भारत में हजारों साल पुरानी खेती की परंपरा में किसानों ने बादलों के विज्ञान को अपने अनुभवजन्य ज्ञान से सींचा है. भारत में खेती की समृद्ध परंपरा के प्रमाण महाभारत काल से ही मिलने लगते हैं. भारत में History of Farming के जानकार Progressive Farmer पुष्पेंद्र सिंह के मुताबिक भारतीय ज्ञान परंपरा में मौसम विज्ञान का स्थान बहुत पुराना है. वस्तुतः इस विज्ञान का संबंध कालगणना से जुड़े ज्योतिष विज्ञान से है. उनका दावा है कि इस विज्ञान को विकसित करने में इस देश की घुमंतू जातियों ने अहम भूमिका निभाई है. मौसम की गति को समझते हुए अपने पशु धन के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान का भ्रमण करने वाली इन जातियों में गडरिया समुदाय को ही Weather Expert माना गया है. इनके द्वारा बताए गए पूर्वानुमान के आधार पर ही किसान अपनी खेती के काम को आगे बढ़ाते थे. इन सभी समाजों के खेती से जुड़े समेकित ज्ञान को संकलित करने में साहित्य ने भी अपनी भूमिका निभाई है. लगभग 5 सदी पहले जनकवि घाघ की कहावतें और दोहे खेती के गूढ़ ज्ञान से जुड़े थे. इनमें मौसम की गति पर विशेष जोर दिया गया है.
घाघ के दोहे और कहावतें किसानों को मौसम के मिज़ाज के बारे में बताते थे. यूपी और बिहार सहित अन्य हिंदी पट्टी राज्यों के किसान आज भी 16वीं शताब्दी के जनकवि घाघ को अपना मौसम वैज्ञानिक मानते हैं. खेती किसानी से जुड़ी घाघ की कहावतें और दोहे हिंदी भाषी राज्यों के गांव देहात इलाकों में हर जन मन में रचे से हैं.
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मुगल बादशाह अकबर के समकालीन रहे घाघ का पूरा साहित्य अलिखित ही है. इसलिए जनश्रुति परंपरा से गांव गांव तक अपनी बात को पहुंचाने वाले घाघ के इतिहास की भी प्रमाणित जानकारी नहीं है.
ऐसा माना जाता है कि यूपी में कन्नौज के मूल निवासी घाघ का सही नाम देवकली दुबे था. पैनी नजर वाले व्यक्ति को स्थानीय भाषा में 'घाघ' कहा जाता है. संभवत: इसी वजह से खेती और मौसम के बारे में उनकी पैनी नजर और गूढ़ ज्ञान से प्रभावित होकर वह किसानों में 'घाघ' उपनाम से मशहूर हुए.
कहते है कि घाघ के ज्ञान और उसे प्रकट करने के तरीके से प्रसन्न होकर अकबर ने उन्हें 'चौधरी' की उपाधि देते हुए 'सरायघाघ' नामक गांव बसाने की आज्ञा दी थी. यह गांव आज भी कन्नौज से लगभग एक मील दूर दक्षिण में मौजूद है. एक मत यह भी कहता है कि वह बिहार में छपरा के मूल निवासी थे और बाद में कन्नौज आकर बस गए थे.
घाघ के साहित्य को तमाम लोगों ने संकलित करने का प्रयास किया. इनमें डॉ जॉर्ज ग्रियर्सन का नाम प्रमुख है. उन्होंने भोजपुरी में घाघ के साहित्य को संकलित किया.वहीं रामनरेश त्रिपाठी द्वारा संकलित घाघ और भड्डरी घाघ के साहित्य को हिंदुस्तान अकादमी ने 1931 में प्रकाशित किया था. ऐसा माना जाता है कि घाघ की पत्नी का नाम भड्डरी था और वह भी घाघ की कहावतों का प्रतिउत्तर कहावत में ही देती थीं.
