बेहतर पैदावार के लिए पपीता में जरूरी है रोग प्रबंधन, यहां पढ़े रोगों से बचाव का तरीका

बेहतर पैदावार के लिए पपीता में जरूरी है रोग प्रबंधन, यहां पढ़े रोगों से बचाव का तरीका

पपीता की खेती में अच्छी उपज और अच्छी कमाई हासिल करने के लिए रोग और कीट प्रबंधन करने की भी बेहद जरूरत होती है क्योंकि इसका पौधा रोग और कीट से बहुत जल्दी प्रभावित होता है और इसका सीधा असर इसकी उपज और क्वालिटी पर पड़ता है.

पपीते की खेतीपपीते की खेती
क‍िसान तक
  • Noida,
  • May 30, 2024,
  • Updated May 30, 2024, 12:19 PM IST

पपीता की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित होती है. यही कारण है कि आज की तारीख में अधिक से अधिक किसान पपीता की व्यावसायिक खेती की तरफ रुख कर रहे हैं. यह एक तेजी से बढ़नेवाला और फल देने वाला पौधा होता है. इसके कारण इसकी खेती में जमीन से पोषक तत्व तेजी से निकलते हैं. इसलिए इसकी खेती में खाद की निर्धारित मात्रा समय-समय पर डालते रहना चाहिए. अच्छी उपज हासिल करने के लिए 250 ग्राम नाइट्रोजन, 150 ग्राम फॉस्फोरस और 250 ग्राम पोटाश प्रति पौधा हर साल देना चाहिए. खादों को तने के चारों तरफ 30 सेंटीमीटर की दूरी पर बिखेरकर मिट्टी में मिला देना चाहिए. 

पपीता की खेती में अच्छी उपज और अच्छी कमाई हासिल करने के लिए रोग और कीट प्रबंधन करने की भी बेहद जरूरत होती है. इसका पौधा रोग और कीट से बहुत जल्दी प्रभावित होता है और इसका सीधा असर इसकी उपज और क्वालिटी पर पड़ता है. पपीता में कीट से अधिक नुकसान नहीं होता है, लेकिन रोग से अधिक नुकसान होता है. इसमें कई प्रकार के रोग होते हैं जिससे पौधों पर असर पड़ता है और उनकी बढ़वार रुक जाती है. पौधे मर जाते हैं.

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पपीता में रोग और रीट प्रबंधन

तना और जड़ गलनः इस रोग में जमीन के पास के हिस्से का ऊपरी छिलका पीला होकर गलने लगता है. इसके साथ ही जड़ भी सड़ने लगती है. इसके बाद पत्तियां सूख जाती हैं और पौधा मर जाता है. इस बीमारी के उपचार के लिए जल निकास की व्यवस्था अच्छी करनी चाहिए और बीमारी से ग्रसित पौधों को उखाड़ कर फेंक देना चाहिए. इसके अलावा पौधौं पर एक प्रतिशत बोर्डेक्स मिश्रण या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को दो ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करना चाहिए. 

डेम्पिंग ऑफः इस बीमारी में नर्सरी में छोटे पौधे नीचे से गलकर मर जाते हैं. इससे बचाव के लिए बीजों को बोने से पहले सेरेसान एग्रोसन जीएम से उपचारित करना चाहिए और क्यारी को 2.5 प्रतिशत फार्मेल्डिहाइड घोल से उपचारित करना चाहिए. 

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मोजेकः इस रोग में प्रभावित पत्तियों का रंग पीला हो जाता है. डंठल छोटा और कारा में सिकुड़ जाता है. इससे बचाव के लिए 250 मिली मैलाथियान 50 ईसी 250 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए. 

चेंपाः यह कीट मुख्य तौर पर पौधों का रस चूसते हैं. यह छोटे और बड़े पौधों के सभी हिस्सों का रस चूसते हैं. इससे विषाणुजनित रोग फैलता है. इसकी रोकथाम के लिए डायमेथोएट 30 ईसी का 1.5 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए. 

पाद विगलनः पौधों में यह रोग पीथियम फ्यूजेरियम नामक फफूंदी के कारण होता है. इसमें रोगी पौधे की बढ़वार रुक जाती है. पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और सड़कर गिर जाती हैं. इसकी रोकथाम के लिए रोग वाले हिस्से को खुरचकर उस पर ब्रासीकोर 2 ग्राम को एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए. 

 

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