कम पानी और कम लागत के कारण खरीफ मक्का की फसल धान से अच्छी और पर्यावरण की दृष्टि से बेहतर माना जा रही है, इसलिए कृषि वैज्ञानिक खरीफ में मक्का की खेती करने की सलाह दे रहें है. केंद्र और राज्य सरकारें मक्का की खेती पर ज्यादा ध्यान दे रही हैं. मक्का की खेती को किसानों के लिए लाभकारी बनाने के लिए ICAR का लुधियाना स्थित भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (ICAR-IIMR) मक्का की खेती की नई तकनीक और मक्का की नई किस्मों को विकसित करने का काम करता है. इस संस्था ने पिछले साल खरीफ सीजन की खेती के लिए मक्के की नई किस्में जारी की थी. ये किस्में बेहतर उपज देने वाली, अधिक पौष्टिक और रोग प्रतिरोधी किस्में हैं. इन किस्मों की खेती कर किसान बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं.
मक्का की PMH-1 LP संकर किस्म को खरीफ सीजन की व्यवसायिक खेती के लिए काफी बेहतर माना जा रही है. इस किस्म को ICAR-IIMR ने साल 2022 में जारी किया था. इस किस्म में फाइटिक एसिड की मात्रा कम होती है और इसकी उपज क्षमता 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है. इस किस्म में लगभग 95 से 100 दिनों में दाने पककर तैयार हो जाते हैं. मक्के की इस किस्म को विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली के मैदानी इलाकों के किसानों के लिए मंजूरी दी गई है. PMH-1 LP किस्म की मक्के की फसल में मैडिस लीफ ब्लाइट और चारकोल रोट रोग से लड़ने की क्षमता है. इसके अलावा मक्के का तना छेदक और फॉल आर्मीवर्म जैसे कीटों के प्रकोप की संभावना भी कम होती है. इस किस्म में कम फाइटिक एसिड के कारण आयरन और जिंक जैसे विभिन्न खनिजों की जैव उपलब्धता में सुधार हुआ है और पर्यावरण प्रदूषण भी कम होता है. इस किस्म की खेती कर किसान खरीफ सीजन में बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं.
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मक्का की संकर किस्म IMH 224 खरीफ सीजन में पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और ओडिशा के मक्का किसानों के लिए बहुत अच्छी किस्म मानी जाती है. वर्षा आधारित मक्के की खेती के लिए यह किस्म काफी बेहतर है. इस किस्म की उपज क्षमता 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है, इसकी फसल 85 से 90 दिनों में दाने पककर तैयार हो जाती है. यह संकर मक्के की मैडिस लीफ ब्लाइट, टर्सिकम लीफ ब्लाइट, चारकोल रोट, फुसैरियम डंठल सड़न (FSR) रोगों के लिए प्रतिरोधी है। यह किस्म वर्ष 2022 में ICAR-IIMR द्वारा जारी की गई थी.
साल 2021 में, ICAR-IIMR ने मक्का की किस्म IQMH 203 जारी की जो एक बायोफोर्टिफाइड किस्म है. इसकी फसल 89 से 90 दिनों में दाने पककर तैयार जाते हैं. इस किस्म की उपज क्षमता 63 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इसे राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और गुजरात राज्यों सहित मध्य-पश्चिमी क्षेत्र के लिए विकसित किया गया है. जहां खरीफ मौसम में वर्षा आधारित मक्का उगाया जाता है. इसमें उच्च गुणवत्ता और उच्च प्रोटीन होता है. यह फ्युजेरियम डंठल सड़न, कोमल फफूंदी, कर्वुलरिया लीफ स्पॉट और चिलोपार्टेलस रोगों से कम प्रभावित होता है.