
राष्ट्रीय सहकारी चीनी कारखाना महासंघ (एनएफसीएसएफ) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, महाराष्ट्र में चीनी उत्पादन में लगभग चार गुना बढ़ोतरी हुई है, जिससे भारत को चालू सीजन के पहले दो महीनों के दौरान 50 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज कर 41.35 लाख टन उत्पादन हासिल करने में मदद मिली है. NFCSF ने एक बयान में कहा कि 30 नवंबर तक 486 लाख टन गन्ने की पेराई की गई, जबकि एक साल पहले यह 334 लाख टन थी. इस प्रकार, चीनी उत्पादन 41.35 लाख टन रहा, जबकि एक साल पहले यह 27.60 लाख टन था. बयान में कहा गया है कि इस साल नवंबर के अंत तक (गन्ने की पेराई से) औसत चीनी प्राप्ति 8.51 प्रतिशत रही, जो एक साल पहले इसी अवधि में 8.27 प्रतिशत थी.
NFCSF द्वारा आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर-नवंबर के दौरान महाराष्ट्र में चीनी उत्पादन एक साल पहले के 4.60 लाख टन के मुकाबले 16.75 लाख टन, उत्तर प्रदेश में 12.90 लाख टन के मुकाबले 14.10 लाख टन, कर्नाटक में 7 लाख टन के मुकाबले 8.20 लाख टन और गुजरात में 0.75 लाख टन के मुकाबले 0.9 लाख टन रहा. महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक देश के शीर्ष तीन चीनी उत्पादक राज्य हैं और उत्पादन के पहले दो महीनों में उनकी संयुक्त हिस्सेदारी 94 प्रतिशत से अधिक रही.चीनी सहकारी संस्था ने कहा कि सामान्य मॉनसून की वजह से गन्ना कटाई का काम वर्तमान में पूरे जोरों पर है. महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ हिस्सों को छोड़कर जहां किसान आंदोलन चल रहे हैं.
लेकिन इसने अपने पूर्वानुमान को दोहराया कि चालू सीजन के अंत में सकल चीनी उत्पादन 350 लाख टन रहेगा. तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) द्वारा चक्र-1 इथेनॉल आवंटन के आधार पर, लगभग 35 लाख टन चीनी इथेनॉल उत्पादन के लिए इस्तेमाल किए जाने की उम्मीद है, जिसके परिणामस्वरूप शुद्ध चीनी उत्पादन 315 लाख टन होगा. पूरे सीजन के लिए महाराष्ट्र में चीनी उत्पादन 110 लाख टन, उत्तर प्रदेश में 105 लाख टन, कर्नाटक में 55 लाख टन और गुजरात में 8 लाख टन अनुमानित है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि 290 लाख टन की अपेक्षित घरेलू खपत और 50 लाख टन के आरंभिक स्टॉक (1 अक्टूबर, 2025 तक) के मुकाबले भारत में चीनी मिलों के गोदामों में लगभग 75 लाख टन चीनी शेष रहेगी. इससे भारी धनराशि रुक जाएगी और मिलों पर ब्याज का बोझ बढ़ जाएगा, इसलिए, एनसीएसएफ ने सरकार से अनुरोध किया है कि वह निर्यात के लिए पहले से स्वीकृत 15 लाख टन के अतिरिक्त 10 लाख की अनुमति दे. इस कदम से न केवल घरेलू चीनी कीमतों में मजबूती के कारण घरेलू बाजार की धारणा में सुधार होगा, बल्कि वैश्विक बाजार में भारतीय चीनी की छोटी मात्रा के प्रवेश को देखते हुए मौजूदा कम अंतरराष्ट्रीय चीनी कीमतों पर भी कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा.
एनएफसीएसएफ के अध्यक्ष हर्षवर्धन पाटिल ने चीनी के न्यूनतम विक्रय मूल्य (एमएसपी) में लंबे समय से लंबित संशोधन को लेकर पूरे चीनी क्षेत्र में जारी अनिश्चितता की ओर इशारा करते हुए कहा कि मौजूदा एमएसपी को 41 रुपये प्रति किलो तक संशोधित करने की तत्काल जरूरत है.उन्होंने कहा कि ब्राजील और थाईलैंड जैसे प्रमुख गन्ना उत्पादक देशों में किसानों को दिया जाने वाला राजस्व हिस्सा लगभग 60-65 प्रतिशत है वो भी बिना किसी न्यूनतम गारंटी (एफआरपी) के, जबकि भारत में यह 41 रुपये प्रति किलो एमएसपी के आधार पर 75-80 प्रतिशत है.