बेड़ू पाको बारो मासा, ओ नरणी काफल पाको चैता मेरी छैला,
बेड़ू पाको बारो मासा, ओ नरणी काफल पाको चैता मेरी छैला,
अल्मोड़ा की, नंदा देवी, ओ नरणी फूल चढोनो पाती,मेरी छैला
यह सिर्फ एक मुखड़ा नहीं है बल्कि पहाड़ों में रहने वाले लोगों की अपनी संस्कृति के प्रति भावना है. असल में बेड़ू पहाड़ों में होने वाला एक फल है. जो देश के पहले से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री तक की जुबान पर चढ़ चुका है. पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू कभी बेड़ू पाको बारो मास गीत पर फिदा हो गए थे. तो मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी अपने लोकप्रिय कार्यक्रम मन की बात में बेड़ू और उससे बनने वाले उत्पाद की पहल की तारीफ कर चुके हैं. बेशक बेड़ू उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्याें में पाया जाना वाला एक जंगली फल है. लेकिन मौजूदा समय में बेड़ू को पहाड़ी अंजीर के तौर पर नई पहचान मिली है. आइए जानते हैं कि बेड़ू क्या है और इससे होने वाले लाभ कौन से हैं.
उत्तराखंड में कई ऐसे फल और फूल पाए जाते हैं, जो अपने औषधीय गुणों के कारण मशहूर हैं. इनमें एक बेड़ू भी है.बेड़ू अपने औषधीय गुणों के कारण जाना जाता है. लेकिन आज हालात कुछ ऐसे हैं कि यह अतीत कि यादों में सिमटता जा रहा ही. मैदानी इलाकों में रहने वाले बहुत कम लोग ऐसे हैं, जो पहाड़ी इलाकों में पाए जाने वाले फल ओर फूल को अच्छी तरह से पहचानते हैं. हालांकि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में बेडू को नई पहचान देने की कोशिश हुई है. जिसे पहाड़ी अंजीर के तौर पर पहचान दी गई है और इससे जैम और चटनी जैसे उत्पाद बनाए जा रहे हैं. जिला प्रशासन की इस मुहिम, बेडू की पहचान को बचाए रखने के लिए ओर लोगों को इसके महत्व के बारे में बताने के लिए नरेंद्र मोदी ने मन की बात शो में भी बेड़ू और इसके औषधीय गुणों के बारे में लोगों को बताया था.
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बेड़ू मध्य हिमालयी क्षेत्र के जंगली फलों में से एक है. जंगली अंजीर के पौधे समुद्र तल से 1,550 मीटर की ऊंचाई पर बहुत आम हैं. गढ़वाल और कुमाऊ के क्षेत्रों में इसका सबसे अच्छा उपयोग किया जाता है. लेकिन अब पहाड़ी इलाकों में भी ये अपने लोगों के बीच स्मृतियों में बनता हुआ जा रहा है.
ये पेड़ जंगलों में कम ही पाए जाते हैंृ लेकिन गांवों के आसपास, बंजर भूमि, खेतों आदि में उगते हैं. लोग फलों को बहुत पसंद करते हैं. और इनका उपयोग बिक्री के लिए भी किया जाता है. यह कुछ कसैलेपन के साथ मीठा और रसीला होता है, जो समग्र फल की गुणवत्ता को उत्कृष्ट बनाता है.
बेड़ू फल जून-जुलाई में आता है. एक पूरी तरह से विकसित जंगली अंजीर का पेड़ अनुकूल मौसम में लगभग 25 किलोग्राम फल देता है. बीज सहित पूरा फल खाने योग्य होता है. बेड़ू के पत्ते पशुओं के चारे का काम करते हैं, यह दुधारू पशुओं के लिए बहुत अच्छा माना जाता है. कहा जाता है कि दुधारू पशुओं को बेड़ू के पत्ते खिलाने से दूध बढ़ता है.
बेड़ू लोकगीत के लेखक और गायक बृजेंद्र लाल शाह और मोहन उप्रेती हैं. इस गीत को पहली बार 1952 में राजकीय इंटर कॉलेज, नैनीताल के मंच पर गाया गया था. अब यह गाना उत्तराखंड ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर है. बॉलीवुड अभिनेत्री अनुष्का शर्मा आए दिन इस गाने को गुन गुनती रहती हैं. इस गाने के जरिए बताया गया है कि बेड़ू का फल साल के सबसे बड़े महीने में यानी जून-जुलाई में पकता है. इस गाने ने बेड़ू को और बेड़ू ने इस गाने को एक अगल पहचान दिलाई थी. लेकिन आज बेड़ू का अस्तित्व खतरे में आ चुका है.