सेंट्रल मरीन फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट (CMFRI) के पास समुद्री शैवाल (सीवीड) की खेती को बढ़ावा देने के लिए जरूरी विशेषज्ञता और बुनियादी ढांचा है. वहीं तमिलनाडु के रामनाथपुरम, पुदुक्कोट्टई और तंजावुर जिलों के तट पर क्लस्टर आधारित समुद्री शैवाल की खेती विकसित करने की बहुत संभावनाएं हैं. ये कहना है ज्वाइंट सेक्रेटरी, फिशरीज सागर मेहरा का. हाल ही में उन्होंने समुद्री शैवाल अनुसंधान के रीजनल स्टेशन मंडपम का दौरा किया. इसका केन्द्र मन्नार की खाड़ी में है. इसका काम समुद्री शैवाल के बारे में रिसर्च करना है. इसके साथ ही CMFRI का भी दौरा किया था.
समुद्री शैवाल की खेती को और कैसे बढ़ाया जा सकता है. शैवाल की खेती के रास्ते में आने वाली परेशानियां कौन-कौनसी हैं और उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है इसकी भी जानकारी सागर मेहरा ने शैवाल की खेती कर रहे किसानों से ली. उन्होंने उन गांवों का भी दौरा किया जहां समुद्री शैवाल की खेती हो रही है.
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सागर मेहरा ने पाक खाड़ी के उस गांव मुनईकाडु का भी दौरा किया जहां समुद्री शैवाल की खेती होती है. इस मौके पर उनके साथ सुभाष चंद्रा, निदेशक (मत्स्य पालन) और डॉ. गुणमय पात्रा भी थे. 29 और 30 जून के इस दौरे के दौरान टीम ने CMFRI की विभिन्न सुविधाओं जैसे समुद्री मछली ब्रूडबैंक, समुद्री हैचरी, रीसर्क्युलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम, संग्रहालय, समुद्री एक्वेरियम और मछली फार्म का भी दौरा किया. मुनईकाडु गांव के किसानों से भी मिले. उनसे शैवाल के बारे में चुनौतियों और मुद्दों के बारे में जानकारी ली. सागर मेहरा ने बताया कि मौजूदा वक्त में करीब 1500 परिवार समुद्री शैवाल की खेती में लगे हुए हैं.
समुद्री शैवाल का वर्तमान वार्षिक उत्पादन करीब पांच हजार टन प्रति हेक्टेयर है. हालांकि नीति और तकनीक का इस्तेमाल कर उत्पादन को और कई गुना बढ़ाया जा सकता है. साथ ही उन्होंने तमिलनाडु के रामनाथपुरम, पुदुक्कोट्टई और तंजावुर जिलों के तट पर क्लस्टर आधारित समुद्री शैवाल की खेती विकसित करने पर जोर दिया. मंडपम में उन्होंने सजावटी मछली पालन यूनिट भी देखी. साथ ही मत्स्य विभाग, भारत सरकार की चल रही योजना और कार्यक्रमों के तहत सजावटी मत्स्य पालन विकसित करने की रूपरेखा के बारे में जानकारी ली.
समुद्री शैवाल यानी सी-वीड या एल्गी को 21वीं शताब्दी का चिकित्सा भोजन भी कहा जा रहा है. इन समुद्री शैवालों में कई जैव सक्रिय यौगिक होते हैं, जिनके कारण मानव और पशु में पूरक आहार के फसल के उर्वरक रूप में उपयोग किया जाता है. सी-वीड सूक्ष्म एल्गी, यानी शैवाल होते हैं. इनका इस्तेमाल खाद्य, ऊर्जा, रसायन और दवा उद्योग के साथ पोषण, बायोमेडिकल और पर्सनल केयर उत्पादों में भी किया जाने लगा है.
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घेघा, कैंसर, बोन रिप्लेसमेंट थेरेपी और कार्डियोवैस्कुलर सर्जरी में भी इनका इस्तेमाल किया जाने लगा है. एक्सपर्ट का कहना है कि सी-वीड कंपाउंड्स कास्मेटिक्स उत्पादों की गुणवत्ता को बेहतर करते हैं. यही वजह है कि कास्मेटिक्स इंडस्ट्री में इनका उपयोग बढ़ रहा है. सीवीड की बायोएक्टिव प्रापर्टीज की वजह भोजन, जैव उर्वरक और हेल्थ केयर के उत्पाद तेजी से अपनी जगह बना रहे हैं.