
भारत, जो दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा प्याज उत्पादक देश है, इन दिनों महाराष्ट्र के नासिक क्षेत्र से आने वाली उपज में भारी गिरावट और किसानों की बढ़ती मुश्किलों को लेकर चर्चा में है. देश के कुल प्याज उत्पादन में लगभग 40% से ज्यादा योगदान देने वाला महाराष्ट्र इस बार असामान्य बारिश और खेती तकनीकों की खामियों के कारण गंभीर नुकसान झेल रहा है.
नासिक के कई हिस्सों में कटाई के समय हुई जोरदार बारिश ने प्याज की फसल को व्यापक रूप से प्रभावित किया. किसानों के अनुसार, खरीफ सीजन में लगभग 40% और रबी सीजन में करीब 25% नर्सरी को नुकसान पहुंचा.
फसल तैयार होने के बाद भी बारिश का असर बना रहा, जिससे प्याज में नमी बढ़ी और सड़न की समस्या सामने आई. मंडियों के व्यापारी और विशेषज्ञ बताते हैं कि कटाई के दौरान औसतन 35% तक नुकसान, स्टोरेज में 18% और परिवहन के दौरान 10% तक नुकसान हुआ. कुल मिलाकर, किसान अपनी उपज बेचने से पहले ही करीब आधी फसल गंवा बैठे.
उत्पादन प्रभावित होने के बावजूद, स्टोरेज की कमी और बाजार में पहले से पड़ी उपज के कारण मंडियों में प्याज की अधिक आवक देखी जा रही है. वहीं, निर्यात पर लगने वाली पाबंदियों और एक्सपोर्ट खुलने में देरी ने भी स्थानीय बाजार में दाम कम होने में भूमिका निभाई है.
कई किसानों का कहना है कि वर्तमान कीमतें उनकी लागत भी पूरी नहीं कर पा रही हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि नासिक में उपयोग की जाने वाली खेती तकनीक इस बार हुए नुकसान की एक बड़ी वजह है. लगभग 60% किसानों ने फ्लैटबेड तकनीक अपनाई, जिसमें खेत समतल कर बुवाई की जाती है. इस विधि में पानी निकलने का कोई प्रबंध नहीं होता, जिससे भारी बारिश की स्थिति में पानी भर जाता है और प्याज सड़ने लगता है.
इसके मुकाबले, BBF (Broad Bed and Furrow) तकनीक, जिसे करीब 20% किसान अपनाते हैं, नुकसान कम करती है क्योंकि इसमें नालियां बनती हैं जिससे पानी का बहाव बना रहता है.
महाराष्ट्र के जिन किसानों ने BBF विधि से प्याज की खेती की, उन्हें फ्लैटबेड विधि की तुलना में बहुत कम नुकसान हुआ. ड्रिप और स्प्रिंकलर विधि सिंचाई के तरीके हैं जिनसे किसान खेतों में पानी देते हैं. नासिक में ये दोनों विधियां कम ही इस्तेमाल होती हैं. नासिक ही नहीं बल्कि अन्य जगहों पर भी ड्रिप और स्प्रिंकलर जैसे आधुनिक सिंचाई तरीकों का इस्तेमाल अभी लिमिटेड है.
कृषि विशेषज्ञों का सुझाव है कि अगले सीजन में नुकसान कम करने के लिए कुछ प्रमुख बदलाव करने होंगे:
किसानों को उम्मीद है कि यदि ये बदलाव लागू होते हैं तो वे मौसम की अनिश्चितताओं और बाजार की अस्थिरता से बेहतर तरीके से निपट पाएंगे.