किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल डिटेन केस में हाईकोर्ट में आज सुनवाई हुई, जिसमें पंजाब सरकार कहा कि वो पुलिस हिरासत में नहीं हैं और ‘स्वतंत्र’ हैं. संयुक्त मंच “संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) केएमएम” के नेता को अपनी इच्छा से पटियाला के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जस्टिस मनीषा बत्रा ने इस पर संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह सुनिश्चित करें कि उनका परिवार बिना किसी बाधा के अस्पताल परिसर में उनसे मिल सके. हाईकोर्ट में सुनवाई के बाद अब कहा गया कि जगजीत सिंह डल्लेवाल से उनके पारिवारिक सदस्य मिल सकते हैं.
सुनवाई की शुरुआत में, राज्य के वकील ने कहा कि डल्लेवाल ने अस्पताल में भर्ती होने का विकल्प चुना है और वह जाने के लिए स्वतंत्र हैं. उन्होंने कहा, वह जा सकते हैं. उन्होंने खुद अस्पताल जाना पसंद किया. वहीं, वकील ने कहा कि परिवार सुरक्षा प्रोटोकॉल के अधीन उनसे मिल सकता है. सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला देते हुए, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनकी मेडिकल देखभाल के लिए राज्य जिम्मेदार है.
हालांकि, डल्लेवाल के वकील ने दलील दी कि अधिकारी उनके परिवार को उनसे मिलने की अनुमति नहीं दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें पानी भी नहीं मिल रहा है और वे किसी भी व्यक्ति को उनसे मिलने की अनुमति नहीं दे रहे हैं.
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दोनों पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस बत्रा ने खुली अदालत में कहा, “राज्य के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता पुलिस हिरासत में नहीं है, चाहे वह अवैध हो या वैध. उसे उसकी मर्जी से, उसके स्वास्थ्य को देखते हुए, पार्क अस्पताल, पटियाला में भर्ती कराया गया है. इस स्तर पर, याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि परिवार को प्रवेश से वंचित किया जा रहा है. इसे देखते हुए, सरकार को निर्देश दिया जाता है कि वे परिवार के लिए अस्पताल परिसर में उससे मिलने की व्यवस्था करें." वहीं, अगली सुनवाई 26 तारीख को होगी.
यह घटनाक्रम डल्लेवाल की रिहाई की मांग करने वाली डिटेन याचिका पर हुआ. अधिवक्ता गुरमोहन प्रीत सिंह, अंग्रेज सिंह और कंवरजीत सिंह ने प्रतिनिधित्व करते हुए याचिकाकर्ता-किसान नेता गुरमुख सिंह ने तर्क दिया था कि डल्लेवाल को राज्य पुलिस द्वारा कथित रूप से अवैध हिरासत में रखा गया है.
याचिकाकर्ता ने दलील दी थी, "हिरासत में लेना किसानों के आंदोलन को दबाने और शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों में भय पैदा करने का एक प्रयास लगता है, जो संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत बोलने और अभिव्यक्ति, सभा और संघ की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है."