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भारत, कृषि प्रधान देश है. भारत में कृषि का मुख्य आधार बारिश है. South West Monsoon ही समूचे उत्तर भारत की खेती काे मूल आधार प्रदान करता है. एक बार फिर बारिश के मौसम ने दस्तक दे दी है. अब गांव देहात में किसानों की जुबान पर घाघ की बारिश से जुड़ी लोकप्रिय कहावतें बरबस आने लगी हैं.
देश में प्राचीन मान्यता है कि 'पर्जन्यादन्नसम्भव:, अर्थात समुचित वर्षा होने पर ही अन्न की उपज ठीक से हो सकती है. ऐसे में बारिश कब होगी, कितनी होगी, बारिश होगी भी या नहीं होगी, किसानों को इसका ज्ञान होना बहुत जरूरी है. लगभग 100 साल पहले IMD के वजूद में आने से सदियों पहले घाघ की भविष्यवाणियां ही किसानों के लिए अंधेरे का उजाला बनती थीं. बारिश के समय को लेकर सबसे लोकप्रिय दोहे में घाघ कहते हैं कि :
आदि न बरसे आद्रा, हस्त न बरसे निदान।
कहै घाघ सुनु घाघिनी, भये किसान-पिसान॥
अर्थात आर्द्रा नक्षत्र के प्रारंभ में और हस्त नक्षत्र के अंत में यदि वर्षा न हुई तो घाघ अपनी पत्नी से कहते हैं कि ऐसी दशा में किसान पिस जाता है अर्थात बर्बाद हो जाता है.
बारिश के समय को लेकर घाघ की एक अन्य कहावत गांव देहात में खूब सुनने को मिलती है.
आषाढ़ी पूनो दिना, गाज, बीज बरसन्त।
नासै लक्षण काल का, आनन्द माने सन्त॥
अर्थात आषाढ़ माह की पूर्णमासी को यदि आकाश में बादल गरजे और बिजली चमके तो यह समझ लेना चाहिए कि वर्षा अधिक होगी और अकाल समाप्त हो जायेगा तथा सज्जन लोग आनंदित होंगे.
बादलों की गति और दिशा के बारे में भी घाघ ने बड़े ही काम की बात कही है.
उत्तर चमके बिजली, पूरब बहै जु बाव।
घाघ कहै सुनु घाघिनी, बरधा भीतर लाव॥
अर्थात यदि उत्तर दिशा में बिजली चमके और पूर्व की दिशा से पुरवाई हवा बह रही हो तो घाघ अपनी पत्नी से कहते हैं कि बैलों को घर के अंदर बांध लो, अब वर्षा शीघ्र होने वाली है.
भारत में ग्रामीण जीवन प्रकृति के साथ कितना तारतम्य कायम करके चलता है, इसका प्रमाण जीव जंतुओं की गतिविधियों पर नज़र रखने के रूप में मिलता है. बारिश की संभावना को तमाम जीव किस प्रकार प्रकट करते हैं, इसका उदाहरण पेश करते हुए जनकवि घाघ ने अपनी एक कहावत में रोचक अंदाज में कहा है कि :
उलटे गिरगिट ऊंचे चढ़ै। बरखा होई भूइं जल बुड़ै॥
अर्थात यदि गिरगिट उलटा पेड़ पर चढ़े तो वर्षा इतनी अधिक होगी कि पूरी धरती पर पानी ही पानी दिखेगा. एक अन्य कहावत में वह कहते हैं कि
करिया बादर जीउ डरवावै। भूरा बादर नाचत मयूर पानी लावै॥
अर्थात आसमान में यदि घनघोर काले बादल छाए हैं तो तेज वर्षा का भय उत्पन्न होगा, लेकिन पानी बरसने के आसार नहीं होंगे, परंतु यदि बादल भूरे हैं व मोर थिरक उठे तो समझो पानी निश्चित रूप से बरसेगा.
