बिहार में क्यों गिरा चीनी उत्पादन?कभी देश के कुल चीनी उत्पादन में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाला बिहार आज चीनी उद्योग के मानचित्र से लगभग गायब हो गया है. जहां एक समय यह राज्य गन्ना उत्पादन में उत्तर प्रदेश की टक्कर देता था, वहीं आज हालत यह है कि बिहार में कभी मौजूद 130 शुगर मिलों में से अब केवल 9 मिलें ही काम कर रही हैं. 1904 में बनी पहली चीनी मिल सहित कई ऐतिहासिक मिलें अब गुमनामी में खो चुकी हैं.
कुछ दशक पहले तक शुगर इंडस्ट्री बिहार की सबसे बड़ी एग्रो-बेस्ड इंडस्ट्री थी, जिससे लाखों किसानों और मजदूरों का जीवन जुड़ा था. खेती, ट्रांसपोर्टेशन, मशीनरी सर्विसिंग और ट्रेड जैसे सेक्टर इसी उद्योग से चलता था, लेकिन लगातार गिरावट ने पूरी अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया.
2021-22 में राज्य में 2.41 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में गन्ना बोया गया. बिहार की नौ सक्रिय शुगर मिलों में 473.1 लाख क्विंटल गन्ने की पेराई हुई और 45.6 लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन दर्ज किया गया. रिकवरी रेट 9.6% रहा. 2020-21 की तुलना में पेराई मात्रा में 2.8% वृद्धि हुई, लेकिन यह बढ़त राज्य की खस्ताहाल चीनी इंडस्ट्री को संभालने में नाकाफी साबित हुई.
एक विशेषज्ञ ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बिहार की चीनी मिलें पिछले कई दशकों में “राजनीतिक हस्तक्षेप का शिकार” बन गईं. 90 के दशक के बाद मिलों की हालत लगातार बिगड़ती गई. जब चीनी मिलें बंद हो गईं तो गन्ने की खेती भी कम हो गई. खेती कम होने से चीनी उत्पादन गिर गया. इससे पूरी शुगर इंडस्ट्री लगभग ठप हो गई. ये सारी घटनाएं एक दूसरे से जुड़ी हैं.
हालांकि अब सरकार इन मिलों को लेकर संजीदा है और दावा है कि जल्द ही 25 मिलों को फिर से चालू किया जा सकता है. अभी हाल में सरकार ने 9 पुरानी मिलों को शुरू करने की मंजूरी दी है. कुछ नई मिलें भी शुरू होने वाली हैं. इससे चीनी उत्पादन कुछ-कुछ पटरी पर लौट सकता है.
गन्ना उत्पादन में गिरावट के कारणों पर कृषि विज्ञान केंद्र, नरकटियागंज के वरिष्ठ वैज्ञानिक आरपी सिंह कहते हैं कि असली समस्या “गन्ने के पुराने प्रभेद (varieties)” हैं. पुरानी वैरायटी में कीट और रोग ज्यादा लगते हैं, जिससे उत्पादन और रिकवरी दोनों घटते हैं.
आरपी सिंह कहते हैं, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण में स्थिति बिल्कुल उलट है. पश्चिमी चंपारण में बगहा, नरकटियागंज, लौरिया, हरिनगर और मझौलिया की 5 मिलें सक्रिय हैं, और छठवीं मिल भी शुरू होने वाली है. यहां गन्ने की नई हाई-यील्ड वैरायटी लगाई जाती है. मिलों ने टिश्यू कल्चर लैब बना कर किसानों को रोग-मुक्त, प्रमाणित पौध उपलब्ध कराकर उत्पादन और रिकवरी दोनों में सुधार किया हैय
नरकटियागंज में मगध शुगर मिल और रामनगर शुगर मिल ने अपना हाईटेक टिश्यू कल्चर लैब खोला है जिसमें गन्ने की हाई यील्ड वैरायटी तैयार की जाती है और किसानों को पौध दी जाती है. ये पौध पूरी तरह से रोग और कीटों से मुक्त होती है. इससे गन्ना उत्पादन बढ़ने के साथ ही चीनी का रिकवरी रेट भी बढ़ता है. इस तरह की खेती अन्य जिलों में भी की जा सकती है.
शुगर इंडस्ट्री की लोकेशन ज्यादातर इस बात से तय होती है कि वह गन्ना उगाने वाले इलाकों के पास है, क्योंकि यह उसका कच्चा माल होता है. शुगर इंडस्ट्री यूपी और बिहार में शुरू हुई, जो 1960 में कुल शुगर प्रोडक्शन का लगभग 60% हिस्सा थे. उत्पादन लागत की पड़ताल से पता चला कि उन इलाकों में गन्ने की खेती अधिक हुई जहां पहले से चीनी मिलें थीं.
मिलों ने भी अपने इलाके में गन्ने की खेती को बढ़ावा दिया क्योंकि गन्ना जब बहुत दूर से सप्लाई होकर आता है तो डंठल सूखने से उसमें सुक्रोज की मात्रा घट जाती है. इससे चीनी की रिकवरी कम होती है. इसलिए एक्सपर्ट बताते हैं कि सरकार को उन इलाकों में गन्ने की खेती को बढ़ावा देना चाहिए जहां पहले से चीनी मिलें हैं.
केवल खेती बढ़ने से चीनी उत्पादन नहीं बढ़ सकता. और भी कुछ जरूरी फैक्टर हैं. आरपी सिंह के अनुसार किसानों को सिर्फ प्रमाणित पौधशालाओं से ही पौध लेनी चाहिए. बाहरी राज्यों की वैरायटी बिहार की जलवायु नहीं सह पाती, जिससे उत्पादन घटता है. ऐसी वैरायटी तापक्रम में उतार-चढ़ाव को बर्दाश्त नहीं कर पातीं, उन पर जलवायु और मौसम का बुरा असर होता है जिससे उत्पादन गिर जाता है.
देश में जितने भी गन्ना अनुसंधान संस्थान हैं, वहां बिहार के लिए गन्ने की वैरायटी बनाई जाती है. किसानों को ऐसी वैरायटी अपने खेतों में लगानी चाहिए. आरपी सिंह ने कहा, अगर पूरे बिहार में चंपारण मॉडल लागू हो जाए तो राज्य फिर से अपने पुराने स्वर्णिम दौर की ओर लौट सकता है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today