हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने कहा है कि जो किसान वर्षों से जुमला मालकान, मुश्तरका मालकान और शामलात देह जैसी जमीनों पर मकान बना कर रह रहे हैं या खेती कर रहे हैं, उनके साथ किसी प्रकार का अन्याय नहीं होगा. उनसे जमीन नहीं छुड़वाई जाएगी. लेकिन आगे के लिए सरकार ने सख्ती की है ताकि इस प्रकार का कोई नया कब्जा न हो सके. मुख्यमंत्री ने इस बात की जानकारी बुधवार को चंडीगढ़ स्थित अपने आवास पर उनसे मुलाकात करने आए भारतीय किसान यूनियन के प्रतिनिधियों के साथ हुई बैठक में दी. बैठक में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री जेपी दलाल भी मौजूद रहे.
किसान संगठन के प्रतिनिधियों ने बैठक में अपनी कई दूसरी मांगें भी रखीं, जिन पर सहमति बन गई और इसके लिए प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री व कृषि मंत्री का आभार व्यक्त किया. फिलहाल किसानों के लिए बड़ी राहत की बात यह है कि प्रदेश सरकार जुमला मालकान, मुश्तरका मालकान, शामलात देह, जुमला मुश्तरका मालकान, आबादकार, पट्टेदार, ढोलीदार, बुटमीदार व मुकरीरदार काश्तकारों को मालिकाना हक देने के मामले का स्थायी हल निकालने जा रही है. इस विषय में प्रदेश सरकार नया कानून बनाने जा रही है.
सीएम ने कहा कि पुराने कानूनों का अध्ययन करने व नए कानून तैयार करने के लिए विशेष कमेटी गठित की हुई है, जिसमें वे खुद तथा उप मुख्यमंत्री, विकास एवं पंचायत मंत्री, शहरी स्थानीय निकाय मंत्री तथा महाधिवक्ता शामिल हैं. इस कमेटी की दो बैठकें हो चुकी हैं और अधिकारियों को कानून का प्रारूप तैयार करने के निर्देश दिए जा चुके हैं. यह कार्य अंतिम चरण में है, जल्द ही इससे संबंधित विधेयक विधान सभा में लेकर आएंगे. किसान यूनियन के वकील भी कमेटी को कानून बनाने से संबंधित यदि कोई सुझाव देना चाहते हैं, तो वे भी दे सकते हैं.
शामलात देह जमीन वो होती है जिसे आजादी से पहले से खेती या अन्य किसी कार्य में कोई इस्तेमाल करता आ रहा है. बाद में ऐसी जमीन उस पर काबिज लोगों या काश्तकारों के नाम कर दी गई थी. तब से इन जमीनों पर उन्हीं का कब्जा है. जबकि शामलात भूमि वह है जिसकी स्वामी गांव की पंचायत होती है. शामलात भूमि को कृषि योग्य और गैर-कृषि योग्य भूमि में विभाजित किया गया है. गैर-कृषि योग्य भूमि का उपयोग गांव की सामान्य जरूरतों जैसे, स्कूल, औषधालय, तालाब आदि बनाने में किया जाता है. वहीं कृषि योग्य भूमि ग्रामीणों को साल भर के लिए पट्टे पर दी जाती है.
जुमला मुश्तरका मालकान वह भूमि है जिन्हें गांवों के लोगों ने सामाजिक कार्यों जैसे गौशाला, तालाब और अन्य किसी काम के लिए लिया था. इनमें से जो जमीन प्रयोग के बाद बची वो उन्हीं काश्तकारों और काबिजों के नाम है जिन्होंने दी थी. जबकि आबादकार जमीन वह होती है जिसे किसान जंगल काटकर या परती जमीन को ठीक करके उसे आबाद करने के उद्देश्य से उसमें बसा हो और वहां खेती बारी करता हो.
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