बारिश के बारे में दिशाओं से अनुमान लगाने के लिए घाघ ने लिखा है कि
चमके पच्छिम उत्तर कोर। तब जान्यो पानी है जोर॥
अर्थात जब पश्चिम और उत्तर के कोने पर बिजली चमके, तब समझ लेना चाहिए कि बहुत तेज वर्षा होने वाली है.
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विभिन्न महीनों में संभावित बारिश के मिलने वाले संकेतों के बारे में घाघ ने कहावतें गढ़ी हैं. अपनी एक दोहे में वह कहते हैं कि
चैत मास दसमी खड़ा, जो कहुं कोरा जाइ।
चौमासे भर बादला, भली भांति बरसाइ॥
अर्थात चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को यदि आसमान में बादल नहीं है, तो यह मान लेना चाहिए कि इस वर्ष चौमासे में बरसात अच्छी होगी. गौरतलब है कि हिंदी भाषी राज्यों के ग्रामीण इलाकों में बारिश के मौसम को 'चौमासा' भी कहा जाता है.
घाघ ने अपनी कहावतों में नक्षत्रों के आधार पर भी बारिश के पूर्वानुमान का जिक्र किया है. उनकी एक कहावत के मुताबिक
जब बरखा चित्रा में होय। सगरी खेती जावै खोय॥
अर्थात यदि चित्रा नक्षत्र में वर्षा होती है तो संपूर्ण खेती नष्ट हो जाती है. इसलिए कहा जाता है कि चित्रा नक्षत्र की वर्षा ठीक नहीं होती.
इसी प्रकार Hailstorm यानी ओलावृष्टि को लेकर भी घाघ ने अपनी कहावतों के माध्यम से किसानों को कुछ ठोस संकेत दिए हैं. एक कहावत में वह कहते हैं कि
माघ में बादर लाल घिरै। तब जान्यो सांचो पथरा परै॥
अर्थात यदि माघ के महीने में लाल रंग के बादल दिखाई दें तो समझो कि ओले अवश्य गिरेंगे. इस कहावत को मान कर ही किसान माघ महीने में लाल रंग के बादल दिखने पर ओलावृष्टि से निपटने के लिए पहले ही तैयारी कर लेते हैं.
गर्मी के मौसम में नौतपा के दिन किसानों के लिए बारिश का ऐसा संकेत देते हैं कि इससे किसान अपनी साल भर की उपज के बारे अंदाजा लगा लेते हैं. इस स्थिति को समझने के लिए घाघ ने बारिश की दशा को तय करने वाले ग्रीष्म ऋतु के तीन नक्षत्रों का जिक्र करते हुए बहुत ही रोचक अंदाज में एक दोहे में कहा है कि
रोहनी बरसे मृग तपे, कुछ दिन आर्द्रा जाय।
कहे घाघ सुन घाघिनी, स्वान भात नहिं खाय॥
अर्थात घाघ कहते हैं कि हे घाघिन! यदि रोहिणी नक्षत्र में पानी बरसे और मृगशिरा नक्षत्र में गर्मी की तपिश बहुत ज्यादा हो तथा आर्द्रा नक्षत्र के भी कुछ दिन बीत जाने पर वर्षा हो जाए तो पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाते-खाते ऊब जायेंगे और फिर एक स्थिति ऐसी आती है कि वे भात नहीं खाएंगे.
बारिश के मौसम में अंतिम दौर की वर्षा का जिक्र भी घाघ ने अपनी एक कहावत में किया है. इसमें घाघ ने रोचक अंदाज में कहा
सावन के प्रथम दिन, उवत न दीखे भान।
चार महीना बरसै पानी, याको है परमान॥
अर्थात यदि सावन के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को आसमान में बादल छाये रहें और प्रात:काल सूर्य के दर्शन न हों तो निश्चय ही 4 महीने तक जोरदार वर्षा होगी.