
देशभर में अब मक्का का उत्पादन बढ़ने लगा है. किसान सरकार की श्रीअन्न यानी मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देने की पहल को अपना रहे हैं. लेकिन, इसके बदले उन्हें फायदा तो दूर भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. वर्तमान में कई राज्यों की थोक मंडियों में मक्का के दाम एमएसपी से लगभग आधे या उससे भी कम चल रहे हैं. जो मक्का की प्रति क्विंटल आने वाली लागत से भी काफी कम है. यह हाल प्रमुख मक्का उत्पादक राज्य- मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान के किसानों का है, जिन्हें उपज का वाजिब मूल्य यानी 2400 रुपये प्रति क्विंटल एमएसपी नहीं मिल रहा है. देखें विभिन्न राज्यों में मक्का का मंडी भाव…
देशभर की प्रमुख कृषि उपज मंडियों में पिछले तीन दिनों के मक्का भाव देखकर साफ है कि किसानों को लागत के लिहाज से भी सही भाव मूल्य नहीं मिल पा रहा है. मध्य प्रदेश की अशोकनगर मंडी में 1,200 से 1,400 रुपये प्रति क्विंटल का भाव दर्ज हुआ है.
यह न सिर्फ लागत से कम है, बल्कि एमएसपी से लगभग एक हजार रुपये नीचे है. जबलपुर में न्यूनतम भाव 1,190 रुपये तक गिर गया, जबकि अधिकतम 1,670 रुपये दर्ज किया गया. हरदा में तो स्थिति और खराब रही जहां, किसानों को न्यूनतम मात्र 1,010 रुपये का ही भाव मिला.
राजस्थान की बारां मंडी में भी किसानों को 1,433 रुपये से शुरू होकर 1,510 रुपये तक के ही रेट मिले. महाराष्ट्र के कई केंद्रों जैसे अचलपुर और जालना में 1,100 से 1,500 रुपये तक का भाव दिखा. तेलंगाना की विकाराबाद मंडी में भले ही 1,936 रुपये का मोडल प्राइस दर्ज हुआ हो, लेकिन यह भी एमएसपी से काफी नीचे है.
स्थिति यह दिखाती है कि उत्पादन लागत बढ़ने और इस साल नया एमएसपी घोषित होने के बावजूद किसानों को बाजार में उसकी गारंटी नहीं मिल रही है. भारी आवक और खरीदारों की कमजोर रुचि ने दामों पर दबाव बढ़ा दिया है. कई मंडियों में भाव 1,000 से 1,500 रुपये के बीच ही अटके हुए हैं, जो सीधे तौर पर किसानों हो रहे घाटे के हालात को बयां कर रहे हैं.
एक ओर जहां देश के मक्का किसानों को पहले से उचित दाम नहीं मिल रहा है. वहीं, दूसरी ओर पोल्ट्री इंडस्ट्री ने जीएम मक्का के आयात की मांग उठा दी है. इंडस्ट्री ने तर्क दिया है कि देश की 3 लाख करोड़ रुपये की पोल्ट्री इंडस्ट्री कच्चे माल, खासकर मक्के की बढ़ती कीमतों से दबाव में है.
एथेनॉल सेक्टर की बढ़ती मांग ने मक्के का भाव और बढ़ा दिया है, जबकि पोल्ट्री उद्योग को हर साल करीब 250 लाख टन मक्का चाहिए. लागत कम करने और अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए उद्योग संगठनों ने सरकार से GM मक्का आयात की अनुमति की मांग की है. इसने कहा है कि इससे प्रोडक्टिविटी बढ़ेगी और कीमतों में स्थिरता आएगी.
अगर सरकार पोल्ट्री इंडस्ट्री की जीएम मक्का के आयात की मांग को मानती है तो देश में घरेलू किसानों को इतने दाम मिलना भी मुश्किल हो जाएगा. हालांकि, किसान संगठन पहले ही भारत-अमेरिका ट्रेड डील को लेकर सरकार को चेतावनी दे चुके हैं कि वह अगर किसी भी फसल जैसे- जीएम मक्का और जीएम सोयाबीन के आयात को अनुमति देती है तो किसान सड़कों पर बड़ा आंदोलन करेंगे. वहीं, सरकार ने भी साफ किया है कि भारत अपनी शर्तों पर ही कोई व्यापार समझौता करेगा.