राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पड़ोसी राज्यों पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने से वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है, जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने इन राज्यों को ऐसी घटनाएं रोकने और उल्लंघन करने वाले किसानों पर कार्रवाई के निर्देश दिए है. सोमवार को हरियाणा के कैथल में पराली जलाने के आरोप में 18 किसानों को पुलिस ने गिरफ्तार किया. हालांकि, एसपी राजेश कालिया ने बताया कि इन किसानों को बाद में जमानत पर छोड़ दिया गया. हाल ही में पराली जलाने की घटनाएं सामने आने और ऐसे किसानों पर कार्रवाई नहीं किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों को तलब किया था, जिसके बाद यह कार्रवाई देखने को मिली.
राज्य सरकारें सैटेलाइट के माध्यम से पराली जलाने की घटनाओं की निगरानी करती हैं. 'इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य के विभिन्न जिलाें में प्रशासन ने इस सीजन में 15 सितंबर से कथित तौर पर पराली जलाने के आरोप में 400 से ज्यादा किसानों को ब्लैक लिस्ट किया है. अब ये किसान दो साल तक सरकारी एमएसपी पर मंडियों में अपनी फसल नहीं बेच पाएंगे. किसान संगठनों ने इन कड़े नियमों और कार्रवाई को लेकर सरकार की आलोचना की है. वहीं, कांग्रेस नेताओं ने इसे 'तुगलकी फरमान' बताया है.
कृषि और किसान कल्याण विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, 327 किसानों के चालान बनाए गए हैं और 93 के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है. इन किसानों से कुल 8.32 लाख रुपये पेनाल्टी वसूली गई है. बता दें कि पिछले साल फसल कटाई के बाद पराली जलाने की 689 घटनाएं रिकाॅर्ड की गई थीं, जबकि इस साल 21 सितंबर तक ही 655 घटनाएं दर्ज की जा चुकी हैं.
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पिछले शुक्रवार को सीएम नायब सिंह ने किसानों पर कठोर कार्रवाई की बात से इनकार कर दिया था. हालांकि, अब यह देखने को मिल रहा है कि अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन कर रहे हैं. वहीं, पराली जलाने के कार्रवाई निर्देशों में ढिलाई बरतने वाले पुलिस विभाग सहित अन्य जिम्मेदार अधिकारियों पर निलंबन की गाज गिरेगी.
राज्य के पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सैनी सरकार पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि किसान मजबूरी में ही पराली जलाते हैं. इसके लिए उन पर जुर्माना लगाना, एफआईआर और उन्हें रेड लिस्ट करना ठीक नहीं है. सरकार को इस समस्या का समाधान निकालना चाहिए. सरकार पराली के निपटान के लिए जिन मशीनों की बात कर रही है, वे उतनी कारगर नहीं हैं. साथ ही ऐसी मशीनों की संख्या भी बहुत कम है. छोटे किसान इन मशीनों से लाभ नहीं ले पा रहे हैं.