Agriculture Research: कृषि रिसर्च में कंजूसी से खेती का नुकसान, कैसे पूरा होगा विकसित भारत का अरमान

Agriculture Research: कृषि रिसर्च में कंजूसी से खेती का नुकसान, कैसे पूरा होगा विकसित भारत का अरमान

कृषि के बिना विकसित भारत का सपना अधूरा है, खासकर जब देश की आधी से ज़्यादा आबादी इसी क्षेत्र में कार्यरत है और यह जीडीपी में लगभग 18% का योगदान देता है. हालांकि, यह चिंता का विषय है कि हम कृषि रिसर्च और डेवलपमेंट (R&D) पर कृषि जीडीपी का केवल 0.4 फीसदी ही खर्च कर रहे हैं, जबकि विशेषज्ञों द्वारा 3 से 4 फीसदी की सिफ़ारिश की जाती है.

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जेपी स‍िंह
  • New Delhi ,
  • Jun 30, 2025,
  • Updated Jun 30, 2025, 2:44 PM IST

भारत का विकसित राष्ट्र बनने का सपना कृषि क्षेत्र के सशक्तिकरण के बिना अधूरा है. जहां एक ओर देश के नीति निर्माता $5 ट्रिलियन जिसमें $1 ट्रिलियन, कृषि अर्थव्यवस्था का लक्ष्य निर्धारित कर रहे हैं. वहीं कृषि क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास (R&D) पर निवेश की मौजूदा स्थिति चिंता का विषय बनी हुई है. विशेषकर, जब केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान कृषि के माध्यम से इस बड़े आर्थिक लक्ष्य में योगदान की बात करते हैं, तो R&D में पर्याप्त निवेश की जरूरत और भी स्पष्ट हो जाती है. भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां देश की कुल कार्यशील जनसंख्या का लगभग 52 प्रतिशत हिस्सा कृषि और इससे जुड़ी गतिविधियों में कार्यरत है. यह क्षेत्र न केवल खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है, बल्कि रोजगार सृजन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए भी रीढ़ की हड्डी है. साल 2024-25 में भारत के अनुमानित नॉमिनल जीडीपी का आकार 330.68 लाख करोड़ रुपये का है, जिसमें कृषि क्षेत्र का योगदान करीब 18 प्रतिशत लगभग 59.5 लाख करोड़ रुपये होती है. यह दिखाता है कि कृषि देश की आर्थिक प्रगति का एक अहम स्तंभ है.

ग्लोबल नजरिये से क्या हम पिछड़ रहे हैं?

देश में कृषि अनुसंधान एवं विकास (R&D) पर खर्च की स्थिति इस आर्थिक योगदान के अनुपात में बेहद कम है. साल 2023-24 में भारत ने कृषि अनुसंधान और विकास पर केवल 19,650 करोड़ रुपये खर्च किए, जो कृषि जीडीपी का मात्र 0.33 प्रतिशत है. कृषि मानना है कि इसे कम से कम 3 से 4 फीसदी लाया जाए नही तो कम से कम कृषि जीडीपी के 1 प्रतिशत तक लाया जाए. एक फीसदी कृषि अनुसंधान एवं विकास की राशि 5.95 लाख करोड़ रुपये होनी चाहिए. दुनिया के विकसित और कृषि उन्नत देशों में कुल जीडीपी में कृषि का योगदान भारत की तुलना में कहीं कम है, फिर भी वे अपने कृषि क्षेत्र के स्थाई विकाेस और नवाचार के लिए R&D में बड़ा निवेश करते हैं. यह आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि कृषि अनुसंधान एवं नवाचार में किया गया निवेश, उत्पादन स्थिरता, खाद्य सुरक्षा और जलवायु अनुकूल कृषि प्रणाली विकसित करने के लिए बेहद जरूरी है.

विकसित देशों का कृषि R&D पर खर्च (%)

देशकुल जीडीपी में कृषि का योगदान (%)कृषि जीडीपी का R&D पर खर्च (%)
अमेरिका                        1.2                       5.0
ब्राजील                        5.4                       2.6
चीन                       6.9                       0.8
कनाडा                          1.8                      1.33
ऑस्ट्रेलिया                       1.68                      4.0
इज़राइल                       2.5                      5.4

इज़राइल, अपनी कुल जीडीपी का लगभग 2.5 फीसदी कृषि से प्राप्त करता है, लेकिन अपने कृषि जीडीपी का लगभग 5.4 फीसदी रिसर्च और विकास पर निवेश करता है, जो दुनिया स्तर पर सबसे अधिक दरों में से एक है. यह तुलना स्पष्ट करती है कि भारत को अपने कृषि क्षेत्र को आधुनिक बनाने, उसकी उत्पादकता बढ़ाने और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में आगे निकलने के लिए कृषि R&D में कहीं अधिक निवेश करने की तत्काल जरूरत है. इज़राइल का उदाहरण दर्शाता है कि कृषि का जीडीपी में योगदान कम होने के बावजूद, नवाचार और अनुसंधान में भारी निवेश के ज़रिए एक मज़बूत और उन्नत कृषि प्रणाली कैसे विकसित की जा सकती है.

