जलवायु परिवर्तन गंभीर चिंता का विषय बन कर उभरा है. इस मुद्दे पर चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय हरियाणा में 17 से 19 फरवरी तक 3 दिवसीय खाद्य सुरक्षा और स्थिरता विषय पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया. विश्वविद्यालय के कुलपति और सम्मेलन के मुख्य संरक्षक प्रो. बीआर काम्बोज ने बताया कि इस महासम्मेलन में कनाडा, जापान, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, जर्मनी, उज्जबेकिस्तान, फिलिपींस व पोलैंड सहित अनेक देशों से आए विशेषज्ञों ने अपनी बातें रखी. इस दौरान सभी विशेषज्ञ इस बात पर सहमत दिखे कि जलवायु परिवर्तन कृषि क्षेत्र को प्रभावित कर रहा है. वहीं विशेषज्ञों ने कहा कि जलवायु परिवर्तन संकट से निपटने के लिए पारंपरिक देशी बीज के साथ ही दलहनी फसलों कारगर हो सकती हैं.
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महासम्मेलन में एसकेटछिवान विश्वविद्यालय कनाडा से आए प्रो. रविंद्र छिब्बर ने वर्तमान समय की समस्याओं को देखते हुए इस सम्मेलन को बहुत महत्वपूर्ण बताया. उन्होंने जलवायु परिवर्तन के खतरे को देखते हुए दलहनी फसलों की खेती को बढ़ाने पर जोर दिया है. उन्होंने बताया कि ये फसलें वातावरण से नाईट्रोजन लेती हैं और सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ाकर मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखने में मददगार हैंं. दलहन एक पौषकीय फसल है, जिनमें प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है.
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में हुए सम्मेलन में आए प्रोफेसर एंड्रियास बॉर्नर (लेइब्निज इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट जेनेटिक्स एंड क्रॉप प्लांट रिसर्च) ने बताया कि जलवायु परिवर्तन किसानों व वैज्ञानिकों के लिए एक चिंता का विषय बन गया है. यह परिवर्तन इतना तेजी से हो रहा है जिसकी आशंका वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों को भी नहीं थी. उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए देशी या पारंपरिक बीजों का इस्तेमाल नई तकनीक के साथ करना होगा. उन्होंने ऐसे बीजों के जीन बैंक बनाने में व इस्तेमाल पर जोर दिया जोकि पारंपरिक व स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र में उपस्थित ऐसे जंगली पौधों से लिए जाए, जिनका अभी तक पौध प्रजनन में इस्तेमाल नहीं हुआ है व जो कठोर जलवायु के प्रति सहनशील हैं.
दुनिया भर के मशहूर प्रोफेसर और मौसम विशेषज्ञों के बीच हुए सम्मेलन में जलवायु परिवरितन जैसे अहम मुद्दे पर खुल कर चर्चा हुई. इस पर स्वीडन से आई डॉ. मोनिका बेगा ने कम तापमान में होने वाली फसलों के बारे में व्याख्यान दिया. उन्होंने बताया कि कम तापमान अथवा सर्दियों में होने वाली अनाज की फसलें का भारत के हिमालयन क्षेत्र के लिए कारगर साबित हो सकती है.
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में आयोजित सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर विस्तार से चर्चा हुई. जिस पर ग्रीन हाउस के प्रभाव को कम करने पर भी बात हुई. पौलेंड से आए विशेषज्ञ डॉ. लुकार्ज ने जलवायु परिवर्तन के सुधार में सूक्ष्म जीवों के महत्वपूर्ण योगदान के बारे में चर्चा की. उन्होनें बताया कि सूक्ष्म जीव ग्रीन हाउस गैसों को कम करने व दूषित पानी को स्वच्छ बनाने में महत्वपूर्ण निभा सकते हैं.
इस बैठक में सम्मिलित अनेक देशओं के विशेषज्ञों ने कृषि विश्वविद्यालय हरियाणा द्वारा आयोजित इस सम्मेलन की सराहना की और अपने अपने अनुभवों के साथ विचारों को साझा किया. साथ ही मिलकर इस गंभीर समस्या से निपटने के तरीके पर प्रकाश डाला.
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