खरीफ सीजन में प्याज की खेती की जाती है. इसकी खेती से किसानों को काफी लाभ होता है. पर प्याज की खेती में अच्छी उपज हासिल करने के लिए कुछ खादों का इस्तेमाल करना जरूरी होता है. खेते में रासायनिक खादों के अधिक प्रयोग के कारण प्याज की उपज में स्थिरता आ चुकी है. जबकि कार्बनिक खाद के उपयोग से पोषक तत्वों की पूर्ति हो रही है. साथ ही मिट्टी की गुणवत्ता में भी सुधार हो रहा है. इसलिए अधिक उत्पादन पाने के लिए किसान कार्बनिक खाद के साथ-साथ रासायनिक खाद का भी प्रयोग कर सकते हैं. इससे किसान प्याज की खेती में अधिक क्वालिटी वाला उत्पादन हासिल कर सकते हैं.
प्याज की अच्छी उपज पाने के लिए किसान कार्बनिक खादों में गोबर की खाद का इस्तेमाल कर सकते हैं. गोबर खाद का इस्तेमाल 20-25 टन प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के 10-15 दिन पहले ही खेत में मिला देना चाहिए. इससे फायदा यह होता की प्याज की रोपाई के तुरंत बाद पौधों को पोषक तत्व मिलना शुरू हो जाता है. रबी प्याज की खेती के दौरान अच्छी उपज पाने के लिए खेत में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की निर्धारित मात्रा का इस्तेमाल खेत में करना चाहिए. इसमें फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा पहले ही खेती में डाल देना चाहिए जबकि नाइट्रोजन की आधी मात्रा रोपाई से पहले और आधी मात्रा रोपाई से 30-45 दिनों के अंतराल पर डालना चाहिए.
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खेत में नाइट्रोजन की भारपाई के लिए अमोनियम सल्फेट खाद का इस्तेमाल करना चाहिए. अगर अमोनियम सल्फेट नहीं मिले तो सिंगल सुपर फॉस्फेट का इस्तेमाल किया जा सकता है. इससे फसल के सल्फर की जरूरत पूरी हो जाती है. नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश के बाद गंधक चौथा महत्वपूर्ण तत्व है जो मिट्टी में नाइट्रोजन के स्तर को बनाए रखने में मदद करता है. प्याज की क्वालिटी उपज के लिए सल्फर बहुत जरूरी है क्योंकि प्याज में पाई जाने वाली गंध सल्फर यौगिक डाई अलाइल डाई सल्फाइड के कारण होती है. इसलिए बेहतर प्याज की उपज के लिए कार्बनिक और रासायिनक खाद के साथ गंधक का भी प्रयोग करना चाहिए.
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खरीफ सीजन के प्याज को छोड़ दें तो सामान्य रूप से प्याज की खेती में 10-12 सिंचाई की जरूरत होती है. प्याज एक उथली जड़ वाली फसल है. इसलिए कम दिनों के अंतराल पर हल्की सिंचाई करने से पोधे के जड़ और तने का विकास अच्छे तरीके से होता है. कंद निर्माण के समय पौधों की सिंचाई करना बेहद जरूरी होता है. रबी प्याज की अंतिम सिंचाई खुदाई से 15-20 दिनों पहले ही करनी चाहिए. इससे कंद परिपक्व और विकसित होते हैं. इससे इसके भंडारण की क्षमता भी अधिक हो जाती है.