कृषि अनुसंधान पर 'कंजूसी' का खामियाजा

भारत के पास दुनिया की सबसे बड़ी और संगठित कृषि अनुसंधान प्रणाली है, वर्तमान में ICAR देश की शीर्ष स्वायत्त संस्था है, जिसके अधीन 113 संस्थान, 731  कृषि विज्ञान केंद्र इसके आलावा भारत में कुल 76 कृषि विश्वविद्यालय हैं, जिनमें 4 केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, 64 राज्य कृषि विश्वविद्यालय और 4 डीम्ड विश्वविद्यालय शामिल हैं. देश के और अन्य अनुसंधान संस्थान भी क्षेत्रीय स्तर पर कृषि की चुनौतियों के समाधान के लिए कार्य कर रहे हैं. इसके बावजूद, भारत में कृषि अनुसंधान पर बजट आवंटन का कोई स्पष्ट और निश्चित मानक नहीं है. कृषि जीडीपी का कम से कम 1 प्रतिशत अनुसंधान पर खर्च करने का अंतराष्ट्रीय विशेषज्ञों का मानक है लेकिन वर्तमान में भारत केवल 0.33-0.4 प्रतिशत ही खर्च कर रहा है. यह 'कंजूसी' भविष्य की कृषि चुनौतियों से निपटने की हमारी क्षमता को कमजोर कर सकता है.

कृषि के R&D निवेश से देश को शानदार रिटर्न 

कृषि अनुसंधान में निवेश का लाभांश अन्य किसी भी कृषि गतिविधि की तुलना में सबसे अधिक है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी रिसर्च (NIAP) द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, भारत में कृषि अनुसंधान पर प्रत्येक 1 रुपये निवेश पर 13.85 रुपये का रिटर्न मिलता है. वहीं एग्रीकल्चर एक्सटेंशन पर प्रत्येक 1 रुपये निवेश पर 7.40 रुपये का लाभ होता है जबकि शिक्षा से 2.05, सड़क से 1.33, बिजली से 0.84 और सिंचाई नहर से 0.25 पैसे का लाभ मिलता है. यह स्पष्ट करता है कि कृषि R&D में निवेश घाटे का सौदा नहीं, बल्कि अधिक लाभदायक है.

एक आंकड़े के मुताबिक भारत में प्रति 1 लाख किसानों पर केवल 4.6 पूर्णकालिक शोधकर्ता कार्यरत हैं, जबकि ब्राजील में यह संख्या 57 है. यह स्थिति देश में अनुसंधान की पहुंच, प्रभावशीलता और क्षेत्रीय समस्याओं के समाधान की क्षमता को सीमित करती है. कम शोधकर्ताओं का अर्थ है, किसानों तक नई तकनीकों का धीमी गति से पहुंचना है.

चुनौतियां और कृषि मंत्री के सपने का आधार

तेजी से बढ़ती जनसंख्या, जलवायु परिवर्तन के अप्रत्याशित प्रभाव, जल संकट, कृषि भूमि का सिकुड़ना और पोषण सुरक्षा जैसी चुनौतियां लगातार बढ़ती जा रही हैं. शिवराज सिंह चौहान जैसे नेताओं का यह सपना कि कृषि क्षेत्र भारत को $1 ट्रिलियन यानी देश के $5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान देने का टारगेट तभी साकार हो सकता है जब हम इन चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हों. इसके लिए कृषि अनुसंधान को नई दिशा देने की जरूरत है. विशेष रूप से जल संरक्षण, मृदा स्वास्थ्य, दुग्ध, दलहन, तिलहन और नकदी फसलों पर अनुसंधान को प्राथमिकता देना अनिवार्य है.

हरित क्रांति के बाद भारत ने खाद्यान्न उत्पादन में कई उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन वैश्विक मानकों की तुलना में अब भी बहुत कुछ करना बाकी है. अगर भारत सरकार कृषि अनुसंधान एवं विकास में 'कंजूसी' छोड़कर निवेश बढ़ाती है, क्षेत्रीय समस्याओं के समाधान के लिए अनुसंधान केंद्र स्थापित करती है, और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल तकनीकों को विकसित करती है, तो अगले दशक में खाद्य और पोषण सुरक्षा, कृषि आय में खासी वृद्धि और रोजगार सृजन जैसे अहम लक्ष्यों को हासिल करना संभव होगा. तभी कृषि के माध्यम से विकसित भारत के आर्थिक लक्ष्य में योगदान का सपना साकार हो पाएगा.

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