खेत के बीच में बना एक बड़ा लेकिन साधारण सा मकान. सुबह जब इस मकान में बाइक स्टार्ट होने की आवाज होती है तो घर के अंदर से एक महिला की आवाज जरूर आती है, ‘देख संजय यह फिर चल दिए इस बुढ़ापे में झोला उठाकर. कहीं रास्ते में सड़क पर इन्हें कुछ हो गया तो लेने के देने पड़ जाने हैं’. यह आवाज होती थी संजय की मां की और बाइक स्टार्ट करने वाले होते थे संजय के पिता सूरजमल. बाइक पर टंगे थैले को देखने की संजय को भी आदत हो गई थी, वो फौरन ही समझ जाता था कि पिताजी आज फिर जींद, हरियाणा के सरकारी दफ्तरों में जा रहे हैं. बीते छह साल से तो यह सिलसिला बदस्तूर जारी है. लेकिन करीब एक महीने से जरूर इस पर कुछ रोक लगी है.
खरेंटी गांव के रहने वाले किसान सूरजमल का कहना है कि पूरे छह साल में एक बार खराब हुई फसल का सर्वे करने बीमा कंपनी का व्यक्ति विभाग के कर्मचारी के साथ आया था. तभी पहली और आखिरी बार उसे देखा था. शहर में बीमा कंपनी का कोई दफ्तर भी नहीं है. विभाग में जाते थे तो हर रोज मुंह जुबानी एक नया बहाना बना दिया जाता था. 250 से 300 रुपये खर्च कर लगभग रोजाना ही सरकारी दफ्तरों की खाक छानता था.
आरटीआई में पूछने पर एक बार जांच रिपोर्ट का विवरण भेजते हुए बताया, ‘शिकायतकर्ता को लोकलाईज्ड क्ले म आधार पर मुआवजा नहीं दिया जा सका. क्यों कि प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत बारिश के कारण हुआ फसला खराबा लोकलाईज्डि क्लेंम में शामिल नहीं है. अत: बीमा कंपनी के कथन अनुसार शिकायकर्ता को मुआवजा देय नहीं बनता.’ यह लाइन आरटीआई के जवाब में ठीक इसी तरह से लिखकर दी गई है.
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70 साल के सूरजमल के बाल पूरी तरह पककर सफेद हो चुके हैं. लेकिन उनका हौंसला आज भी जवान है. इस उम्र में भी सूरजमल बाइक से ही गांव से शहर की दूरी जो करीब 30 किमी है उसे पूरी करते हैं. बाइक पर सूरजमल के साथ एक छोटा सा थैला भी होता है. जिसमे जरूरी कागजात रखे होते हैं. सूरजमल बीते छह साल से बजाज एलायंज कंपनी और कृषि विभाग के साथ फसल बीमा पाने की लड़ाई लड़ रहे हैं.
विभाग और बीमा कंपनी दोनों मानते हैं कि किसान सूरजमल की कपास की फसल बारिश के चलते 100 फीसद खराब हो चुकी है, लेकिन बीमा देने को फिर भी तैयार नहीं हैं. बीमा तो छोड़िए सर्वे रिपोर्ट की कॉपी तक किसान को नहीं दी गई. उस एक अदद कॉपी के लिए भी किसान को आरटीआई का सहारा लेना पड़ा.
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किसान सूरजमल का आरोप है कि साल 2017 में उनके बैंक खाते से 4704 कम हो गए. जब उन्होंने बैंककर्मियों से इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि आपकी रकम फसल बीमा कराने के लिए बजाज एलायंज कंपनी को सरकारी आदेश पर दे दी गई है. जबकि किसान ने इसके लिए अपनी कोई सहमति नहीं दी थी. अब मांगने से तो कोई कागज किसान को मिल नहीं रहा था, इसलिए उन्हों ने फिर से एक आरटीआई दाखिल कर दी. किसान ने हरियाणा सरकार से पूछा कि क्या उसका बजाज एलायंज कंपनी के साथ कोई समझौता या एग्रीमेंट हुआ है. जिसके जवाब में स्टे ट एग्रीकलचर अफसर,पंचकुला और जींद के कृषि विभाग ने किसान को लिखित में सूचना दी की इस कंपनी से हमारा कोई समझौता या एग्रीमेंट नहीं हुआ है. अब किसान का सवाल है कि फिर कैसे उसके खाते से रकम काटकर बजाज कंपनी को दी गई.
किसान का कहना है कि शुरुआती एक-डेढ़ साल में उन्हें इस बात का एहसास हो गया था कि फसल का बीमा आसानी से नहीं मिलेगा. इसलिए उन्होंने कंज्यूमर कोर्ट जाने का फैसला किया. लेकिन उन्होंने दूसरों से सुन रखा था कि कोर्ट जाने के लिए कागजों की जरूरत होती है. कोर्ट कागजों से ही बात को सुनती और समझती है. लेकिन कागज मांगने से तो कोई दे नहीं रहा था. इसके बाद किसान ने आरटीआई के तहत जरूरी कागज जुटाना शुरू कर दिया. डेढ़ साल कागज जुटाने में ही निकल गए. इस तरह फसल बर्बादी के तीन साल बाद 2020 में कोर्ट पहुंच गए. जहां लम्बी सुनवाई के बाद तीन मार्च को कोर्ट का फैसला किसान सूरजमल के हक में आया. कोर्ट ने कंपनी को आदेश दिया है कि वो किसान को करीब 83 हजार रुपये मय नौ फीसद ब्याज के साथ दे.
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