 महीने गिनी फाउल के मीट और अंडों की डिमांड रहती है.
खासतौर पर क्रिसमस और न्यू ईयर के दौरान गिनी फाउल के मीट की डिमांड और ज्यादा बढ़ जाती है. अंडे तो हर मौसम में खाए जाते हैं. हाथ से बना सजावटी सामान तैयार करने वाले पंख खरीदने के लिए खुद ही फार्म पर आ जाते हैं.
गिनी फाउल का पालन मीट, अंडों और पंखों के लिए होता है. इसके मीट कम फैट वाले और स्वादिष्ट होते हैं. साथ ही इसके मीट का डिमांड बाजारों में ज्यादा है.वहीं, गिनी फाउल एक साल में 100 से 120 अंडे देती है. हैंडी क्रॉफ्ट और सजावट में गिनी फाउल के पंखों का इस्तेमाल भी किया जाता है.
गिनी फाउल को एक सुरक्षित, सूखा और अच्छा हवादार पिंजरा चाहिए होता है. वहीं, एक गिनी फाउल को रहने के लिए कम से कम 2-3 वर्ग फुट जगह की जरूरत होती है. गिनी फाउल को बैलेंस डाइट की जरूरत होती है.
गिनी फाउल को अंडा और मीट उत्पादन के लिए अनाज, प्रोटीन, विटामिन और खनिज वाला फीड खिलाया जाता है. वहीं, इसके नियमित टीकाकरण कराना, हैल्था प्रेक्टिहस अपनाना और बीमारियों के लक्षण पकड़ने के लिए पक्षियों पर पैनी नजर रखना होता है.
गिनी फाउल का बाजार खासतौर से रेस्तरां, किसान बाज़ार और मीट की दुकानें होती हैं. मीट के लिए एक गिनी फाउल 12 से 14 सप्ताह में पौने दो किलो तक का हो जाता है. गिनी प्राकृतिक कीट नियंत्रक है जो खेत में टिक्स और कीड़ों को कम करने में मदद करती है.
बेशक भारत में मुर्गे-मुर्गियों की डिमांड बहुत ज्यादा है. लेकिन होटल और मीट बाजार में गिनी फाउल की भी अच्छी डिमांड है. इसके साथ ही खुले बाजार में अंडे भी खूब बिकते हैं. इसी को देखते हुए गिनी फाउल का पालन बढ़ता जा रहा है. सरकारी केन्द्र गिनी पालन की ट्रेनिंग भी कराते हैं.